लाखों की कार। रैश ड्राइविंग। एक्सीडेंट। मौत और अमीर परिवार के बच्चे। पिछले दिनों सिटी में हुए तीनों हिट एंड रन केस में पैटर्न एक ही है । इन तीनों मामलों में चार बेगुनाह लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। कार चलाने वाले लड़के कोई पेशेवर अपराधी नहीं थे पर आज उन पर 304, 279, 338 जैसी धाराएं लगी हैं.उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि इन धाराओं का मतलब क्या है.सवाल सिर्फ तीन बिगड़े रईसजादों का नहीं है। वो तो प्रतिनिधि बन गए बच्चों के एक बहुत बड़े वर्ग के जिनके पैर जमीन पर पड़ने ही नहीं दिए जाते.जो वीडियोगेम और हॉलिवुड मूवीज की दुनिया से बाहर ही नहीं आ पाते। जो ये समझ ही नहीं सकते कि असल जिंदगी में लाइफ एक बार ही मिलती है और बोनस प्वाइंट्स पर बढ़ती नहीं। गुनहगार सिर्फ तीन लड़के ही नहीं हैं वो पैरेंटिंग भी हैं जिसने उन्हें ऐसा बना दिया कि उन्हें पता ही नहीं कि वो क्या कर रहे हैं।

क्या गलती सिर्फ गाड़ी चलाने वाले की है या उसकी भी है जिसने इस उम्र में 50 लाख की कार उन्हें थमा दी। क्या गलती उसकी नहीं जिसने रात तीन बजे घर आने पर कभी डांट नहीं पिलाई। हिट एंड रन केस का ये वो पहलू है जिस पर ध्यान देना हर मां बाप का फर्ज है।

आई नेक्स्ट ने पेरेंट्स, प्रिंसिपल, साइकियाट्रिस्ट, सोशलॉजिस्ट और एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की आखिर वो कौन सी वजहें हैं जो अच्छे स्कूल में पढ़े शालीन परिवार के बच्चों को नशे में चूर मदमस्त हाथी बना देती हैं जिसे इंसानी जान जाने का खतरा अपने शौक से कमतर लगता है। जिसे ये अहसास ही नहीं कि वो अपनी जान के लिए भी खतरा पैदा करता है और दूसरे के लिए भी।

KANPUR: बीते महीने 10,11 और 30 तारीख को शहर में तीन हिट एंड रन केसेस हुए। तीनों ही मामलों में कई समानताएं हैं। तीनों केसेस में फंसने वाले रसूखदार बाप की औलादें हैं। दो मामलों में तो बेटे इतने बिगड़ैल हैं कि तड़के नशे की हालत में अपनी लक्जरी कार से रेसिंग करते हैं। जिसमें तीन लोगों की मौत भी हो गई है। सवाल उठता है कि क्या इन लड़कों की परवरिश में खामी है ? क्या इन हादसों के लिए जिम्मेदार सिर्फ लड़के ही हैं वो पैरेंट्स नहीं जो अपने बच्चों को रात रात भर पार्टी और नशा करने की परमिशन दे रहे हैं। दरअसल ये तीनों ही हादसे बड़े घरों में होने वाली बच्चों की परवरिश पर भी सवाल उठाते हैं।

जरूरत पूरा करना ही पेरेंटिंग नहीं

डॉ। विहान सान्याल बताते हैं कि बच्चे के हायर सेकेंड्री में जाने तक उसका दिमाग पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है। बच्चे की जरूरतें पूरी करना भर ही पैरेंटिंग नहीं हैं। जो चीज आप उसे दे रहे हैं उसकी वैल्यू भी उसे समझानी होगी। बच्चे का व्यरिक्तत्व सिर्फ अच्छी स्कूलिंग से नहीं अच्छी पैरेटिंग से और वह किस तरह की सोसाइटी में रहता है इससे तय होता है। सिर्फ जरूरतें पूरी करके तो आजकल ज्यादातर पैरेंट्स कांप्रोमाइज ही कर रहे हैं।

