कैसे बनी तांत्रिक
उज्जैन में अप्रैल में होने वाले सिंहस्थ के लिए यहां पर एक ऐसी अघोरी तांत्रिक भी पहुंची हैं, जिसने काफी चर्चा बटोर ली है। इस अघोरी तांत्रिक ने अमेरिका से पीएचडी की फिर इसके बाद भारत आकर श्मशान साधना करने लगी। पुराणों में महिलाओं को भले ही श्मशान जाने की इजाजत न हो लेकिन महाकाल की नगरी पहुंची शिवानी दुर्गा बचपन से ही श्मशान आया-जाया करती थी। उन्हें उनकी दादी श्मशान में लाकर चिताओं को प्रणाम करवाती थीं। लगभग रोज ऐसा करने से शिवानी भी निडर बन गई और उनके अंदर आध्यात्मिक प्रवृत्ति ने जन्म लिया।
दुनिया में फैले हैं अनुयायी
शिवानी जब बड़ी हुईं तो माता-पिता ने पीएचडी के लिए अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी भेज दिया। वापस आते ही शिवानी ने परिजनों के विरोध के बावजूद नागनाथ योगेश्वर गुरु से अघोर तंत्र की दीक्षा ली और फिर उन्हीं के साथ श्मशान जाकर शव साधना की। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन इसे ही समर्पित कर दिया और सर्वेश्वरी शक्ति इंटरनेशनल अखाड़ा की स्थापना की। आज उनके भक्त और अनुयायी दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं।
पश्चिमी देशों के तंत्र में भी माहिर
शिवानी सिर्फ अघोर तंत्र ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों के रहस्यमय तंत्र शास्त्र विक्का, वोडु, सोर्करी की भी सिद्ध साधिका हैं। इन में पारंगत होकर उन्होंने सभी विधाओं की समानताओं को जोड़कर नई पद्धतियां भी विकसित की हैं। अघोर तंत्र का नाम सुनते ही जहां लोग सहम से जाते हैं, वहीं शिवानी का मानना है कि अघोरी तो सभी होते हैं, क्योंकि अघोर शिव का रूप है और शिव का वास तो हर जगह है।
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