who is rohingya muslims
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कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
रोहिंग्या मुसलमान विश्व का सबसे अल्पसंख्यक समुदाय है। इनकी आबादी करीब दस लाख के बीच है। बौद्ध बहुल देश म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमान शताब्दियों से रह रहे हैं। 

अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को कहते हैं रोहिंग्या मुसलमान
सभी रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखाइन में रहते हैं। यह सुन्नी इस्लाम को मानते हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या या रुयेन्गा भाषा बोलते हैं। जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भागों में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है। इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है। 1982 में म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता भी छीन ली। जिसके बाद से वे बिना नागरिकता के जीवन बिता रहे हैं।

12 शताब्दी से म्यांमार में रह रहे हैं रोहिंग्या मुसलमान
रोहिंग्या मुसलमानों को बिना अधिकारियों की अनुमति के अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में आने जाने की इजाजत नहीं है। यह लोग बहुत ही निर्धनता में झुग्गी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दशकों से इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की अनुमति नहीं दी गई है। नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदों को बनाने की भी रोहिंग्या मुसलमानों को इजाजत नहीं है और अब उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है। रोहिंग्या संगठनों की माने तो जिस देश को अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है वहां मुसलमान 12वीं शताब्दी से रहते चले आए हैं। 

रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं मिली नागरिकता
अराकान रोहिंग्या नेशनल ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक रोहिंग्या रखाइन में प्राचीन काल से रह रहे हैं। 1824 से 1948 तक ब्रिटिश राज के दौरान आज के भारत और बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में मजदूर वर्तमान म्यांमार के इलाके में ले जाए गए। ब्रिटिश राज म्यांमार को भारत का ही एक राज्य समझता था इसलिए इस तरह की आवाजाही को एक देश के भीतर का आवागमन ही समझा गया। ब्रिटेन से आजादी के बाद, इस देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को गैर कानूनी घोषित कर दिया। इसी आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया। जिसके चलते अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे नफरत करनअवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को कहते हैं रोहिंग्या मुसलमान

 

अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को कहते हैं रोहिंग्या मुसलमान

सभी रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखाइन में रहते हैं। यह सुन्नी इस्लाम को मानते हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या या रुयेन्गा भाषा बोलते हैं। जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भागों में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है। इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है। 1982 में म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता भी छीन ली। जिसके बाद से वे बिना नागरिकता के जीवन बिता रहे हैं।

 

12 शताब्दी से म्यांमार में रह रहे हैं रोहिंग्या मुसलमान

रोहिंग्या मुसलमानों को बिना अधिकारियों की अनुमति के अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में आने जाने की इजाजत नहीं है। यह लोग बहुत ही निर्धनता में झुग्गी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दशकों से इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की अनुमति नहीं दी गई है। नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदों को बनाने की भी रोहिंग्या मुसलमानों को इजाजत नहीं है और अब उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है। रोहिंग्या संगठनों की माने तो जिस देश को अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है वहां मुसलमान 12वीं शताब्दी से रहते चले आए हैं। 

 

रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं मिली नागरिकता

अराकान रोहिंग्या नेशनल ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक रोहिंग्या रखाइन में प्राचीन काल से रह रहे हैं। 1824 से 1948 तक ब्रिटिश राज के दौरान आज के भारत और बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में मजदूर वर्तमान म्यांमार के इलाके में ले जाए गए। ब्रिटिश राज म्यांमार को भारत का ही एक राज्य समझता था इसलिए इस तरह की आवाजाही को एक देश के भीतर का आवागमन ही समझा गया। ब्रिटेन से आजादी के बाद, इस देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को गैर कानूनी घोषित कर दिया। इसी आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया। जिसके चलते अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे नफरत करने लगे।

 

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