Meerut : टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने की मुझे कोच बनने के लिए एप्रोच किया था, बीसीसीआई को आवेदन भी कोहली के कहने पर दिया था। विराट कोहली चाहते थे कि मैं टीम इंडिया का कोच बनूं। किंतु हर जगह कप्तान की नहीं चलती। सोमवार को मेरठ पहुंचे मुल्तान के सुल्तान वीरेंद्र सहवाग ने साफ कर दिया कि कोच से लेकर प्लेयर और कमेंटेटर के चयन में कप्तान की भूमिका अवश्य होती है किंतु हर फैसला उसके हाथ में नहीं होता। विस्फोटक बल्लेबाज रहे सहवाग मेरठ में चल रहे जागरण क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में विजेता टीम को पुरस्कृत किया। इससे पहले वे दैनिक जागरण कार्यालय पहुंचे और क्रिकेट से जुड़े तमाम पहलुओं पर बातचीत की।

 

भविष्य किसने देखा?

सहवाग से पूछा गया कि आप सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय रहते हैं। सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर आपकी राय सामने आती रहती हैं। क्या आगे सियासी पारी का कोई इरादा है? सहवाग का कहना था कि किसी भी मसले पर राय रखने की सोशल मीडिया से सहूलियत मिली है लेकिन अभी किसी सियासी पारी का इरादा नहीं है। आगे की मैं कुछ नहीं कह सकता। क्रिकेट पर स्टार कल्चर हावी होता जा रहा है। कप्तान कोच से लेकर कमेंटेटर तक तय कर रहा है। इस पर सहवाग का कहना था कि कप्तान का थोड़ा-बहुत प्रभाव हमेशा से ऐसे ही था। अभी अगर मेरे कोच बनने वाली बात को लें तो कप्तान विराट कोहली ने मुझसे संपर्क किया। मैंने आवेदन किया। लेकिन मैं कोच नहीं बना।

 

विवाद पर बेबाक बयान

चर्चा रही कि भारतीय टीम के कोच पद के लिए आपने औपचारिक तरीके से आवेदन नहीं किया। सिर्फ कुछ लाइनों में अपना बायोडेटा भेज दिया। इस पर सहवाग ने बेबाक बयानी करते हुए कहा कि सूत्रों के हवाले पर सच्चाई की पुष्टि न हीं की जा सकती। मैंने सभी औपचारिकताएं की थी, एक लाइन वाली बात मीडिया के दिमाग की उपज थी। सहवाग ने क्रिकेट प्रशासक के तौर पर भी फिलहाल अपनी भू्मिका से इन्कार किया।

 

बायोग्राफी के बारे में सोच रहा हूं

आत्मकथा के सवाल पर सहवाग ने कहा कि तमाम क्रिकेटर्स की जीवनी आ रही हूं। मैं भी इस बारे में सोच रहा हूं। अच्छे लेखक की तलाश है। हो सकता है कि जल्द ही इस बारे में आपको पता चले। अपनी बायोपिक के सवाल पर सहवाग ने कहा कि अभी न तो इस बारे में उनसे कोई संपर्क किया गया है और न ही उन्होंने भी इस बारे में उन्होंने कुछ सोचा है। मेरा मानना है कि रेसलर सुशील कुमार की बायोपिक आनी चाहिए। उनके संघर्ष को मैंने करीब से देखा है।

 

मुरलीधरन रहे सबसे मुश्किल

बतौर स्टार बल्लेबाज अपनी पारी के अनुभव साझा करते हुए सहवाग ने कहा कि दुनिया के किसी तेज गेंदबाज को खेलने से पहले मैंने ज्यादा नहीं सोचा। लेकिन मुरलीधरन को खेलने में थोड़ी मुश्किल हुई, उनकी गेंदों को समझने में 7 साल लग गए। उनके लिए अलग से रणनीति बनानी पड़ी।

 

देश हित पहले, खेल बाद में

भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध के सवाल पर सहवाग ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर पर मेरा मानना है कि हमें पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए। लेकिन इस बारे में फैसला सरकार लेगी। मेरा साफ मानना है कि पहले देश, उसके बाद खेल। विभिन्न स्कूलों से आए छात्रों के सवालों के जबाव सहवाग ने दिए।

 

सहवाग मंत्रा

-खेल के साथ पढ़ाई पर पूरा ध्यान दें छात्र-छात्राएं।

 

-खेल निर्धारित क्षेत्र में सफलता दिलाता है, पढ़ाई से सफलता की कोई सीमा नहीं।

 

-खेल में करियर 15 साल में बनते हैं, इसलिए धैर्य रखें।

 

-स्कूल के बाद हर दिन दो घंटे का खेल पर्याप्त है।

 

-अपने हुनर को पहचानें और हर दिन उसे निखारने का प्रयास करें।

 

-बच्चों पर अधिक दबाव देने की बजाय परिजन भी संयम रखें।

 

-स्कूल में केवल ट्रेनिंग होती है, खिलाड़ी स्कूल के बाद तैयार होते हैं।

 

-दूसरों के कहने से स्वयं को न बदलें, आप से बेहतर आपको कोई नहीं जानता।

 

-नियमित अभ्यास से ही निखरता है प्रदर्शन, वह चाहे पढ़ाई हो या खेल।

 

-खेल हो या पढ़ाई, फेल न होना और न ही फेल होने से डरना।