-आज विधानसभा में होगी लोकायुक्त पर बहस

-मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, पूर्व मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक सभी दायरे में

-तमाम कर्मचारी और अधिकारी भी लोकायुक्त के दायरे में

देहरादून

सूबे की टीएसआर सरकार ने सोमवार को विधानसभा में उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक-2017 पेश कर दिया। आज विधानसभा में इस पर बहस होगी। ये विधेयक खंडूड़ी के 2011 के लोकायुक्त की तरह ही सशक्त है। इस ड्राफ्ट के अनुसार राज्य में लोकायुक्त नाम की संस्था में चेयरमैन के अलावा अधिकतम चार सदस्य होंगे। चेयरमैन हाईकोर्ट का जज होगा या फिर रिटायर जज होगा। चैयरमैन के अलावा जो चार सदस्य लोकायुक्त संस्था में होंगे उमें से आधे न्यायिक सदस्य होंगे। इसके अलावा इनमें कम से कम पचास फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग से संबद्ध होंगे।

ऐसे होगी चयन समिति

सदन में जो ड्राफ्ट पेश किया गया है उसके अनुसार लोकायुक्त के चयन के लिए जो चयन समिति का प्रारूप बनाया गया है उसमें मुख्यमंत्री को अध्यक्ष के तौर पर रखा गया है। सीएम के अलावा नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, राज्य के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित हाईकोर्ट का कोई न्यायाधीश शामिल होगा। इनके अलावा एक सदस्य ऐसा हो सकता है जो ऊपर दर्शाए गए अध्यक्ष और सदस्यों की संस्तुति के आधार पर राज्यपाल द्वारा नामित कोई विख्यात विधिवेत्ता हो।

नियुक्ति की अवधि

लोकायुक्त संस्था में चुने जाने वाले अध्यक्ष और हर सदस्य की नियुक्ति की अवधि पांच साल के लिए होगी। इसके लिए अधिकतम आयुसीमा 70 साल रखी गई है। 70 साल की उम्र में संस्था के सदस्य या अध्यक्ष रिटायर हो जाएंगे। लोकायुक्त संस्था के चेयरमैन यानि अध्यक्ष का वेतन और भत्ते हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के बराबर होंगे, जबकि दूसरे सदस्यों का वेतन और भत्ते हाईकोर्ट के जज की तरह होंगे।

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कौन-कौन होगा लोकायुक्त के दायरे में

लोकायुक्त की जांच के दायरे में सीएम, पूर्व सीएम और तमाम विधायक और मंत्री होंगे। राज्य में रहे तमाम पूर्व मंत्री भी लोकायुक्त के दायरे में आएंगे। वर्तमान विधायक और पूर्व विधायक भी इसके अधीन होंगे। तमाम लोक सेवक भी लोकायुक्त के दायरे में रहेंगे। इनमें से समूह क और ख का कोई अधिकारी या उसके बराबर पद रखने या उच्चतर अधिकारी भी इसके दायरे में होंगे, चाहे वे वर्तमान में कार्यरत हों या फिर काम कर चुके हों।

-मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री के साथ-साथ सभी मंत्री और पूर्व मंत्री लोकायुक्त के दायरे में होंगे

-विधानसभा के सभी वर्तमान और पूर्व सदस्य लोकायुक्त के दायरे में आएंगे

-समूह क, ख, ग, घ के तमाम अधिकारी, पदाधिकारी और कर्मचारी लोकायुक्त के अधीन आएंगे

-ऐसे तमाम अध्यक्ष, सदस्य और अधिकारी जो विधानसभा के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित या राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित निकाय, बोर्ड से जुड़े हों या रहे हों।

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मुख्यमंत्री के मामले में कुछ प्रावधान

विधानसभा में पेश लोकायुक्त ड्राफ्ट के अनुसार सीएम को भी लोकायुक्त के दायरे में रखा गया है लेकिन इसमें कुछ अलग प्रावधान किया गया है। इसके मुताबिक लोकायुक्त सीएम के खिलाफ किसी मामले में तब तक जांच नहीं करेगा जब तक लोकायुक्त के अध्यक्ष और सभी सदस्य मिलकर उस जांच को शुरू करने के लिए विचार नहीं करते। ऐसी जांच के लिए कम से कम चार सदस्यों का अनुमोदन जरूरी होगा। इतना ही नहीं, ये पूरी जांच एक बंद कमरे में कराई जाएगी और यदि लोकायुक्त इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि शिकायत को खारिज कर दिया जाए तो जांच के अभिलेख प्रकाशित नहीं किए जाएंगे और ये किसी को उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे।

जांच कब हो पूरी?

लोकायुक्त के ड्राफ्ट में जांच की अवधि भी तय की गई है। इसके मुताबिक प्रारंभिक जांच साधरणतया शिकायत मिलने की तरीख से 60 दिन के भीतर पूरी की जाएगी। लेखबद्द किए जाने वाले कारणों के चलते इसे 90 दिन के अंदर पूरा करना होगा। यदि लोकायुक्त शिकायत की जांच करने की कार्रवाई करने का फैसला करता है तो वो किसी अभिकरण को इसकी जल्द जांच का आदेश देगा और अपने आदेश की तारीख से 6 महीने के भीतर जांच पूरी कराएगा। लेकिन उसे इसे बढ़ाने का भी अधिकार होगा।

लोकायुक्त की कुछ विशेष शक्तियां

-लोकायुक्त किसी के खिलाफ केस चलाने के लिए सरकारी वकीलों के अलग दूसरे वकीलों के पैनल की भी नियुक्ति कर सकता है

-कतिपय मामलों में लोकायुक्त को सिविल न्यायालय की शक्तियां होंगी। यानि वो किसी को समन भेज सकता है

-भ्रष्टाचार के मामले में लोकसेवक के ट्रांसफर और सस्पेंशन आदि तथा अन्य संगत विषयों पर सिफारिश कर सकता है

वर्जन

ये भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई है। लोकायुक्त बिल के अनुसार भ्रष्टाचार में दोषी पाया गए लोकसेवक को दंड मिलेगा। आज सदन में इस बिल पर चर्चा होगी। जो भी सुझाव आएंगे, उन पर अमल किया जाएगा।

-प्रकाश पंत, संसदीय कार्य मंत्री