तभी होते हैं ऐसे मामले

साइकियाट्रिस्ट डॉ। रवि कुमार का कहना है कि न्यूक्लियर फैमिली और ज्यादा पैसा होने से बच्चों के बिगड़ने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं। क्योंकि वहां न पैरेंट्स पूरा समय दे पाते हैं और न ही ज्वाइंट फैमिली की तरह बड़े बूढ़े समझाने और टोकने के लिए होते हैं। वहीं आज के दौर में एक्सपोजर इतना ज्यादा है कि बच्चों के गलत दिशा में जाने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही अगर एल्कोहल ले लिया तो लॉजिकल थिंकिंग भी नहीं रहती है। हिट एंड रन जैसे मामले ज्यादातर ऐसी ही स्थिति में होते हैं।

कुलीन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा

सोशियोलॉजिस्ट डॉ। जयशंकर पांडेय ने बताया कि बाजारीकरण और आधुनिकता के दौर में बच्चों का एक्सपोजर काफी बढ़ गया है। पैरेंट्स भी बच्चों की जरूरतें तो पूरी कर रहे हैं, लेकिन उसका कैसा प्रयोग हो रहा है या उनके बच्चे की संगत कैसी है इस पर उनकी नजर नहीं रहती है। इसलिए पूरी संभावना होती है कि वह बिगड़ जाए। कुलीन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं।

सुसाइड भी कर सकते हैं ये

रिटायर्ड शिक्षा अधिकारी डॉ। अवधेश श्रीवास्तव बताते हैं कि पब्लिक स्कूलों में आजकल भौतिकतावाद को काफी बढ़ावा दिया जाता है। वहां का माहौल और दूसरी चीजें बच्चे को कम उम्र में बहुत बड़ा बना देती हैं। ऐसे में वहां पढ़ने के बाद बच्चे की पर्सनैलिटी में काफी बदलाव हो जाता है। इनमें उसके शौक भी शामिल होते हैं। डॉ। अवधेश बताते हैं कि अगर पेरेंट्स धनवान हैं तो बच्चे की हर अच्छी-बुरी जरूरत बड़ी आसानी से पूरी हो जाती है। हाईक्लास या अपर मिडिल क्लास फैमिली के पेरेंट्स अपने बच्चों को आसानी से पैसे उपलब्ध करा देते हैं, क्योंकि उनके पास पूछने का टाइम नहीं होता है कि उसका क्या करना है? ऐसे में बच्चे बड़ी आसानी से गलत दिशा की ओर बढ़ जाते हैं।

स्कूल में मिल जाता है सॉल्यूशन

डॉ। अवधेश के मुताबिक बदलते समय के साथ आज पेरेंट्स की सोच भी काफी बदल चुकी है। ऐसे में खासकर हाई क्लास फैमिली में पेरेंट्स बच्चों की जरूरतों को बड़ी आसानी से पूरा करते जाते हैं। जिससे वो गलत काम करने से भी नहीं चूकते हैं। बड़े स्कूलों में बड़े परिवार के बच्चे पढ़ते हैं ये पेरेंट्स पैसे और अपनी हैसियत के बल पर बच्चे की हर गलत हरकत को दबा देते हैं। बच्चों की गलत हरकत को दबाने की वजह से वो फिर संभलते नहीं, बल्कि गलत रास्ते पर चलने से फिर डरते नहीं हैं।

