- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में पहुंची गेस्ट एडिटर्स, खुलकर रखे अपने विचार

-पुरुषों पर भी रोकथाम के लिए पहल का दिया सजेशन

GORAKHPUR: महिलाओं का समान अधिकार है। महिलाएं मजबूत हो रही हैं। एजुकेशन में उनका लेवल बढ़ रहा है। जॉब के साथ ही पॉलिटिक्स में भी उनकी भागीदारी हो रही है। यह तमाम ऐसे पहलू हैं, जिन्हें केंद्र में रखकर लोग महिलाओं को मजबूत और सशक्त होने की बात कर रहे हैं। मगर क्या हकीकत में वह सशक्त हो गई हैं। नहीं। आज भी घरों में खाने उनकी मर्जी से नहीं बनते, वह पैसा जरूर कमा रही हैं, लेकिन उसको खर्च करने की आजादी उन्हें नहीं है। वह पढ़ाई कर रही हैं, लेकिन कुछ जगह की बात छोड़ दें तो उनको जॉब के लिए बाहर भेजने पर लोगों को गुरेज है। घर से बाहर निकलने में उन्हें आज भी डर लगता है। तो फिर कैसे कह दें कि महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं। यह बातें सामने आई दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से महिला दिवस पर ऑर्गनाइज खास डिस्कशन में, जिसमें शहर की रिनाउंड फीमेल्स ने इकट्ठा होकर बेबाकी से अपनी बातें रखीं। उनका कहना था कि जब तक नीति निर्धारण, चाहे वह घर का हो, सोसाइटी का हो, राज्य का हो या फिर देश का हो, इसमें बराबर की भागीदारी नहीं मिलती और वह इसमें अपना योगदान नहीं देतीं, तो उन्हें सशक्त नहीं कहा जा सकता।

खुद उठानी होगी आवाज

डिस्कशन के दौरान यह बात सामने आई कि जो भी महिलाएं हैं और समाज में उन्हें बराबरी का हक चाहिए तो उन्हें अपनी जंग खुद लड़नी होगी। चाहे घर में हो या बाहर, अगर उनके साथ जुल्म या अत्याचार हो रहा है, तो उन्हें उसके खिलाफ आवाज उठानी ही होगी। समाज क्या कहेगा? लोग क्या कहेंगे? इससे ऊपर उठकर उन्हें सोचना होगा और खुद को मजबूत करने के लिए अगर कड़े फैसले भी लेने पड़ते हैं, तो उन्हें लेने पड़ेंगे।

बेसिक के साथ प्रोफेशनल एजुकेशन जरूरी

फीमेल्स ने एक सुर में इस बात पर जोर दिया कि सभी महिलाओं का पढ़ा लिखा होना जरूरी है। इसके लिए बेसिक ट्रेनिंग घर से शुरू हो। इसके बाद स्कूलिंग, कॉलेज भी भेजें। पेरेंट्स एजुकेशन दिलाने का सिलसिला यही खत्म न कर दें, बल्कि अपनी बच्चियों को एक प्रोफेशनल कोर्स जरूर कराएं, ताकि अगर वक्त उनका साथ न दे और कोई परेशानी आ जाए, तो इस कंडीशन में वह डटकर मुकाबला कर सकें और कम से कम उस कोर्स या प्रोफेशनल एजुकेशन के जरिए इतना कमा सकें कि उन्हें और उनके बच्चों को भूखे न सोना पड़े।

अवेयरनेस भी काफी जरूरी

आज के जमाने में लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं है, कहने को यह सभी कह देते हैं, लेकिन हकीकत में आज भी बेटियों को एजुकेशन देने में पेरेंट्स हिचकिचाते हैं। जॉब कराने से हिचकिचाते हैं। बहुओं को प्रताडि़त किया जाता है। अगर गर्ल चाइल्ड हो गई, तो उनकी जिंदगी दुश्वार हो जाती है, इन सब पर भी रोक लगाने की जरूरत है। इसको रोकने का सबसे अच्छा और एक मात्र तरीका है अवेयरनेस। इसमें घर की महिलाओं को ही आगे कदम बढ़ना होगा। वह अगर बुजुर्ग और पुरानी सोच रखने वाली महिलाओं को अवेयर करें कि आज के जमाने में लड़का-लड़की एक बराबर है। जो काम लड़के कर रहे हैं, वहीं लड़कियां भी कर रही हैं। लड़कियां चांद तक पहुंच चुकी है। अगर वह अपनी इस मुहिम में कामयाब हो गई, तो महिलाओं को उनका हक दिलाने में अच्छी पहल होगी।

