...तो इसलिए लड़कियां पहनती हैं शादी में वरमाला

अरेंज मैरिज जिसे प्राचीन काल में ब्रह्म विवाह कहा जाता था। इसमें सिंदूर दान एक रस्म है। हर शादीशुदा महिला सिंदूर लगाती है। माना जाता है कि इससे उसके पति की आयु लंबी होती है। पति सिर्फ विवाह वाले दिन ही अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर भरता है। उसके बाद रोजाना सुहागनें अपनी मांग भरती हैं। अगली स्लाइड में मंगलसूत्र और वरमाला सहित अन्य रस्मों के बारे में...

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अरेंज मैरिज में वर वधू को मंगलसूत्र पहनाता है। इसे स्त्रियां अपने सुहाग की निशानी मानती हैं। माना जाता है कि वे इसे संकट में भी अपने से अलग नहीं होने देतीं। इसका उनके वैवाहिक जीवन में पवित्र और बहुत महत्व होता है। अगली स्लाइड में फेरे और वरमाला सहित अन्य रस्मों के बारे में...

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ब्रह्म विवाह तब तक पूरा नहीं होता जब तक वर और वधू मिलकर अग्नि के सात फेरे न ले लें। हर फेरे के साथ वर और वधू जीवन में एक-दूसरे के सहयोग की कसमें खाते हैं। हर फेरा अपने आप में गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए जरूरी चीजों की सदैव याद दिलाता रहता है। यह एक पवित्र रस्म मानी जाती है। अगली स्लाइड में कन्यादान और वरमाला सहित अन्य रस्मों के बारे में......

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ब्रह्म विवाह में वधू का पिता वर के हाथ में अपनी पुत्री का हाथ देकर कन्यादान करता है। हिंदू धर्म में कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। यह माना जाता है कि कन्यादान से व्यक्ति को सद्गति मिलती है। अगली स्लाइड में वधू प्रवेश और वरमाला सहित अन्य रस्मों के बारे में......

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विवाह के बाद वधू अपने पति के घर विदा हो जाती है और अपने ससुराल में पहली बार गृह प्रवेश करती है। उसे अनाज से भरे एक पात्र को पैर मारकर घर में प्रवेश करना होता है। माना जाता है कि इससे वधू लक्ष्मी के रूप में घर में संपन्नता लेकर आई है। यह भी एक महत्वपूर्ण रस्म है। अगली स्लाइड में वरमाला और स्वयंवर के बारे में...

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वरमाला सीधे-सीधे गंधर्व विवाह से जुड़ा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार गंधर्व विवाह पेड़ के नीचे युवक और युवती की रजामंदी से माला पहना कर होता था। सीधे तौर पर यह स्त्रियों के अधिकार से जुड़ा होता था। प्राचीन समय में भी युवतियों को अपनी पसंद का वर चुनने की आजादी थी। वह योग्य वर चुनने के लिए कोई शर्त भी रखती थी, जो उसे पूरा करता था उसे ही वह वरमाला पहनाती थी। यह अधिकार सिर्फ स्त्रियाें को था। वर को वधू चुनती थी आज की तरह वधू को वर नहीं पसंद किया करते थे। यह हक सिर्फ स्त्रियों को था। अगली स्लाइड में स्वयंवर के बारे में...

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इतिहास में स्वयंवर के तमाम उदाहरण मिलते हैं। यह बताता है कि प्राचीन काल से ही स्त्रियों को अपना मनपसंद वर चुनने का अधिकार था। जैसे सीता स्वयंवर। द्रौपदी स्वयंवर। पृथ्वीराज चौहार और संयोगिता का प्रेम विवाह।

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