-केरला से सात दिन में बरेली पहुंचे लैंडरेस शूकर, सात मेल और तीन हैं फीमेल

>BAREILLY :दो करोड़ की लागत से डेनमार्क और न्यूजीलैंड से सात समुंदर पार करके लैंडरेस ट्यूजडे को आईवीआरआई पहुंच गया। लैंडरेस पिग की एक प्रजाति है। जो शूकर प्रोडक्शन बढ़ाने में काफी मुफीद साबित होगा। मंगाए गए लैंडरेस पिग में सात मेल और तीन फीमेल हैं, आईवीआरआई वैज्ञानिकों ने पिग पर निगाह रखना शुरू कर दी है और उनके वातावरण में पिग कैसा फील कर रहे हैं।

दोगुना हाेता है वजन

लाइव स्टॉक प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट सेक्शन के इंचार्ज और प्रिंसिपल साइंटिस्ट ने बताया कि पिग के मीट की देश में अच्छी खासी खपत है। अकेले बरेली शहर में रोजाना सात से दस क्विंटल मीट बिक जाता है। लेकिन, इस मीट की लागत काफी अधिक होती है। मीट की लागत को कम किया जा सके। इसके लिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया है।

सात दिन में पहुंचे बरेली

इंचार्ज ने बताया कि पिग को लेने के लिए आईवीआरआई का ट्रक केरला के लिए रवाना हुआ। सात दिन का सफर तय करने के बाद ट्रक केरला पहुंचा। वहां से पिग को लेकर आईवीआरआई के ओर चला। सात दिन के लगातार सफर के बाद पिग ट्यूजडे को बरेली पहुंचे हैं। इससे पहले लैंडरेस पिग शिप से केरला पहुंचा था।

देशी पिग से कराएंगे प्रजनन

लैंडरेस पिग का देशी पिग से प्रजनन कराया जाएगा। इसके बाद पैदा होने वाले बच्चों पर वैज्ञानिकों की नजर रहेगी। साइंटिस्ट देखेंगे की बच्चा कैसा रिएक्ट कर रहा है। बच्चा कैसा हुआ है। वहीं, वैज्ञानिक डेनमार्क और न्यूजीलैंड से आए 10 पिग पर निगाह रख रहे हैं कि वह बरेली के वातावरण उन पर क्या प्रभाव डाल रहा है।

क्या है लैंडरेस की खासियत

आठ माह में वजन एक क्विंटलके करीब हो जाता है।

अधिकतम वजन तीन क्विंटल होता है।

देशी पिग का वजन 40 से 50 किलोग्राम होता है।

लैंडरेस 110 दिनों में 12 से 14 बच्चे होते हैं।

कम से कम लागत पर अधिक से अधिक मीट का उत्पादन हो सके। इसके लिए लैंडरेस प्रजाति के 10 पिग मंगवाए गए हैं। जिन पर आईवीआरआई लगातर निगाह रख रहा है।

डॉ। जीके गौड़, इंचार्ज लाइव स्टॉक प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट सेक्शन