GORAKHPUR: रिसर्च अब सिर्फ नाम की नहीं, बल्कि काम की भी होगी। कट, कॉपी और पेस्ट की टेक्नीक अपनाकर अपनी रिसर्च कंप्लीट करने वाले रिसर्च स्कॉलर्स पर यूनिवर्सिटी ने लगाम कसने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत यूनिवर्सिटी एंटी प्लेगियरिज्म सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करेगा, जिसके जरिए स्टूडेंट्स की थेसिस में होने वाली डुप्लिकेसी आसानी से पकड़ी जा सकेगी। इसमें यूजीसी के मानक के मुताबिक कुछ परसेंट डुप्लिकेसी की छूट है, इससे ज्यादा अगर डुप्लिकेट कंटेंट मिलते हैं, तो रिसर्च स्कॉलर को खामियां दुरुस्त कर दोबारा थेसिस सबमिट करनी पड़ेगी।

 

खूब होता है रिसर्च में खेल

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों की मानें तो रिसर्च क्वालिटी के लगातार गिरने की वजह कोई और नहीं बल्कि स्टूडेंट्स का इंटरेस्ट न होना है। वह सिर्फ डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल करने के लिए रिसर्च में एडमिशन ले लेते हैं, लेकिन जब उन्हें प्रोजेक्ट पूरा करना होगा है, तो वह कट, कॉपी और पेस्ट का सहारा लेते हैं और इधर-उधर, तीन-पांच कर अपनी थेसिस पूरी कर लेते हैं। जमा कराने वाले जिम्मेदार भी इस बात पर ध्यान नहीं देते और स्टूडेंट्स डिग्री लेकर निकल जाते हैं, लेकिन इससे न तो रिसर्च स्कॉलर, न संस्थान को ही फायदा होता है और न ही समाज को ही कोई फायदा मिलता है।

 

ईसी की हरी झंडी का इंतजार

एंटी प्लेगियरिज्म सॉफ्टवेयर को लगाने के लिए यूनिवर्सिटी की दूसरी बॉडीज ने हरी झंडी दे दी है। अब 15 दिसंबर को होने वाली एग्जिक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग का इंतजार है। अगर सब कुछ ठीक रहा और यूनिवर्सिटी की ईसी ने भी अपनी हरी झंडी दे दी, तो स्टूडेंट्स को आने वाले दिनों में रिसर्च क्वालिटी को बेहतर करना मजबूरी हो जाएगी। ऐसा न करने की कंडीशन में या तो उनकी पीएचडी कंप्लीट नहीं होगी या उन्हें अपनी थेसिस नए सिरे से दोबारा लिखनी पड़ेगी। इसके लिए उन्हें लिमिटेड टाइम मिलेगा।

 

2013 में हुई थी पहल

यूजीसी की ओर से 2013 में एक नोटिफिकेशन जारी किया गया, जिसके बाद यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वीसी ने स्टूडेंट्स को इसके बारे में जानकारी दी थी। इसके तहत स्टूडेंट्स को अपनी थेसिस 4 हार्ड और 3 सॉफ्टकॉपियों में जमा करनी थी। सॉफ्ट कॉपी में से एक कॉपी यूजीसी को भेजी जानी थी, जो इंटरनेट पर अपलोड की जाएगी। वहीं दूसरी कॉपी इंप्लीनेट और तीसरी कॉपी यूनिवर्सिटी खुद अपने पास रखेगी। इसके बाद थेसिस की जांच की जाएगी। अगर किसी थेसिस का कंटेन्ट दूसरी किसी थेसिस से मिलता जुलाता रहा तो उस थेसिस को यूजीसी उसे रिजेक्ट कर देगी। लेकिन कुछ दिन चलने के बाद यह व्यवस्था फेल हो गई।

 

यूनिवर्सिटी की एसी ने एंटी प्लेगियरिज्म सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के लिए अपनी सहमति दे दी है। 15 दिसंबर को होने वाली एग्जिक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में मामले को रखा जाएगा, वहां से अप्रूवल के बाद इस व्यवस्था को लागू कर दिया जाएगा। स्टूडेंट्स की थेसिस चेकिंग के बाद ही यूजीसी को फॉर्वर्ड की जाएगी।

- शत्रोहन वैश्य, रजिस्ट्रार, डीडीयूजीयू