नवाबगंज विधानसभा का एक गांव बढ़ेपुरा, सुबह 10: 30 बजे का समय, बूथ के बाहर इक्का-दुक्का लोगों को देख थोड़ी निराशा हुई। वोटिंग का सच जानने के लिए कदम यूं ही बूथ के अंदर बढ़े तो जो जानकारी मिली वह बेहद सुकून देने वाली थी। इतना साफ हो गया था कि मतदाता अब जाग गया है। महज तीन घंटों में ही गांव के तीस परसेंट से अधिक लोगों की वोटिंग इसकी गवाही देने के लिए काफी थी कि अपना भाग्य विधाता हम यूं ही किसी को नहीं बन जाने देंगे। बूथ से बाहर निकले तो लाइन में लगी कुछ युवतियों पर नजर गई। पहली बार वोट दे पाने की खुशी और उत्साह इनके चेहरे पर साफ झलक रहा थी। 18 साल की आरजू और इतनी की उम्र की ममता गंगवार कहती हैं कि अब हम किसी की नहीं सुनेंगे। वोटिंग हमारा हक है और ये उसी को जाएगा जो हमारी बात करेगा, हमारे भविष्य के बारें में सोचेगा। पीलीभीत रोड पर स्थित लभेड़ा के एक स्कूल में वोटिंग करने पहुंचे 70 साल के नगीना की बातें इस बार तस्दीक करने के लिए काफी थीं कि वोटर्स अब नेताओं की लुभावनी बातों के जाल में कतई फंसने वाला नहीं। नगीना कहते हैं, जाति और धर्म को हम वोटिंग के रास्ते में नहीं आने देते, बस जो विकास की बात करेगा, समर्थन उसी को देंगे। इस पोलिंग सेंटर से निकल कर हमारी गाड़ी बरेली सिटी की ओर ही बढ़ी थी कि सड़के किनारे ही खेतों में काम करते कुछ लोगों पर नजर पड़ी। गाड़ी रोक कर हम उनके पास पहुंचे और सवाल दागा, वोट देने नहीं जाएंगे क्या, जवाब में एक सुर में आवाज आई, वोट तो जरूर देंगे साहब, बस खेतों का काम कर लें, गेंहू की फसल को नुकसान हो रहा है। रोजी रोटी के लिए यह काम अहम है लेकिन वोट की अहमियत को हम समझते हैं। इन अल्फाजों ने कानों तक इस अहसास के साथ दस्तक दी कि लोकतंत्र अब करवट ले चुका है।

मीरगंज

'रामभरोसे' से लोकतंत्र का 'भरोसा'

आसमां से टपकती बारिश की बूंदें भी उम्र के नौ दशक से ऊपर देख चुके रामभरोसे लाल के कदमों को पोलिंग बूथ तक जाने से नहीं रोक पाई। बीमारियों से घिरे रामभरोसे को भले ही अपनी वोट की ड्यूटी निभाने के लिए अपने दो नौजवान बेटों का सहारा लेना पड़ रहा हो, लेकिन वोटिंग के लिए ये जज्बा सारी परेशानियों पर भारी दिखा। चलते-चलते चर्चा छिड़ी तो बोले, बेटा एक वोट से तो किस्मत बदल जाती है, जब हमारा मत इतना अहम बदलाव कर सकता है तो हम आज के दिन घर में कैसे बैठे रहें। बरेली-नई दिल्ली हाइवे से चंद किलोमीटर दूर करीब 12 सौ घरों वाले अगरास गांव के इस बुजुर्ग की यह बातें उन लोगों के लिए किसी नसीहत से कम नहीं हैं जो किसी न किसी बहाने से वोट देने से बचते रहते हैं। रामभरोसे की तरह गांव के अधिकांश लोग भी लोकतंत्र के भरोसे को कायम रखे हुए हैं। तभी तो दोपहर 1:30 बजे तक आधे से अधिक लोग ईवीएम में अपना फैसला कैद कर चुके हैं। मेरठ से बीटेक कर रहे अकिंत को इस बार वोट देने का हक हासिल हुआ है, अपना हम अदा करने अपने गांव आए अंकित कहते हैं, हर ओर भ्रष्टाचार का बोलबोला है, महंगाई आसमान को छू रही है, अब हमें बदलाव चाहिए। अंकित के ये बोल हवा के रुख को जरूर बयां कर गए।