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2029 - राजधानी में बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल

2.09 - लाख टोटल स्टूडेंट्स

1 लाख 67 हजार - बेसिक स्कूलों में टोटल स्टूडेंट्स

42 लाख - राजकीय, एडेड और मदरसों में स्टूडेंट्स

5.5 लाख - राजधानी में बुक्स की डिमांड

- बेसिक में किताबों के लिए अभी एक माह करें इंतजार

- किश्तों में आ रही हैं बेसिक शिक्षा विभाग की किताबें

LUCKNOW :

भले ही परिषदीय स्कूलों में कुछ किताबें देकर बच्चों की पढ़ाई शुरू कराने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन राजधानी के राजकीय एवं सहायता प्राप्त माध्यमिक (एडेड) स्कूलों में क्लॉस छह से आठ तक के बच्चों को अब तक एक भी किताब नहीं मिली है। जिससे उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निराला नगर स्थित प्राथमिक स्कूल में किताब वितरण का काम देख रहे कर्मचारी का कहना है कि एडेड स्कूल सभी किताबें एक साथ लेने की बात कह रहे हैं। वहीं बेसिक शिक्षा परिषद के पास क्लास एक को छोड़कर किसी भी क्लासेस की पूरी किताबें नहीं आई हैं। जबकि किताबों की प्रिंटिंग का काम देख रही कंपनी ने 29 अगस्त से पहले सभी किताबें मुहैया कराने में असमथ्र्1ाता जताई।

दो लाख बच्चों को किताबों का इंतजार

राजधानी में करीब 2029 परिषदीय, राजकीय, सहायता प्राप्त, एडेड मदरसों आदि में करीब दो लाख 9 हजार बच्चे रजिस्टर्ड हैं। इनमें करीब एक लाख 67 हजार छात्र संख्या परिषदीय और शेष 40 हजार से ज्यादा राजकीय, एडेड व मदरसों के हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत आठवीं तक के सभी स्टूडेंट्स को किताबें दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन अभी तक परिषदीय स्कूलों के बच्चों को ही पूरी किताबें नहीं मिल पाई हैं। यह स्थिति तब है जबकि ग्रीष्मावकाश के बाद स्कूल खुले 24 दिन बीत चुके हैं।

आखिर कहां से खरीदें किताबें

आमतौर पर राजकीय एवं एडेड स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं। उनके पास किताबें खरीदने के लिए पैसे की दिक्कत होती है। जुलाई के 24 दिन बीतने के बाद भी क्लास आठ तक के इन स्कूलों के बच्चों को एक भी किताबें नहीं दी गई हैं। जिससे ये स्टूडेंट परेशान हैं।

परिषदीय स्कूलों की स्थिति भी ठीक नहीं

किताब वितरण को लेकर परिषदीय विद्यालयों की स्थिति भी पटरी पर नहीं आई है। अभी तक क्लास दो में एक, क्लास तीन में एक किताब दी गई है। वहीं, क्लास चार में छह में से सिर्फ दो किताबें आई। क्लास पांच में दो, क्लास छह में दो, क्लास सात और आठ में छह-छह किताबें दी गई हैं। जिम्मेदारों का कहना है कि विभाग की ओर से 29 अगस्त तक किताबें बांटने के निर्देश ि1दए गए हैं।

विवादों की वजह से हुई देर

किताबों की छपाई के लिए जो टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई, उस पर ववाद खड़ा हुआ था। यूपी बेसिक एजुकेशन प्रिंटर्स एसोसिएशन ने आरोप लगाया था कि शासन के दबाव में उस मैसर्स बुरदा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को छपाई का काम सौंप दिया गया। जिसे पिछले साल इलाहाबाद के डीएम ने ब्लैक लिस्ट करने की संस्तुति की थी। बावजूद इसके विभाग के कुछ अफसरों ने उसे 300 करोड़ रुपए का टेंडर दे दिया। यही नहीं, बीती 9 मई को बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेद्र विक्रम बहादुर सिंह ने इस कंपनी को टेंडर न देने की संस्तुति शासन से की थी। इन्हीं विवादों की वजह से किताबें छापने में देर हुई।

जो-जो किताबें आ रही हैं, उनका वेरीफिकेशन कराकर स्कूलों को भेजा जा रहा है। अभी ज्यादा किताबें नहीं आई हैं। किताबें आने के बाद दो दिन में उनका वितरण शुरू हो जाता है।

प्रवीण मणि त्रिपाठी, बीएसए

इस साल विधानसभा चुनाव होने और नई गवर्नमेंट के गठन होने से टेंडर प्रक्रिया लेट हुई। अगस्त तक सभी किताबें मुहैया करा दी जाएंगी।

- सवेंद्र विक्रम सिंह, डायरेक्टर, बेसिक शिक्षा

किताबें किश्तों में आ रही हैं, ऐसे एक बार किराया लगाकर केवल 40 से 50 किताबें लाना पड़ रहा है। ऐसे में स्कूलों तक किताबें लाने में काफी पैसा खर्च हो रहा है।

- विनय सिंह, प्रवक्ता, बेसिक शिक्षक संघ