यहां सब कुछ सीख लेते हैं

साइकियाट्रिस्ट डॉ। विपुल कुमार बताते हैं दुनिया में आने के बाद मां बच्चे की पहली टीचर होती है। लेकिन ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं। जो बच्चा स्कूल में पहली बार सीखता है। ऐसे में बच्चे को वहां जैसा एटमॉस्फियर मिलता है उसका असर पूरी जिंदगी उस पर रहता है। अगर कुछ दशकों पहले की स्कूलिंग की हम बात करें तो समझ में आएगा कि स्कूलों में बच्चों को वो सुविधाएं नहीं मिलती थीं जैसी की आज मिलती हैं। हाईक्लास, अपर मीडिल क्लास और आजकल तो मीडिल क्लास फैमिली के पेरेंट्स भी अपने बच्चे को बड़े स्कूल में पढ़ने भेजते हैं। वहां भेजने के बाद पेरेंट्स ये सोच लेते हैं कि बच्चे के प्रति उनकी जिम्मेदारी पूरी हो गई। लेकिन सच्चाई में ऐसा होता नहीं है।

पेरेंट्स नहीं देते हैं टाइम

साइकियाट्रिस्ट डॉ। विनीत कुशवाहा के मुताबिक पेरेंट्स भी बच्चों को उतना टाइम नहीं दे पा रहे हैं जितना कि देना चाहिए। ऐसे में बच्चे अकेलेपन की वजह से कई तरह की बुरी संगत में पड़ जाते हैं। उनकी संगत को और खराब करने का बाकी काम करता है पैसा। फिर जब पेरेंट्स को मालूम चलता है कि उनका बच्चा किसी गलत संगत में पड़ गया है तो वो कभी-कभी वो उसका घर से बाहर निकलना, दोस्तों से मिलना, जेब खर्च देने में सख्ती तो दिखाते हैं लेकिन उसको पूरा टाइम नहीं देते और उसकी प्रॉब्लम को समझने की कोशिश नहीं करते हैं। ऐसे में पेरेंट्स सिर्फ स्कूल के लिए किसी तरह से मना नहीं करते हैं तो फिर बच्चा स्कूल के नाम पर हर वो काम करा लेता है जो गलत भी हो सकता है। स्कूल के नाम पर उसको पैसे से लेकर हर चीज मुहैया करा देते हैं। लेकिन उसको पहले से और कम टाइम देते रहते हैं। ऐसे में बच्चे की संगत फिर स्कूल के नाम पर काफी खराब हो जाती है। जिसको की संभालना मुश्किल हो जाता है।

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बच्चों की गतिविधियों पर तो हमेशा नजर रखनी चाहिए। आप कितना भी बिजी रहे उनके साथ समय तो बिताना ही पड़ेगा। काम से ज्यादा उन्हें प्राथमिकता देनी होगी। मेरे हिसाब से बच्चों की हर एक्टीविटी में पैरेंट्स का दखल होना चाहिए। खास कर कॉलेज के दौरान तो और भी सावधानी बरतनी चाहिए।

- नम्रता बाजपेई

बच्चे बड़े होने लगे तो उन्हें समय भले ही कम दे लेकिन निगरानी हमेशा करे। आज कल तो ऑनलाइन ही सब कुछ उपलब्ध हैं। बच्चे, मां बाप से कम मोबाइल, कंप्यूटर से ज्यादा चीजें सीखते हैं। और आजकल तो न्यूक्लियर फैमिली का दौर है, ऐसे में मां बाप तो काम में व्यस्त रहते हैं, जिससे बच्चों के भटकने की गुंजाइश ज्यादा होती है।

- रंगेश कुमार पांडेय

रात को नशे की हालत में अगर कोई लड़का गाड़ी चलाता है तो इसका सीधा मतलब तो यही है कि वह मां- बाप की ज्यादा नहीं सुनता। या फिर पैरेंट्स के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। बस सुविधाएं सारी दे रखी हैं। इस वजह से उनका समय परिवार के साथ कम नेट और मोबाइल पर या फिर दोस्तों के साथ ज्यादा गुजरता है।

-समीर शुक्ला

न्यूक्लियर फैमिली में कम ही ऐसा होता है कि पैरेंट्स ठीक से अपने बच्चों पर ध्यान दे। खास कर ऐसे घरों में जहां मां बाप दोनों काम करते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चा एक तरह से अलग ही रहता है। फिर तो वह अपने मन की ही करेगा न। बच्चे अगर रात भर घर से बाहर रहते हैं तो उनके पैरेंट्स पर भी सवाल उठता है।

