- आजादी दिलाने वाले कई शहीदों को नहीं मिल सका सम्मान

- इलाहाबाद में एक नहीं बल्कि कई रहे हैं आजादी के दीवाने और परवाने

- जिन्होंने अंगे्रजों से लोहा लेते हुए दे दी जान

ALLAHABAD: शहीदों के चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बस यही अब बाकी निशां होगा लेकिन यहां कई शहीद ऐसे भी हैं, जिनकी चिताओं पर मेला लगना कौन कहे, उन्हें याद करने वाला भी कोई नहीं है। क्योंकि ये गुमनाम शहीद हैं। गुमनाम इसलिए हैं क्योंकि इन्हें याद करने की किसी ने पहल नहीं की, जबकि इलाहाबाद का इतिहास और वर्षो पुराना रिकार्ड इन्हें गुमनाम नहीं बताता। अधिकृत रिकार्ड में भी इन शहीदों का नाम दर्ज हैं। फिर भी ये शहीद गुमनाम हैं। आज हम कुछ ऐसे ही गुमनाम शहीदों को याद करते हैं, जिन्होंने अंग्रेजों को न सिर्फ चुनौती दी, बल्कि सीने पर गोली भी खाई।

इन्हें जिंदा कर रहा है शहीद वॉल

शासन-प्रशासन के साथ ही तमाम संस्थाएं जहां इन गुमनाम शहीदों को जानती भी नहीं, वहीं शहर के कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इलाहाबाद के इन गुमनाम शहीदों को नाम देते हुए जिंदा करने का प्रयास किया। पत्रकार वीरेंद्र पाठक और श्याम सुंदर सिंह पटेल ने जिलाधिकारियों की मदद से प्रयास कर जहां शहीदों का रिकार्ड इकट्ठा किया। वहीं सिविल लाइंस एरिया में शहीद वाल का निर्माण कराया, जो बताता है कि आजादी की लड़ाई में बलिदान देने वालों में कुछ और भी महान बलिदानी थे।

अंग्रेजों के बंदूक के आगे कर दिया था सीना

इलाहाबाद के सीएवी कॉलेज के छात्र त्रिलोकीनाथ कपूर आजादी की लड़ाई में शामिल थे। क्फ् अप्रैल क्9फ्ख् को ब्रिटिश हुकुमत के विरोध में निकले जुलूस में शामिल वीर त्रिलोकीनाथ वंदे मातरम का जयघोष करते हुए सीना खोल कर अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए और कहा, हम नहीं झुकने वाले गोली मारनी है तो सीने पर मारो। त्रिलोकीनाथ कपूर तो अंग्रेजों के सामने नहीं झुके, लेकिन अंग्रेजों ने उनके सीने को गोलियों से छलनी कर दिया।

ललकारते हुए सीने पर खाई थी गोली

आजादी के आंदोलन में इलाहाबाद के अब्दुल मजीद की टोली ने भी अंग्रेजों के नाक में दम कर रखा था। क्फ् अगस्त क्9ब्ख् अब्दुल मजीद अपनी टोली लेकर कोतवाली के पास पहुंचे और हाथ में तिरंगा लेकर पुलिस के आगे खड़े हो गए। जवानों ने कहा, भाग जाओ नहीं तो गोली मार दी जाएगी लेकिन अब्दुल मजीद डरे नहीं आगे बढ़े तो अंग्रेजों ने उन्हें गोली मार कर शहीद कर दिया था।

शरीर छलनी हो गया, तिरंगा नहीं गिरने दिया

मध्य प्रदेश के रहने वाले लाल पद्मधर इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई करते थे। आजादी के आंदोलन में शामिल थे। क्ख् अगस्त क्9ब्ख् को विश्वविद्यालय के छात्रों ने जुलूस निकाला, जिस पर अंग्रेजों ने बंदूक तान दी। लाल पद्मधर ने तिरंगा हाथों में लेते हुए फहराया। अंग्रेजों की गोली ने लाल पद्मधर के शरीर को छलनी कर दिया।

