यानि या तो आप बीमार हों, या अपंग या फिर समलैंगिक लेकिन इन तीनों स्थितियों में से आखिरी जिंदगी भर के लिए शर्मिंदगी के एक नए दौर की शुरुआत करती है।

एहमत की उम्र बीस साल से ज्यादा नहीं और सेना में भर्ती के लिए जब उससे संपर्क किया गया तो बिना किसी हिचक उसने अधिकारियों से कहा कि वो समलैंगिक है।

एहमत कहते हैं, ''मेरे सच बोलने के बाद उन्होंने मुझसे कई सवाल पूछे जैसे मैंने पहली बार गुदा-मैथुन कब किया, ओरल सेक्स का मेरा अनुभव कैसा था और बचपन में मुझे किस तरह के खिलौनों से खेलना पसंद था.''

एहमत बताते हैं कि कई तरह के सवालों के ज़रिए उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें लड़कियों की तरह कपड़े पहनना और उनके परफ्यूम इस्तेमाल करना अच्छा लगता है।

सैन्य अधिकारियों का कहना था कि एहमत के चेहरे पर हल्की दाड़ी और उसके हावभाव देखकर उन्हें इस बात का विश्वास नहीं होता कि वो समलैंगिक है।

सबूतों की मांग

सेना ने एहमत से कहा कि वो औरतों के पहनावे वाली अपनी एक तस्वीर उन्हें सौंपे और उसके बाद ही उसे सेना की नौकरी से छूट मिल सकेगी। एहमत ने इस बात से तो इंकार कर दिया लेकिन इसकी एवज में उन्होंने जो दिया गया उसे सेना ने मान लिया।

एहमत ने उन्हें सौंपी अपनी एक ऐसी तस्वीर जिसमें वो एक अन्य पुरुष को चुबंन दे रहे थे। अब उन्हें उम्मीद है कि सेना से जल्द उन्हें एक गुलाबी प्रमाण-पत्र मिल जाएगा जो इस बात का दस्तावेज होगा कि वो समलैंगिक हैं और उन्हें सेना की नौकरी से छूट मिल सकती है।

साल दर साल तुर्की में समलैंगिकों के लिए समाज में खुलापन बढ़ रहा है और समलैंगिक क्लबों, होटलों के अलावा पिछली गर्मियों में हुए ‘गे-मार्च’ ने इस मुस्लिम देश को सुर्खियों में पहुंचा दिया।

लेकिन सेना में आज भी समलैंगिकों के लिए माहौल सही नहीं और जो समलैंगिक युवक जाने-अनजाने सेना में भर्ती हो गए उनके अनुभव इस सच को बयान करने के लिए काफी हैं।

1990 में सेना में भर्ती हुए गोखन ने शर्मिंदगी और डर के चलते सेना को अपना लिया लेकिन जल्द ही उन्हे एहसास हो गया कि ये फैसला गलत साबित हुआ है।

वो कहते हैं, ''मैं जानता था कि मुझे अपनी बेहद निजी तस्वीरें दिखानी होंगी। मैंने अपने पुरुष साथी के साथ यौन संबंधों वाली तस्वीर उन्हें दिखाई भी, लेकिन उनका कहना था कि तस्वीर में मेरा चेहरा साफ दिखना चाहिए और ये पता लगना चाहिए कि मैं इस संबंध में ‘महिला-साथी’ की तरह हूं.''

सेना की ओर से उन्हें गुलाबी प्रमाणपत्र तो मिल गया लेकिन गोखन का डर ये है कि वो फोटोग्राफ उन्हें वापस नहीं किए गए और कोई भी कभी भी उनका गलत इस्तेमाल कर सकता है।

तुर्की की सेना ने बीबीसी से बातचीत करने से इंकार कर दिया लेकिन सेना के एक सेवानिवृत्त अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''समलैंगिक लोगों को सेना में भर्ती करना एक मुसीबत है। उनका व्यवहार सामान्य नहीं होगा, उनके लिए अलग सुविधाएं मुहैया करानी होंगी, रहने की अलग जगह देनी होगी। ये मुश्किल भरा काम है.''

लेकिन एहमत और गोखन जैसे हजारों समलैंगिक नौजवान के पास एक ही सवाल है कि, ‘देशप्रेम का जज्बा दिखाने और देश की सेवा के लिए क्या सेना की शर्तों पर खरा उतरना और सेना में भर्ती ही एकमात्र जरिया है.'

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