- करीब 10 राज्यों के घोड़े के व्यापारियों ने चौबारी मेले में की है शिरकत

- खरीदारों को लुभा रही लाख रुपए की नुखरा नस्ल की बसंती

BAREILLY: रामगंगा चौबारी मेले में इस बार बसंती खरीदारों की पहली पसंद बनी हुई है। कीमत 1 लाख है। एटा निवासी राघव ने बताया कि 'बसंती' काठियावाड ब्रीड की घोड़ी है। करीब 3 वर्ष की इस घोड़ी की डिमांड सर्वाधिक है। लेकिन कीमत ज्यादा होने से बिक नहीं पा रही। वहीं, काले रंग की रेखा की बिक्री में 'अपशगुन' रंग रोड़ा बन रहा है। मंडे को घोड़ा बाजार में घोड़ा व्यापारियों ने बेहतरीन नस्ल के घोड़े और घोडि़यों के साथ मेले में शिरकत की है।

राहगीर हो रहे आकर्षित

घोड़ा बाजार में इस बार करीब 10 राज्यों के व्यापारियों अपने बेहतरीन जानवरों के साथ मौजूद हैं। रंग बिरंगे घोड़े घोडियां राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। प्रत्येक व्यापारी के साथ कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा 8 घोडि़यां लेकर बिक्री की आस लगाए हैं। करीब 3 किमी के विशाल क्षेत्रफल में फैले घोड़ा बाजार में इस बार करीब 3 हजार से ज्यादा घोड़े और घोडि़यां मौजूद हैं। जो पंजाब, हरियाणा, गुजरात, बरेली, रामपुर, बीसलपुर, शाहजहांपुर, आगरा, मुरादाबाद, पीलीभीत, गुडगांव व अन्य जिलों और राज्यों से आए हैं। घोड़े और घोडि़यों की कीमत 40 हजार से 1 लाख तक है।

10 हजार तक सजावटी सामान

घोड़े और घोडि़यों की सजावट के सामानों से भी बाजार में कई दुकानें हैं। जिसमें जीन्स, रकाब, लगाम, मोतियों की माला, फूलों का हार व अन्य सभी कुछ मौजूद है। जिसमें सबसे ज्यादा कीमत रकाब की है। विक्रेता राघव ने बताया कि घोड़े पर बैठने के लिए प्रयोग की जाने वाली जीन्स की कीमत 5 सौ से 10 हजार तक है। जिनकी कीमत क्वालिटी के आधार पर डिपेंड करती है। जो कढ़ाईदार, साधारण, गद्देदार, कुशन व अन्य वैराइटी में अवेलेबल है। हालांकि इसमें मोलभाव भी होता है। बाजार में फुलवा, कालिया, सफेदा, मीना, भूरी, भूरा, चंचल, लहरी, नाटे व अन्य नामों के घोड़े और घोडि़यां मौजूद हैं।

घोड़ों की कई नस्ल है मौजूद

घोड़ा बाजार में एक से बढ़कर एक नस्ल के घोड़े लेकर व्यापारी हाजिर हुए हैं। घोडों की नस्ल के जानकार बाबू ने बताया कि बाजार में नुखरा, कठियावाडी, भुटिया, दक्षिणी, मनीपुरी, मारवारी, सिकांग, स्पिती, जनिस्करी ब्रीड मौजूद है। इसमें सर्वाधिक डिमांड नुखरा की हो रही है। क्योंकि नुखरा ब्रीड के जानवर देखने में खूबसूरत होते हैं। वहीं, अन्य ब्रीड के घोड़े केवल दमदार ज्यादा होते हैं। व्यापारियों के मुताबिक रेस के लिए नुखरा का प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन शादियों व अन्य फंक्शन के लिए ही इनकी डिमांड सर्वाधिक होती है। ऐसे में मेले में सर्वाधिक संख्या नुखरा की है।

नहीं होता घर का गुजारा

बीसलपुर से 6 घोड़ी और 5 खच्चरों को बेचने आए बाबू ने बताया कि करीब 20 वर्ष पहले उनके पास 80 से ज्यादा जानवर थे, लेकिन डिमांड खत्म होने की वजह से बिक्री बंद हो गई। भारी वाहनों की की मौजूदगी होते ही लोगों ने घोडों के बजाय वाहन खरीदने लगे। शादियों में भी मंहगी गाडियों का इस्तेमाल होने लगा। घुडदौड़ से आमदनी नहीं होती। इस तरह से घोड़ों और घोडियों से आमदनी का जरिया बंद होता जा रहा है। आमदनी कम होने के बाद उन्हें बेचना शुरू किया। वर्तमान में 11 जानवर उनके पास हैं। कुछ ऐसा ही हाल अन्य व्यापारियों के साथ भी है।