पहला - 25 जून 1931
विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद में हुआ था। भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री के तौर पर विश्वनाथ प्रताप सिंह का शासनकाल एक ऐसा समय है, जिसने भारतीय लोकतंत्र की दिशा और दशा को काफी हद तक बदल दिया। उनके शासन काल में लोकतंत्र की व्यापकता में वृद्धि हुयी और हाशिए पर खड़े लोगों की आस्था लोकतंत्र में मजबूत हुई। ‘बोफोर्स कांड’ हंगामे के बीच हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में दो दिसंबर 1989 को सरकार का गठन हुआ। इस सरकार को जनता दल राष्ट्रीय मोर्चा के अलावा बाहर से भाजपा और वामपंथी पार्टियों का भी समर्थन प्राप्त था। केंद्र में वीपी सिंह के शासन काल के दौरान मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घटना भारतीय राजनीति का अहम मोड़ साबित हुई। जिस समय मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया वह समय उसके हिसाब से सही नहीं था। दरअसल, चौधरी देवी लाल के साथ हुए विवाद के बाद वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू कर दिया। लेकिन, इतना जरूर है कि इसके फलस्वरूप आज पिछड़े वर्गों को जो 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है उसके लिए देश उन्हें हमेशा याद करेगा।
दूसरा - 25 जून 1975
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। वैसे इमरजेंसी की नींव 1971 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी। इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी।
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