-लघु सिंचाई विभाग के सरकारी नलकूप उगल रहे घाटा

-नलकूपों के माध्यम से बिजली विभाग भर रहा झोली

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Meerut: लघु सिंचाई विभाग के नलकूप बिजली विभाग के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रहे हैं। अधिकांश नलकूप बंद या खराब हैं, लेकिन प्रत्येक नलकूप फ्.म्0 लाख रुपए बिजली विभाग को दिए जा रहे हैं। नलकूप पर तैनात स्टाफ मुफ्त की सेलरी ले रहा है तो इनके रखरखाव पर भी साल में लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सिंचाई विभाग को सालाना 9 करोड़ ख्0 लाख रुपए का घाटा हो रहा है।

क्या है मामला

पूरा मामला लघु सिंचाई विभाग व बिजली विभाग से जुड़ा है। दरअसल, लघु सिंचाई विभाग की ओर से जनपद में सवा तीन सौ सरकारी नलकूप स्थापित किए गए हैं। इन नलकूपों में से जहां एक तिहाई नलकूप ठप पड़ गए हैं, वहीं अधिकतर नलकूपों का सिंचाई रकबा घट कर न के बराबर रह गया है। बावजूद इसके सरकारी नलकूपों पर बिजली बिल के रूप में आने वाला करोड़ों का खर्च बिजली विभाग के लिए मुनाफे का सौदा बना हुआ है।

निजी नलकूपों का चलन

एक समय था जब शहर व ग्रामीण अंचलों के खेतों की सिंचाई का एक मात्र जरिया सरकारी ट्यूबवेल ही हुआ करती थी, लेकिन पिछले बीस सालों से निजी नलकूपों के बढ़े प्रचलन सरकारी नलकूपों पर सीधे चोट कर दी, जिसका सबसे बड़ा खामियाजा लघु सिंचाई विभाग को भुगतना पड़ गया। अब यदि एवरेज देखें तो हर पांच गांवों में एक सरकारी नलकूप के सापेक्ष सौ निजी नलकूप खेतों की सिंचाई का माध्यम बनीं हुर्ई हैं। सरकारी नलकूपों में आई गिरावट और निजी नलकूपों के इस चलन बिजली विभाग की झोली भर दी।

क्या कहते हैं आंकड़े

ब्लॉक नलकूप बंद नलकूप

मेरठ क्0 0ब्

रजपुरा भ्0 08

खरखौदा ब्भ् 0भ्

सरधना ख्फ् क्क्

दौराला क्म् -

मवाना क्0 0क्

हस्तिनापुर क्9 0भ्

माछरा ब्क् 07

किला फ्म् 0म्

जनपद के लघु सिंचाई विभाग के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रत्येक नलकूप पर प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख रुपए बिजली का खर्च आता है, जबकि जबकि प्रति नलकूप से केवल हर साल बारह हजार रुपए का राजस्व ही आ पाता है। ऐसे में लघु सिंचाई विभाग को सीधे तौर पर ही सवा तीन लाख रुपए से ऊपर प्रति नलकूप का घाटा उठाना पड़ रहा है। ऐसा तो तब है जब इन नलकूपों के रखरखाव के अलावा इन पर सवा सौ ट्यूबवेल ऑपरेटरों की नियुक्ति की गई है।

ये भी घाटे का कारण

जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में लगाए गए अधिकतर सरकारी नलकूप समय-समय पर खराब होते रहते हैं। इनमें से जहां अधिकतर नलकूपों के बोरिंग फेल हो जाते हैं तो कई के पुराने पर पड़ चुके मोटर अक्सर जल जाते हैं। ऐसे आराम की नौकरी करने वाले ट्यूबवेल ऑपरेटर नलकूपों की सुध नहीं लेते। काफी जद्दोजहद के बाद मोटर आदि को वर्कशॉप तक लाया जाता है तो सरकारी काम होने के चलते मोटर महीनों तक वर्कशॉप में ही पड़ा रहता है और मौके पर बंद पड़ी ट्यूबवेल का बिजली बिल लगातार चढ़ता रहता है। उधर, बोरिंग फेल होने वाले मामलों में से ज्यादातर नलकूप या तो सालों हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं या फिर सालों तक बंद पड़े रहते हैं।

आंकड़ों पर एक नजर

जनपद में कुल सरकारी नलकूप- ख्भ्0

नलकूपों कुल बिजली खर्च- 9 करोड़

रखरखाव पर खर्च - भ्0 लाख रुपए सालाना

कुल खर्च-नौ करोड़ पचास लाख

नलकूपों पर तैनात कुल ऑपरेटर : क्फ्0

ऑपरेटर का वेतन : क्भ् से ब्0 हजार प्रतिमाह

प्रति नलकूप आने वाला राजस्व- क्ख्000

कुल नलकूपों पर आने वाला कुल राजस्व- फ्0,00,000

घाटा-नौ करोड़ बीस लाख

बिजली विभाग द्वारा निजी नलकूपों को दिए गए कनेक्शन

शहर फ्,भ्क्फ्

देहात फ्,7भ्,भ्क्8

कुल फ्,7म्,09क्

बिजली विभाग को आने वाले कुल राजस्व -

शहर फ्भ्,क्फ्,000

देहात फ्0,0ब्,क्ब्,ब्00

कुल फ्0,फ्9,ख्7,ब्00

विभाग को नलकूपों पर होने वाले खर्च के सापेक्ष राजस्व बस नाम मात्र का ही आ रहा है। बिजली आदि का बिल लखनऊ स्तर से ही भुगतान किया जाता है।

-विश्राम यादव, अधिशासी अभियंता, लघु सिंचाई विभाग

लघु सिंचाई विभाग से आने वाला बिजली बिल आदि का भुगतान शासन स्तर से किया जाता है। निजी नलकूपों से आने वाला राजस्व विभाग की अपनी आय है।

-एसके गुप्ता, स्टॉफ अफसर, पीवीवीएनएल