मामला ब्रितानी कंपनी वोडाफ़ोन के वर्ष 2007 में चीन की कंपनी हचिंसन कम्युनिकेशन की भारतीय संपत्तियों को 11 अरब डॉलर में ख़रीदने का है।

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाई कोर्ट के उस फ़ैसले को अनुचित ठहराया जिसके तहत वोडाफ़ोन को 11000 करोड़ की राशि भरने को कहा गया था। उधर वोडाफ़ोन का कहना था कि इस समझौते के तहत उस पर कोई कर नहीं लगता।

वोडाफ़ोन का तर्क था कि उसने हचिंसन के जिस विभाग का सौदा किया है उसमें वोडाफ़ोन की नीदरलैंड्स स्थित कंपनी सीजीपी इन्वेस्टमेंट्स का 67 प्रतिशत हिस्सा है और वह केयमैन आयलैंड्स में (यानी भारत के बाहर) पंजीकृत है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि आयकर विभाग वो 2500 करोड़ वोडाफ़ोन को दो महीने के भीतर, चार प्रतिशत के ब्याज के साथ लौटाए। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से चार हफ़्ते के भीतर 8500 करोड़ की बैंक गारंटी भी लौटाने का आदेश दिया है।

'अन्य कंपनियों को भी राहत मिलेगी'

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कंपनी ने एक बयान में कहा, "न्यायालय इस निर्णय पर पहुँचा है कि वोडाफ़ोन के हचिंसन एसआर को ख़रीदने के मामले में उसे किसी तरह का कर चुकाने की ज़रूरत नहीं है."

पर्यवेक्षकों का कहना है कि आठ अन्य विदेशी कंपनियाँ भारत में इसी तरह के मामलों का सामना कर रही हैं और उन्हें भी राहत मिल सकती है।

प्राइस वाटरहाऊस कूपर्स के कार्यकारी निदेशक संदीप लड्डा ने कहा, "इस फ़ैसले से देर से लंबित पड़ा न्यायिक मामला अंजाम तक पहुँच गया है जिसने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काफ़ी अनिश्चितता पैदा कर दी थी। अब ऐसे ही मामले झेल रही अन्य कंपनियों के भी राहत मिल सकती है."

हालाँकि वर्ष 2013 में लागू होने वाली भारत की नई कर संहिता में ऐसे प्रावधान है जिनके तहत ऐसे सौदों पर कंपनियों को कर देने होगा। ग़ौरतलब है कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ पश्चिमी कंपनियों के लिए अहम हैं।

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