सबसे कम उम्र के शहीद

सीएवी इंटर कॉलेज के छात्र और अहियापुर निवासी भानू वैद्य के पुत्र रमेश मालवीय में देश भक्ति की ऐसी लौ जगी कि वे क्फ् साल के उम्र में ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। क्ख् अगस्त क्9ब्ख् को बलूच रेजीमेंट के नायक को बालक रमेश मालवीय की फेंकी गई ईट का एक टुकड़ा आंख में लगा। जिस पर सिपाहियों ने रमेश की आंख में गोली मार कर उन्हें शहीद कर दिया। मालवीय नगर में आज भी भानू वैद्य का परिवार रहता है।

आजादी के लिए छेड़ी थी जंग

इलाहाबाद के पश्चिम में क्भ् मील दूर महगांव के निवासी काजी सैय्यद मौलवी लियाकत अली ने आजादी के जंग की अगुवाई की। बहादुर शाह जफर का गवर्नर नियुक्त होने के बाद लियाकत अली ने आजादी की जंग छेड़ी। अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर काला पानी में अंतिम सांस तक कैद कर रखा।

युद्ध में साथियों के साथ हुए शहीद

क्8भ्7 के गदर में इलाहाबाद के रामचंद्र म्वीं इन्फैटरी रेजीमेंट के विद्रोही सरदार थे। इनके साथ असैनिक प्रयागवाल सबसे ज्यादा थे। रामचंद्र और लियाकत अली के नेतृत्व में आजादी के दीवाने युद्ध कर रहे थे। कर्नल नील के बनारस से आने पर युद्ध में अपने साथियों के साथ शहीद हुए।

सत्य का आग्रह करने की दी सजा

स्वतंत्रता आंदोलन में शहर का मध्य भाग आंदोलनकारियों का केंद्र था। क्ब् अगस्त क्9ब्ख् को अंग्रेजों भारत छोड़ों का दारा लग रहा था। ख्ख् वर्षीय हीवेट रोड निवासी द्वारिका प्रसाद को ब्रिटानी हुकूमत ने सत्य का आग्रह करने की सजा दी और गोलियों से भून दिया गया।

बलूच सैनिकों का किया था विरोध

क्ख् अगस्त इलाहाबाद की क्रांति के लिए विशेष दिन था। दस्तावेजों में दर्ज है कि जाति से जमादार ननका जी ने चौक में बलूच सैनिकों का जमकर विरोध किया। बख्सी बाजार के रहने वाले ननका जी अंतिम सांस तक पीछे नहीं हटे और सत्याग्रह पर डटे रहे। सिपाहियों के संगीनों से नहीं डरे और सिपाहियों की गोली से देश के लिए शहीद हो गए।

बर्बरता के हुए शिकार

ब् जनवरी क्9फ्ख् इलाहाबाद के लिए काला दिन था। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में शहर के दरबेश्वरनाथ मंदिर के पास से जुलूस निकला। जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। भीड़ डटी रही तो घुड़सवार पुलिस ने घोड़े दौड़ा कर सत्याग्रहियों को घोड़े से कुचल डाला। जिसमें नियामतुल्ला सहित चार लोग बर्बरता के शिकार हुए।

हंसते-हंसते कुर्बान हो गए

चार जनवरी क्9फ्ख् को दरबेश्वरनाथ मंदिर से निकले आजादी के जुलूस में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र हर नारायण शामिल थे। जो अंग्रेजों के विरोध के बाद भी तिरंगा लिए डटे रहे, डरे नहीं और हंसते-हंसते प्राणों को कुर्बान कर दिया। अंग्रेज सैनिकों ने तब तक कुचला, जब तक हर नारायण के प्राण पखेरू नहीं उड़ गए।

सीने पे गोली खाई

मुरारी मोहन भट्टाचार्य शाहगंज में रहते थे और झा एंड कंपनी दवा की दुकान में कार्य करते थे। आजादी का जोश इतना था कि सत्याग्रहियों के साथ निकल पड़े। अंग्रेजों की गोली ने इन्हें अपना निशाना बनाया।