नंबर गेम

- 2524 फुटकर दवा की दुकानें हैं जिले में

- 500 फुटकर दवा दुकानें रजिस्टर्ड हैं शहर में

- 2524 फार्मासिस्ट पंजीकृत हैं जिलेभर में

- 500 फार्मासिस्ट पंजीकृत हैं शहर में

- 96 दुकानों का सत्यापन होना बाकी है फार्मासिस्ट के अभाव में

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- सरकार से जेनेरिक दवाएं लिखे जाने का आदेश जारी होने के बाद भी मुश्किल है इसका अनुपालन

- जेनेरिक दवा में डॉक्टर्स लिखते हैं सिर्फ साल्ट जबकि बिना फार्मासिस्ट वाली दुकानों पर इसे समझना है मुश्किल

GORAKHPUR: गवर्नमेंट ने जेनेरिक दवाएं लिखे जाने का निर्देश जारी कर दिया है लेकिन इसे अनुपालन में कई मुश्किलें हैं। आदेश के बाद डॉक्टर्स से लेकर मेडिकल स्टोर संचालकों तक में खलबली जरूर मची हुई है लेकिन यह तत्काल लागू होता नजर नहीं आ रहा। डॉक्टर्स जहां कमीशन के लालच में बड़ी कंपनियों की दवाएं लिखने का मोह नहीं छोड़ पा रहे वहीं साल्ट दवाएं लिखे जाने में एक मुश्किल यह भी है कि जेनेरिक दवाओं में सिर्फ साल्ट लिखी जाती है। ऐसे में मेडिकल स्टोर्स पर इसे समझने के लिए फार्मासिस्ट का होना जरूरी है जबकि तमाम मेडिकल स्टोर्स में 10वीं, 12वीं पास युवक काम करते मिल जाएंगे। मेडिकल स्टोर्स सिर्फ फार्मासिस्ट के नाम पर चल रहे हैं

नहीं हैं एक्सपर्ट फार्मासिस्ट

शहर के मेडिकल स्टोर्स पर एक्सपर्ट फार्मासिस्ट नहीं हैं। बिना फार्मासिस्ट के ही यह दुकानें चल रही हैं। जेनेरिक दवाएं लिखे जाने की स्थिति में दुकानों पर एक्सपर्ट फार्मासिस्ट का होना जरूरी है।

लिख रहे ब्रांडेड दवाएं

जेनेरिक दवाएं लिखे जाने के आदेश से हड़कंप की स्थिति भले ही हो लेकिन इसका पालन कहीं नहीं हो रहा। आदेश के बाद भी डॉक्टर दवाओं के साल्ट की जगह ब्रांड का नाम ही लिख रहे हैं। वहीं दवाओं को कैपिटल लेटर में लिखना तो दूर, इस तरह लिख रहे हैं कि कोई उसे पढ़ ही न पाए।

आंकड़े और हकीकत में है अंतर

विभाग के आंकड़े की बात करें तो शहर हो या जिला, दवा की जितनी दुकानें हैं, उतने ही फार्मासिस्ट हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही है। हकीकत यह है कि फार्मासिस्ट के नाम पर दवा दुकानें तो हैं लेकिन रूरल एरिया की बात तो छोड़ दें, शहर में भी कुछ ही दुकानें ऐसी मिलेंगी जहां फार्मासिस्ट बैठते हैं। यही कारण है कि समय-समय पर जब विभाग की टीम जांच करने निकलती हैं तो दुकानों के शटर गिरने लगते हैं और संचालक फरार हो जाते हैं।

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कॉलिंग

जेनेरिक दवाएं कम कीमत पर मिल जाती हैं जबकि ब्रांडेड दवाएं अधिक कीमत में मिलती हैं। कुछ लोकल सप्लायर्स हैं जो दवा बनाते हैं और 100 से 150 एमआरपी रेट पर मेडिकल स्टोर्स पर सेल करते हैं इस आदेश से काफी हद तक लगाम लग जाएगा। वहीं सभी दुकानों पर एक्सपर्ट फार्मासिस्ट होने चाहिए।

उमेश पांडेय, चीफ फार्मासिस्ट

फार्मेसी एक्ट में रिटेल मेडिकल स्टोर पर दवाएं सिर्फ फार्मासिस्ट ही लिखेगा। सरकार की नीति अच्छी है। इससे जेनेरिक दवाओं के रेट में इजाफा होगा। इलाज भी सस्ता होगा। आम जनता और गरीब के लिए वरदान साबित होगा। हालांकि एक्सपर्ट फार्मासिस्ट ही डॉक्टर की लिखी हुई पर्ची को समझ सकता है। मेडिकल स्टोर्स पर अभी भी फार्मासिस्ट नहीं है।

- डीके सिंह, महामंत्री, डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन

डॉक्टर जेनेरिक और मिश्रणयुक्त दवाएं कम लिखते हैं ऐसे में वे अधिक लिखेंगे तो अच्छी बात है लेकिन इसका मरीजों को फायदा तभी होगा जब जेनेरिक दवाओं की कीमत कम की जाए। डॉक्टर अपनी पर्ची पर जिस कंपनी की दवाएं लिखते हैं वह क्लीयर नहीं होता जिससे परेशानी होती है। यदि वह कंप्यूटर से दवाओं को प्रिंट निकालें तो दुकानदार को काफी सहूलियत होगी। वहीं मेडिकल स्टोर्स पर फार्मासिस्ट की अनिवार्यता जरूरी है।

दिलीप सिंह, दवा व्यापारी

नियम को सार्थक तभी माना जाएगा जब जेनेरिक दवाओं के एमआरपी को कम किया जाए। इस समय जेनेरिक दवाएं काफी महंगी चल रही हैं। इसके रेट पर सरकार को कंट्रोल किया जाना चाहिए। वहीं डॉक्टर इस तरह लिखते हैं कि दवाएं काफी हद तक समझ नहीं आती। ऐसे में साल्ट लिखते समय साफ-सुथरा लिखा जाना चाहिए या प्रिंट निकाला जाना चाहिए।

अरुण बंका, दवा व्यापारी