रेलवे स्टेशन और ट्रेन में भटकते मिल रहे बच्चे

आरपीएफ-जीआरपी के पास नहीं कोई शेल्टर होम

GORAKHPUR: घर से भागकर ट्रेनों में पनाह में लेने वाले मासूमों की तादाद बढ़ती जा रही है। ट्रेन, प्लेटफार्म और रेलवे के सर्कुलेटिंग एरिया में मिलने वाले लावारिस हाल बच्चे घर जाने से इनकार कर रहे हैं। बच्चों को गलत हाथों में पड़ने से बचाने वाली आरपीएफ, जीआरपी और एनजीओ की टीमें बेटियों की सुरक्षा को लेकर परेशान हैं। बुधवार को रेलवे स्टेशन पर लावारिस हाल भटक रही दो लड़कियों ने घर जाने से इनकार कर दिया। उनसे दो घंटे से ज्यादा की बातचीत के बाद आरपीएफ ने उनको चाइल्ड लाइन को सौंप दिया। रेलवे स्टेशन पर शेल्टर होम का इंतजाम न होने से काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। एनईआर में एक माह के भीतर 20 से ज्यादा बच्चे मिल चुके हैं।

दो घंटे लगातार रोती रहीं सगी बहनें

बुधवार दोपहर रेलवे स्टेशन पर आठ और 10 साल की दो लड़कियां भटक रही थीं। स्टेशन पर मौजूद सेफ सोसायटी की शर्मिला की नजर उन पर पड़ी। शर्मिला ने जब बच्चियों से बातचीत शुरू की तो दोनों रोने लगी। काफी देर तक वह रोती रहीं। फिर शर्मिला दोनों आरपीएफ पोस्ट पर ले गई। जवानों ने बच्चियों से बात कर उनकी प्रॉब्लम साल्व करने का प्रयास शुरू कर दिया। सामने आया कि दोनों पुणे की रहने वाली हैं। उनके माता-पिता देवरिया में मजदूरी करते हैं। बुधवार को मां ने उनको डांट दिया था। यह भी कह दिया कि जाओ तुम लोग कहीं जाकर मर जाओ। मां की डांट से आहत बेटियां ट्रेन पकड़कर गोरखपुर पहुंच गई। आरपीएफ जवानों ने जब उनको घर पहुंचाने की बात की तो वह कहने लगी कि हमको घर मत भेजिए। हमको ट्रेन से कटकर मर जाना है। परेशान हाल जवानों ने दोनों बच्चियों को चाइल्ड लाइन को सौंप दिया।

बढ़ती जा रही तादाद, नहीं कर पा रहे काउंसिंलिंग

आरपीएफ से जुड़े लोगों का कहना है कि जनवरी में 20 से अधिक लावारिस हाल बच्चे मिल चुके हैं। इनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी हैं। परिवार में प्रताड़ना से तंग होकर निकली लड़कियों को घर भेजने में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। रेलवे स्टेशन पर काउंसिंलिंग सेंटर का अभाव होने से आरपीएफ और जीआरपी के लोग भी मदद नहीं कर पा रहे हैं। फैमिली में ऐसी परिस्थितियां होने से बच्चों के मन में डर होता है। उनको तत्काल घर पहुंचा देने से आगे भी प्रॉब्लम बनी रह सकती है। इसलिए बच्चों को और उनके फैमिली मेंबर्स को बुलाकर काउंसिंलिंग की जरूरत पड़ती है। रेलवे में इस तरह की कोई सुविधा न होने से लावारिस हाल मिले बच्चों को चाइल्ड लाइन को सौंप दिया जाता है।

ैक्ट फाइल

रेलवे एरिया में पाए गए लावारिस हाल बच्चे

अप्रैल 2015 से जनवरी 2018 तक मिले बच्चे- 484

बरामद बच्चों में लड़कियों की संख्या- 88

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार- 15

ब्वायफ्रेंड के साथ घर से निकलीं- 20

बरामद लड़कियों में ज्यादातर की उम्र- 08 से 16 साल

घर से भागने की मुख्य वजह-माता और पिता की पताड़ना

घर से भागने वाले बच्चे रेलवे स्टेशन और ट्रेन पर शरण लेते हैं। ऐसे में उनके गलत हाथों में पड़ने का खतरा रहता है। ज्यादातर मामलों में सामने आया है कि मां-बाप की प्रताड़ना से तंग आकर बच्चों ने घर छोड़ा था। इन परिस्थितियों में बच्चियों के सामने ज्यादा प्राब्लम आती है। बुधवार को रेलवे स्टेशन पर मिली दो बच्चियां घर नहीं जाना चाहती थीं। आरपीएफ की मदद से उनको चाइल्ड लाइन को सौंपा गया।

विश्व वैभव, सोशल वर्कर

स्टेशन पर मिलने वाले बच्चों की अपने स्तर से मदद की जाती है। गार्जियन का पता चलने पर खुद उन तक पहुंचाया जाता है। गार्जियन को हिदायत दी जाती है कि बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार न करें, जिससे वे दोबारा घर से भागे। मैक्सिम बच्चों को उनको परिजनों को सौंप दिया जाता है। इनके परिजन नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। उनको चाइल्ड लाइन के हवाले करना पड़ता है। इसमें जीआरपी और अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं की मदद भी ली जाती है।

एम सिद्दीकी, प्रभारी, आरपीएफ पोस्ट गोरखपुर जंक्शन