- आईएमए सीजीपी में आए स्लीप मेडिसिन के एक्सपर्ट डॉ। हिमाशुं गर्ग ने नींद से जुड़ी बीमारियों के बारे में बताया

- युवाओं में रात को गैजेट्स के यूज से बढ़ गई स्लीप एपनिया की प्रॉब्लम

- शोध में खुलासा, शहरी इलाकों के 60 फीसदी लोग नींद को लेकर हाई रिस्क पर

KANPUR: अगर आप यह सोचते हैं कि रात को तेज खर्राटों के साथ आने वाली नींद सच में अच्छी नींद है तो आप गलत हैं। और अगर आप रात को मोबाइल पर ज्यादा देर बातें करते हैं या फिर देर रात तक टीवी देखने के बाद सोते हैं तो कम ही संभावना है कि आपको अच्छी नींद आएगी। सोमवार को मेडिकल कॉलेज में चल रहे आईएमए सीजीपी में स्लीप मेडिसिन के एक्सपर्ट डॉ। हिमाशुं गर्ग ने नींद न आने की वजह से होने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मौजूदा दौर में अच्छी नींद नहीं आने की वजह से 80 प्रकार की बीमारियों का पता लगाया गया है। अपने शोध के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि शहरी इलाकों में रहने वाले 60 फीसदी लोग अलग अलग वजहों से नींद नहीं पूरी होने के चलते हाई रिस्क पर हैं।

स्लीप एपनिया से बढ़ रही क्रोनिक डिसीज

गुड़गांव के आर्टिमिस हॉस्पिटल में स्लीप मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ। हिमाशुं गर्ग ने बताया कि मौजूदा दौर में शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों में लाइफस्टाइल की वजह से स्लीपिंग डिसआर्डर्स की प्रॉब्लम काफी बढ़ गई है। इस वजह से एंग्जाईटी, हाईपर टेंशन की शिकायत सबसे ज्यादा बढ़ी है। जिसकी वजह से अब इनकी दवाएं भी नार्मल दवाओं के साथ लिखने की डॉक्टर्स की मजबूरी हो गई है। उन्होंने बताया कि नींद पूरी नहीं होने से अब 80 प्रकार की बीमारियों का पता लगाया जा चुका है। सबसे ज्यादा प्रॉब्लम स्लीप एपनिया की सामने आती है। जिसके होने की वजह से डायबिटीज, हार्ट और ब्रेन से जुड़ी कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। स्लीप एपनिया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बीमारी में सोते समय ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।

दवा अच्छी नींद की गारंटी नहीं

डॉ। गर्ग ने बताया कि डॉक्टर्स अब नार्मल बीमारियों में भी पेशेंट्स को 7 से 8 घंटे सोने की सलाह देते हैं। इसके लिए वह नींद की दवा भी लिखते हैं, लेकिन नींद की गोली खाने से भी यह जरूरी नहीं होता है आपको अच्छी नींद आएगी। उन्होंने नींद की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में बताया कि ड्रीमिंग स्लीप ज्यादा बेहतर होती है। जिसमें सोते समय आपको सपने आते हैं। इसका असर अगले दिन आपके कामकाज पर भी पड़ता है, लेकिन मौजूदा दौर में खास तौर से शहरों में नॉन ड्रीमिंग स्लीप या स्लो वेव स्लीप में ही लोग ज्यादा सोते हैं।

गैजेट्स का यूज उड़ा रहा नींद

डॉ। गर्ग ने बताया कि हाल ही में उनकी टीम ने एक शोध किया जिसमें पता चला कि शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को गैजेट्स जैसे की मोबाइल, गेमिंग डिवाइस और देर रात तक टीवी देखने की आदत बीमार बना रही है। यह शोध उनके पास आए 1 हजार लोगों पर किया गया जिन्हें कई तरह की बीमारियां थीं लेकिन सबको नींद से जुड़ी कुछ न कुछ प्रॉब्लम थी। इसमें से 60 फीसदी लोगों में स्लीपिंग डिसऑर्डर की प्रॉब्लम सामने आई। शोध के बारे में उन्होंने बताया कि रात को मोबाइल के स्क्रीन से निकलने वाली लक्स टाइप रोशनी हानिकारक होती है। इसका सीधा असर आपकी नींद पर पड़ता है। सोते समय मोबाइल को अपने से दूर रखना बेहद जरूरी हाेता है।

प्रेगनेंसी में कम नींद ठीक नहीं

वहीं आईएमए प्रेसीडेंट डॉ। किरन पांडेय ने बताया कि प्रेगनेंसी के समय जो महिलाएं ठीक से नहीं सोती हैं उनमें कई तरह की प्रॉब्लम्स सामने आती हैं। जिसमें से बच्चे की ग्रोथ पर भी असर पड़ता है साथ ही जल्दी डिलीवरी होने की संभावना भी रहती है। वहीं बच्चों को कम से कम 10 घंटे की नींद की सलाह डॉक्टर्स देते हैं क्योंकि सोते समय ही बच्चों में सबसे ज्यादा ग्रोथ होती हैं।

पावर नैप या योगनिद्रा से दूर होगी प्रॉब्लम

नींद से जुड़ी बीमारियों से बचाव का एक रास्ता प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ। राजीव कक्कड़ ने बताया कि पावर नैप या योगनिद्रा से नींद से जुड़ी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। उन्होंने दिमागी प्रणाली को बताते हुए समझाया कि ब्रेन आपकी नींद का पूरा हिसाब रखता है और उसी के हिसाब से आप रियेक्ट भी करते हैं। ऐसे में अगर आप ठीक से नहीं सोये हैं तो स्लीप रिकवर करने के लिए पॉवर नैप सबसे ज्यादा उपयोगी होती है। इसके अलावा योग निद्रा के जरिए भी अच्छा ऑप्शन है लेकिन इसका अभ्यास काफी कठिन होता है।

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इंडोस्कोपी से ब्रेन की सर्जरी हुई आसान

वहीं सीजीपी में आए सहारा हॉस्पिटल लखनऊ में न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ। मजहर हुसैन ने न्यूरो सर्जरी में इंडोस्कोपी के यूज पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि अभी तक इंडोस्कोपी से शरीर के विभिन्न हिस्सों में सर्जरी होती थी लेकिन अब अच्छी कैमरा तकनीक आने की वजह से इंडोस्कोपी से न्यूरो सर्जरी भी बढ़ गई है जिसमें रिकवरी सबसे जल्दी होती है। हालाकि बड़े ट्यूमर के ऑपरेशन में नार्मल सर्जरी प्रोसीजर ही अपनाया जाता है। वहीं डॉ। हुसैन ने बताया कि आज कल जो एक्सीडेंट्स होते हैं उसमें हेड इंजरी से होने वाली सबसे ज्यादा मौतें हाई वे पर ही हैं। एक्सप्रेस वे में होने वाले एक्सीडेंट्स में तो 90 फीसदी केसों में पेशेंट मर जाते हैं। वहीं प्रोग्राम डॉयरेक्टर डॉ। विकास शुक्ला ने इंडोस्कोपी से स्पाइन सर्जरी पर भी चर्चा की।