बुधवार को एक बार फिर देश की फाइनेंशियल कैपिटल मुंबई आंतकी हमले से दहल उठी. 12 मार्च, 1993 को मुंबई में 13 जगहों पर हुए धमाकों के बाद से अब तक मायानगर कही जाने वाली मुंबई 12 बार आतंकियों की घिनौनी साजिश का शिकार हो चुकी है. आखिर हर बार इन आतंकियों के निशाने मुंबई ही क्यों होती है? क्यों पूरे देश को दहलाने के लिए मुंबई को ही चुना जाता है? इसका जवाब आतंकियों द्वारा धमाकों के लिए चुने गए इलाके और समय से साफ हो जाता है. दरअसल आतंकियों का मकसद इंसानी जिंदगी की कुर्बानी लेने से ज्यादा देश के बिजनेस हब की रीढ़ को कमजोर करना है और इसके लिए मुंबई से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है.
क्या टाइमिंग थी
हर बार की तरह इस बार भी यह हमला एक सोची समझी चाल के तहत किया गया, लेकिन इस बार मुंबई के उन बड़े मार्केट्स को निशाना बनाया गया, जहां हर रोज करोड़ों-अरबों रुपए का बिजनेस किया जाता है. ओपेरा हाउस और चर्नी रोड के जेम्स मार्केट में इंडिया के बड़े और एलीट क्लास का आना जाना होता है. वहीं दादर में देश के बड़े बिजनेस घरानों के ऑफिसेस हैं, जहां से देश और विदेश में बड़े लेवल पर बिजनेस डील होती हैं.
अब जरा इस घटनाक्रम के समय पर नजर डालिए. धमाके तकरीबन 7 बजे शुरू हुए, जो यहां मार्केट के बंद होने का समय है. यही समय बड़े बिजनेसमेन के घर लौटने का भी है. जाहिर है उनका निशाना इंसानी जिंदगियां नहीं, बल्कि बिजनेस हब में खौफ फैलाना था. इससे पहले जो भी अटैक हुए, उसमें आतंकियों की कोशिश रही कि जानमाल का ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो. 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकी हमले में जहां 28 फॉरेनर्स सहित कुल 166 लोग मारे गए थे, वहीं 11 जुलाई, 2006 को लोकल ट्रेन में हुए बम ब्लास्ट में 181 लोगों की मौत हुई थी.
Thank God I am alive!
डायमंड मर्चेंट अपूर्व मेहता बुधवार को मुंबई में हुए आतंकी हमले के प्रत्यक्ष गवाह बने. जिस वक्त यह हमला हुआ, उस वक्त वह ओपेरा हाउस के पास पंचरत्न और प्रसाद चैंबर्स बिल्डिंग के बीच स्थित अपने ऑफिस में मौजूद थे. अपूर्व के मुताबिक, ‘धमाका मेरे ऑफिस से महज 50 मीटर की दूरी पर हुआ. यह रॉक्सी थिएटर के पीछे टाटा लेन की बात है, जहां हजारों डायमंड मर्चेंट्स काम करते हैं. कई दशकों से हर दिन 6 बजे के आसपास कारोबारी टाटा लेन में भेल पूरी, सेव पूरी और सैंडविच खाने आते हैं. जिस वक्त यह धमाका हुआ, तकरीबन 1500 लोग यहां स्नैक्स खाते हुए कारोबार की बातों में बिजी थे.
तकरीबन 6.55 बजे मैंने एक धमाके की आवाज सुनी. धमाका इतना तगड़ा था कि मेरा ऑफिस, कंप्यूटर और लगभग हर चीज थर्रा उठी. पहले हमें लगा कि किसी ऑफिस का एसी या गैस सिलेंडर फटा है, लेकिन पांच मिनट बाद जब घर और दोस्तों के फोन आने लगे तो हम सन्न रह गए. ठीक 15 मिनट बाद फायर ब्रिगेड, पुलिस और एंबुलेंस की गाडिय़ां मौके पर पहुंच गईं. जब मैं घटनास्थल पर पहुंचा तो मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. हर जगह खून बिखरा पड़ा था. मेरे ठीक सामने एक कटा हुआ हाथ पड़ा हुआ था. कई लोग बुरी तरह इंजर्ड थे. इस दौरान मैंने कम से कम 15 सीरियसली इंजर्ड लोगों को देखा. मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैंने लोगों को मरते हुए देखा. लोग मदद को चिल्ला रहे थे और मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा था. यह भयानक मंजर था, इतना भयानक की मैं बेचैन हो उठा अपनी फैमिली से मिलने के लिए. उन्हें बताने के लिए कि मैंने अपनी जिंदगी का सबसे खतरनाक मंजर देखा. थैंक गॉड की मैं जिंदा हूं.
जब-जब छिना मुंबई का सकून
एक नजर मुंबई पर हुए अब तक के कुछ बड़े हमलों पर-
12 Mar 1993:
मुंबई में एक के बाद एक हुए 13 सीरियल ब्लास्ट्स ने पहली बार मुंबई को दहलाया. इन धमाकों में 257 लोग मारे गए और करीब 800 लोग घायल हुए.
28 August, 1997:
जामा मस्जिद के पास जोरदार ब्लास्ट, तीन की मौत
24 January, 1998:
मलाड में ब्लास्ट, एक की मौत27 Feb, 1998:
विरार में ब्लास्ट, नौ की मौत
2 December, 2002:
घाटकोपर रेलवे स्टेशन के बाहर एक बस में जोरदार ब्लास्ट. दो की मौत 31 घायल
6 December, 2002:
मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर ब्लास्ट, 25 लोग घायल
27 January, 2003:
विले पार्ले में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के बाहर एक साइकिल में ब्लास्ट, एक की मौत
13 Mar, 2003:
इस्टर्न सबर्ब के मूलुंड में एक लेडीज स्पेशल ट्रेन में ब्लास्ट, 11 की मौत 65 घायल
14 April, 2003:
बांद्रा में ब्लास्ट, एक की मौत
25 August, 2003:
गेटवे ऑफ इंडिया और झावेरी बाजार में दो ब्लास्ट्स. 46 लोगों की मौत और 160 घायल. दोनों ही जगहों पर टैक्सी में आरडीएक्स प्लांट किया गया था.
11 July, 2006:
मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात सीरियल ब्लास्ट्स हुए. इन हमलों में 181 लोगों की मौत और 890 लोग घायल.
26-29 November, 2008:
मुंबई में बड़ा टेररिस्ट अटैक्स. लश्कर-ए-तैयबा की ओर से कराए गए इन हमलों में 166 लोग मारे गए जिनमें 28 फॉरेन टूरिस्ट्स थे.
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