- जय शंकर

अगर मां बाप दोनों वर्किंग हैं तो ऐसी स्थिति में यह संभव है कि वह अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाएं, हां उन्हें सुविधाएं सारी देते हैं, लेकिन जो सुविधाएं उन्हें दी जा रही हैं उसका वह कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं इस पर भी तो नजर रखनी होगी। वहीं पर चूक होती है। बच्चे फिर पैरेंट्स को बस अपनी जरूरत पूरा करने का जरिया समझने लगते हैं।

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पि्रंसिपल के वर्जन में फोटो नहीं है

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स्कूल के अंदर अगर कोई भी गलत एक्टिविटी होती है तो स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन की गलती है। बच्चे के बारे में टीचर्स को पूरी जानकारी होती है। बच्चे को सही राह पर ले जाना और एक अच्छा इंसान बनाना जितनी हमारी जिम्मेदारी है उतनी ही पेरेंट्स की भी है। जैसे हम लोग स्कूल के बच्चों की क्रॉस चेकिंग करते हैं कि वह घर पहुंचा या नहीं। कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं हो रही है। वैसे ही अगर पेरेंट्स ध्यान रखें तो बच्चे की परवरिश सही दिशा की ओर जाएगी।

केवी विंसेंट, प्रिंसिपल, हडर्ड हाईस्कूल सिविल लाइंस

स्कूल में बच्चों पर बहुत ही करीबी नजर टीचर्स रखते हैं। ऐसी ही नजर पेरेंट्स को घर में भी बच्चों पर रखनी चाहिए। स्कूल में तो इंचार्ज के अलावा डिसिप्लिन इंचार्ज भी मॉनीटरिंग करते हैैं। स्कूल में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं अगर कहीं कोई बच्चा अलग या फिर ग्रुप में दिखता है तो तुरंत तहकीकात की जाती है। लेकिन घर में पेरेंट्स बच्चों पर वैसे ध्यान नहीं रखते हैं और खासकर हाईक्लास फैमिली में तो बिल्कुल नहीं।

रचना मोहोत्रा, प्रिंसिपल, डीपीएस आजाद नगर

स्कूल कैंपस में कोई भी गलत एक्टिविटी स्टूडेंट्स नहीं कर सकते हैं। उन्हें इतनी आजादी नहीं होती है कि वह गप्प मार सकें। लगातार वह टीचर्स की निगरानी में रहते हैं। पेरेंट्स को भी घर और बच्चों के आसपास के माहौल पर बहुत करीब से नजर रखनी चाहिए। जिससे की उसके अंदर मॉरल वैल्यूज का इजाफा हो सके और वो दूसरों की संवेदनाओं को समझ सके।

भावना गुप्ता, वाइस प्रिंसिपल, सर पद्मपत सिंहानिया एजुकेशन सेंटर

स्कूल में टीचर स्टूडेंट का पूरा ब्यौरा रखता है। कौन दोस्त है कौन नहीं इसकी भी जानकारी होती है। पैरेंट्स को भी ऐसे ही जानकारी रखनी चाहिए। बच्चे के बैग व उसकी पॉकेट की रेंडम चेकिंग की जाती है। अगर कहीं भी छात्र की एक्टिविटी गड़बड़ मिली तो फिर एक्शन लिया जाता है। पेरेंट्स को भी बच्चों के साथ ऐसा ही बिहेवियर करना चाहिए। बच्चे के फ्यूचर के लिए बहुत जरूरी है।

राम मिलन सिंह, प्रिंसिपल, ओंकारेश्वर सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कॉलेज जवाहर नगर

पेरेंट्स की वर्जन में फोटो जरूर लगाइए

पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों पर खास ध्यान दें। फिर चाहें उसका एडमिशन कितने भी बड़े स्कूल में क्यों न करा दें? जब पेरेंट्स ध्यान नहीं देते हैं और बच्चों को मनमाने पैसे मिलते हैं या फिर उनकी हर अच्छी-बुरी बात मान लेते हैं और फिर बच्चे बिगड़ने लगते हैं।

