Ranchi : समय से पहले पति की मौत से इनकी जिंदगी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। जिंदगी बेसहारा हो गई। जिंदगी में जो सपने संजोए थे, वे बिखर गए। ऐसी सिचुएशन में घरवालों ने भी साथ छोड़ दिया। न तो ससुराल में और न मायके में इन्हें पनाह मिली। दो जून की रोटी के लिए ये दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। चूंकि बाल-बच्चों की परवरिश का सवाल है, इसलिए ये जिंदगी को किसी तरह खींच रही हैं। समाज में ऐसी महिलाओं को विधवा के नाम से पुकारा जाता है। अब ऐसी विधवाओं ने मदद के लिए आवाज बुलंद करने का फैसला किया है।

सरकार से मदद की मांग

नारी शक्ति झारखंड प्रदेश के तहत झारखंड की लगभग दो हजार विधवाएं एकजुट होकर सरकार से मदद की मांग की है। संगठन की अध्यक्ष आरती बेहरा ने बताया कि, समय से पहले विधवा हो चुकी बेसहारा महिलाएं एकजुट होकर सरकार के पास अपनी मांगे रखी है। इसमें गरीब विधवा महिलाओं के बच्चों के लिए स्कूल में निशुल्क शिक्षा, इंदिरा आवास, विधवा पेंशन के रुप में चार हजार रुपए के अलावा मार्केटिंग कार्ड मिले, जिसमें छूट दी जाए।

ख्ख् अगस्त को मांगेगी भीख

संगठन की ओर से विधवा महिलाओं की आर्थिक स्थिति की जांच करते हुए उनका पहचान पत्र बनाया जाए, जिसके आधार पर उन्हें विधवा पेंशन योजना से जोड़ने की मुहिम शुरू हो। आरती बेहरा ने बताया कि,अभी तक सरकार की ओर से मदद ना मिल पाने की वजह से ये महिलाएं एकजुट होकर ख्ख् अगस्त को फिरायालाल चौक पर भीख मांगेगी। इसके तहत सरकार का ध्यान इस ओर दिलाने की कोशिश की जाएगी ताकि इन महिलाओं को उचित मदद ि1मल सके।

अपनों ने छोड़ा साथ

दो साल पहले ही ललिता की शादी हुई थी। शादी के एक साल ही हुए थे कि एक एक्सीडेंट में पति की मौत हो गई। वक्त के साथ घरवालों ने भी बेरुखी दिखा दी। न तो ससुराल और न ही मायके में उसे पनाह मिली। नारकोपी में एक रिश्तेदार के यहां शरण लेना पड़ा। आज वह रेजा का काम कर किसी तरह जिंदगी गुजार रही है। सुमिता की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। रेजा का काम कर रही सुमिता हर रोज सिर्फ साठ ही रुपए कमाती है। दो बेटों को वह एक स्कूल में पढा रही है। पिछले साल पति की मृत्यु के बाद दर-दर की ठोकर खाने को वह मजबूर है।

हडि़या बेचने को मजबूर

पति की मृत्यु के बाद कुसुम मिंज की जिंदगी में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। पांच बच्चों की परवरिश करना था, ऐसे में उसने हडि़या बेचना शुरू कर दिया। हडि़या से जो कमाई होती है, उसी से बच्चों व अपनी जिंदगी को वह आगे बढ़ा रही है। इससे एक वक्त का खाना तो नसीब हो जाता है, पर जिंदगी की मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रही है। कुसुम की ही तरह पीरू भी हडि़या बेचकर अपना पेट पाल रही है। शादी के कुछ साल बाद ही उसके पति की मौत हो गई। पति की मौत ने शुरू में पीरू को पूरी तरह तोड़ दिया। पांच बच्चों की मां पीरू की मदद के लिए भी कोई आगे नहीं आया। ऐसे में उसने हडि़या बेचना शुरू कर दिया। दरअसल अशिक्षित होने की वजह से पीरू दूसरा काम करने से हिचकिचाती है। हडि़या बेचकर ही वह अपने बाल-बच्चों का परवरिश कर रही है।