सड़क पर निकलते हैं तो फº से सीने चौड़े हो जाते हैं, पांव को जमीं पर रखने की ख्वाहिश नहीं होती। जो भी देखता और मिलता है तो बड़े ही अदब ओ एहतराम के साथ। यह रुतबा है सिटी में रहने वाले कुछ पेरेंट्स का। उनकी बेटियों ने अपनी कड़ी मेहनत के बल पर सोसाइटी में हजारों की भीड़ में न सिर्फ उन्हें अलग पहचान दिलाई बल्कि उनके रुतबे को आसमां तक पहुंचा दिया है। ऐसी बेटियों के पेरेंट्स न सिर्फ गदगद हैं बल्कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है।

नयन गोयल

सिविल लाइंस में रहने वाले राम चंद्र गोयल और उनकी वाइफ संयोगिता गोयल को अपनी बिटिया पर नाज है। बचपन से ही पढ़ाई में बिजी रहने वाली नयन गोयल, 2013 में यूनिवर्सिटी में सबसे ज्यादा मेडल्स पाने वाली स्टूडेंट बनी। मां संयोगिता के लफ्जों में कहें तो 'बचपन से ही इसे पढ़ाई के सिवा कुछ नहीं सूझा। जब भी हम उसके ननिहाल जाते तो यह हमसे सिर्फ एक सवाल ही पूछती कि मेरी क्लासेज छूट जाएंगी, तो फिर सिलेबस कैसे पूरा होगा। इसकी वजह से कई बार स्पेशल ऑकेजन पर भी उसने अपने ननिहाल तक जाने को मना कर दिया.' आज उसके किए गए सेक्रिफाइज का नतीजा सबके सामने हैं। उसने न सिर्फ इंटरमीडिएट में ऑल ओवर यूपी सेकेंड पोजीशन हासिल की, बल्कि 2011 में बीएससी में 4 गोल्ड मेडल हासिल किए। वहीं 2013 में एमएससी में 8 गोल्ड के साथ यूनिवर्सिटी की टॉप पोजीशन पर रही। पेरेंट्स ने भी सब्जेक्ट सेलेक्शन पर कभी जोर नहीं डाला, जिसकी वजह से उसने वहीं किया, जिसमें उसका इंटरेस्ट था। यही वजह है कि नयन के पेरेंट्स राम चंद्र गोयल और संयोगिता गोयल, बेटी की उपलब्धियों पर हमेशा ही प्राउड फील करते हैं।

शिव प्रिया पांडेय

बेटियां हर फील्ड में अपना दम दिखा सकती हैं, फिर चाहे वह एजुकेशन की फील्ड हो या फिर स्पो‌र्ट्स की। ऐसा मानना है यूपी अंडर-19 टीम में अपनी जगह बना चुकी शिव प्रिया पांडेय के फादर शंभूनाथ पांडेय का। जिनकी बेटी ने समाज में उनका सर ऊंचा कर दिया है। शंभूनाथ बताते हैं कि जब शिव प्रिया 6 में थी, तो उसकी कई फ्रेंड्स क्रिकेट में पार्टिसिपेट करने के लिए जा रही थी। वह मेरे पास आई और कहा कि स्कूल की क्रिकेट टीम बननी है, जिसमें प्लेयर्स की जरूरत है, इसलिए वह शिवप्रिया को भी इसमें साथ ले जाना चाहती हैं। मैं पहले से ही बेटी को कुछ अलग करवाना चाहता था, जिसकी वजह से मैंने उन्हें हामी भर दी। टेनिस बॉल से शुरु किए करियर में शिवप्रिया काफी तेजी से आगे बढ़ी और क्लास 7 तक पहुंचते ही उसका सेलेक्शन जिले की टीम में हो गया। उसके बाद से तो उसकी कामयाबी का सिलसिला जारी रहा और स्कूल नेशनल में उसने चार बार बतौर कैप्टेन पार्टिसिपेट किया। पिछले तीन साल से वह यूपी अंडर-19 में अपना दम दिखा रही हैं और सीनियर यूपी के लिए उसने मेहनत शुरु कर दी है। शिवप्रिया की मां रंजना पांडेय और दादी चंद्र ज्योति पांडेय को भी उसपर काफी नाज है। आज सोसाइटी में मुझसे जो भी मिलता है वह मेरा नाम न बुलाकर 'शिव प्रिया के पापा' ही कहकर बुलाते हैं। इसपर मुझे काफी फख्र महसूस होता है। दुनिया की हर बेटी ऐसी ही होनी चाहिए।

डिंपल करमचंदानी

बेटियों पर नाज की कोई एक वजह नहीं होती। जो भी करती है कुछ अलग और बेहतर ही होता है। वह जिस काम में एक बार हाथ डाल लें तो फिर उसे पूरा होने से कोई रोक भी नहीं सकता। यह मानना है, सिंधी फैमिली से बिलांग करने वाले बिजनेसमैन नरेश करमचंदानी का, जिनकी बिटिया ने उनका नाम न सिर्फ सिंधी समाज में बल्कि पूरे सिटी में रोशन किया। 2013 हाईस्कूल एग्जाम में सिटी में सेकेंड पोजीशन हासिल करने वाली डिंपल करमचंदानी, इस वक्त हाईस्कूल की स्टूडेंट हैं। मां मोहिनी की माने तो पढ़ाई में उसे काफी इंटरेस्ट है और उसका सपना इंजीनियर या डॉक्टर बनना नहीं बल्कि फोरेंसिक ऑफिसर बनना है। जिससे कि बड़े-बड़े अपराधी को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे पहुंच सकें। फादर की मानें तो बचपन से ही इसे पढ़ाई का काफी शौक है, इंग्लिश में बेस्ट परफॉर्मेस देने वाली अपनी सिस्टर प्रियंका को डिंपल आइडियल और अपने फ्रेंड के तौर पर देखती हैं। नरेश करमचंदानी बताते हैं कि राइटिंग का काफी शौक है। उसने काफी पोएम भी लिखीं हैं। सिंधी समाज की लड़कियां पहले ज्यादा क्वालिफाइड नहीं होती थीं, हाईस्कूल में जब डिंपल ने सिटी में सेकेंड पोजीशन हासिल की, तो सारी सोसाइटी की तरफ से बधाइयों को तांता लग गया और सिंधी समाज का सिर ऊंचा करने पर उसे सम्मानित भी किया गया। उसके बाद पूरे समाज में मेरा सिर ऊंचा हो गया।