- पॉलिटिकल पार्टियों से आई नेक्स्ट ने की बात

- बढ़े वोट परसेंट पर हर किसी ने जतायी दावेदारी

- साइलेंट वोटर्स लगाएंगे नया शॉट

PATNA : स्टेट में वोटिंग परसेंटेज बढ़ गया। इसकी उम्मीद पहले से थी। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि इसका सबसे ज्यादा असर बिहार में नीतीश कुमार की राजनीति पर पड़ेगा।

सब की राय अलग-अलग

सामान्य राय है कि यूथ के बड़ी संख्या में नए वोटर बनने और उनकी जागरूकता से वोटिंग परसेंटेज बढ़े हैं। लेकिन पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष इर्शादुल हक मानते हैं कि वोट का परसेंटेज बढ़ने से कुछ लोग मुगालते में हैं। जिन अगड़ों की कुल आबादी क्फ् फीसदी है उनके वोट परसेंटेज नहीं बढ़े हैं। वहीं बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता विनोदानंद झा मानते हैं कि नौजवानों में नरेन्द्र मोदी की लहर है। कांग्रेस की महंगाई के खिलाफ हर आदमी गुस्से में है। बीजेपी कुछ कहे जेडीयू खुश है कि वोट परसेंटेज बढ़ने का फायदा नीतीश कुमार को मिलेगा। जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन की मानें तो कमजोर तबकों का बूथ तक पहुंचना आसान हुआ है और बिहार के विकास को लेकर स्टेट के पक्ष में लहर है। इधर कांग्रेस मान रही है कि उसने विकास का मॉडल देश भर को दिया है। इसलिए इसका लाभ कांग्रेस को बिहार में भी वोटिंग परसेंटेज के बढ़े रूप में मिल रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रेमचंद मिश्रा की मानें तो नीतीश कुमार के अलोकप्रिय होने से वोटिंग परसेंटेज बढ़ा है, जबकि आरजेडी प्रवक्ता और लेखक प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि वोट के प्रति नई पीढ़ी में उत्साह बढ़ा है। बढ़े हुए वोट परसेंटेज को वे परिवर्तन का संकेत मानते हैं।

साइलेंट वोटर कमाल करेंगे !

बढ़े वोट परसेंटेज से नरेन्द्र मोदी लहर का बड़ा इफेक्ट एक बड़े तबके में माना जा रहा है। लेकिन सबसे ताकत के साथ इस बार दिखेंगे साइलेंट वोटर। ये वैसे वोटर हैं जो बुर्के में भी हैं और बिना बुर्के के भी। जो भी हो साइलेंट वोटर चौंकाने वाला बदलाव दिखाएंगे। किसी पार्टी को बिहार में ख्0 से ज्यादा सीटें दिलाने में ये वोटर बड़ी भूमिका निभाएंगे।

एक जागरूक नागरिक ऐसे भी !

रजी अहमद नहीं देते वोट

रजी अहमद गांधीवादी विचारक हैं। लोकतंत्र में इनकी गहरी आस्था है। लेकिन साथ वो वोट नहीं करते। इस बार भी चुनाव आयोग के करोड़ों को विज्ञापनों का उन पर कोई असर नहीं हुआ। वे अपने उसूल के साथ अड़े हुए हैं। रजी अहमद ने विनोबा, जेपी जैसों के साथ लंबा काम किया है। वे कहते हैं कि क्970 के बाद से मैंने वोट नहीं किया है। जब तक राइट टू रिकॉल नहीं मिल जाता तब तक वोट नहीं करूंगा। विनोबा से जुड़ा संस्मरण सुनाते हुए वे कहते हैं कि विनोबा ने सबसे पहले वोट का बहिष्कार इस सवाल पर किया था। वे भी वोट नहीं करते थे। राइट टू रिकॉल की मांग जेपी ने भी की थी।