- राजेश मिश्रा, पेरेंट

बच्चे जब बड़े होने लगें, तो पेरेंट्स को उनसे खुलकर बात करनी चाहिए। झिझक नहीं दिखानी चाहिए। ताकि बच्चा आपसे खुलकर बातें शेयर कर सके। इससे आप बच्चे की प्रॉपर मानीटरिंग कर सकेंगे। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो फिर बच्चा मनमानी करता है।

- चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी, पेरेंट

पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चे की क्या संगत है, इस पर नजर रखें। संगत का बच्चे पर बहुत असर पड़ता है। अगर संगत गलत है तो बच्चा बिगड़ ही जाएगा। आजकल बच्चे स्कूल में ही बिगड़ जाते हैं। लेकिन कोई ध्यान नहीं देता है। पेरेंटस को बच्चों की प्रॉपर मानिटरिंग जरूर करनी चाहिए।

- अतुल त्रिवेदी, पेरेंट

अगर बच्चा गलत संगत में पड़ जाएगा तो बिगड़ेगा ही। सिर्फ बच्चों की जरूरतें ही पूरी न करें, बल्कि उसकी मन की स्थिति को समझें और दोस्ती पर ध्यान दें। आजकल मां-बाप के पास टाइम नहीं होता है और स्कूल के नाम पर बच्चा हर गलत काम करता है।

- अर्चना चंदेल, पेरेंट

बड़े पब्लिक स्कूलों में आजकल बच्चों को जो एटमॉस्फियर मिल रहा है वो काफी चिंताजनक है और बच्चों को पढ़ाना तो है ही ऐसे में पेरेंट्स को खास तौर पर अवेयर होना चाहिए। अगर पेरेंट्स ढिलाई करेंगे, तो स्कूल का कोई असर नहीं होगा।

- कीर्तिपाल सिंह

कम समय में ज्यादा कमाई का सपना दिखाते है।

सूत्रों के मुताबिक स्कूल से लेकर कॉलेज में दर्जनों गिरोह सक्रिय हैं। उनके गुर्गे हर स्टूडेंट की हरकत पर नजर रखते है। उनके गिरोह में स्टूडेंट्स भी शामिल है। वे रंगबाजी, दोस्तों में पार्टी, गर्ल फ्रैंड पर पैसा उड़ाने वाले स्टूडेंट से मेलजोल कर लेते हैं। वे पहले उनको खुद पार्टी देते है फिर धीरे-धीरे उन्हें अपने जाल में फंसा लेते है। जब बच्चों की जेब में पैसे होते हैं तो ये लोग उनको आसानी से अपने जाल में फंसा लेते हैं। एक बार बच्चा फंस गया तो वो उबर नहीं पाता।

पैसे वाले आसानी से फंसते हैं इस जाल में

रिटायर्ड एलआईयू इंस्पेक्टर आरके सिंह ने बताया कि स्कूल में सक्रिय इस गिरोह के गुर्गे स्टूडेंट से दोस्ती कर पहले उनसे शर्त लगाते है। वे क्रिकेट मैच में शर्त लगाने की शुरुआत है। ये गेम ज्यादातर स्टूडेंट का फेवरेट होता है। इसलिए स्टूडेंट आसानी से शर्त खेलने लगते है और फिर उनके जाल में फंसकर सट्टा खेलने लगते है। वे पहले जानबूझकर स्टूडेंट को जिताते हैं। जब स्टूडेंट लती हो जाता है तो वे उसको लम्बे-लम्बे दांव खिलाते है और वो उनके जाल में फंसता चला जाता है। जब मां-बाप के पास बच्चे के लिए टाइम नहीं होता है और वो उसको पैसे देते हैं तो फिर वो पूरी तरह इसके लती हो जाते हैं।