लड़कों को भी पढ़ाएं पाठ

अभी तक सिर्फ लड़कियों पर ही लोग दबाव बनाते हैं। घर वाले लड़कियों को ही ताकीद करते हैं कि वह सही ड्रेस पहने, मेकअप वगैरा कम करें। लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि बेटियों के साथ ही बेटों को भी नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाए। उन्हें भी लड़कियों की इज्जत करना सिखाया जाए। इसमें सबसे अहम जिम्मेदारी होगी मां की।

यह बातें भी आई सामने -

- फाइनेंशियल मजबूत होना ही सशक्तीकरण नहीं।

- कानून के प्रति जागरूक नहीं हैं महिलाएं।

- उन्हें कानून के साथ ही अधिकारों के प्रति किया जाए अवेयर।

- परिवार वालों को भी करना होगा सहयोग।

- लड़के और लड़की के बीच होता है भेदभाव, जिसे खत्म करने की जरूरत।

- पुरुष की संकीर्ण मानसिकता को खत्म करना भी महिलाओं के हाथ में

- लड़कियों को आजादी दें, लेकिन स्त्रियोचित गुणों का बनाए रखें।

-लड़कियों को समाज में सुरक्षित रखने के लिए दी जाए सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग।

- इसके लिए उनकी डाइट पर भी दिया जाए खास ध्यान।

- सोशल मीडिया के जरिए अवेयरनेस से मिल रहा है फायदा।

- अर्ली मैरेज पर लगाएं पाबंदी, लड़कों को पैरों पर खड़ा करने के बाद ही करें शादी।

- जरूरतें पूरी न हो पाने की वजह से होते हैं अक्सर होती है पारिवारिक कलह।

आधी आबादी को दें हक की जानकारी

हमारी परंपरा और भारतीय संस्कृति में शुरू से ही महिलाओं को सम्मान दिया जाता रहा है। उनके अधिकारों की बात होती है, लेकिन उन्हें उनके हक के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। सरकार के साथ समाज सेवी संस्थाओं को भी महिलाओं को जागरुक करने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाने चाहिए, जिससे महिलाओं को उनके अधिकारों का पता चल सके और वह अपनी लड़ाई खुद लड़ने में सक्षम हो सकें।

- डॉ। रेखा रानी शर्मा, आर्टिस्ट

हर कदम पर महिलाओं को करें प्रोत्साहित

महिलाओं को शुरू से ही संघर्ष करना पड़ता है। मां की कोख से शुरू हुआ संघर्ष जिंदगी भर चलता रहता है। अपने कार्य के प्रति सम्मान के लिए भी उन्हें खासी जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसलिए सबसे जरूरी है कि परिवार वालों को उनके हर कदम को एप्रिशिएट करना चाहिए और उनका हर संभव सहयोग करना चाहिए, जिससे कि उनका मनोबल न टूटने पाए। महिलाओं का सबसे मजबूत आधार एजुकेशन हैं, इसलिए उन्हें पढ़ने से कभी नहीं रोकें, जिससे वह समाज में खुद को स्थापित कर सकें।

- अलपा निगम, शिक्षक

अपने पर हुए जुल्म के खिलाफ उठाएं आवाज

आज के दौरान में महिलाओं का एजुकेशन परसेंटेज जरूर बढ़ा है, लेकिन महिलाएं पूरी तरह से सशक्त नहीं हो सकी हैं। सिर्फ फाइनेंशियली मजबूत होना ही मजबूती नहीं है। जब तक समाज में, घर में महिलाओं को नीति निर्धारण की आजादी मिल नहीं जाती है, तब तक उन्हें सशक्त नहीं कहा जा सकता है। मैन डॉमिनेटिंग सोसाइटी है, महिलाओं को चहारदीवारी के अंदर घुटघुटकर जीना पड़ रहा है। यह व्यवस्था बदलनी चाहिए। महिलाओं को चाहिए कि वह बजाए जुल्म सहन करने के इसके खिलाफ आवाज उठाए, तभी उनको समाज में उनकी जगह मिल सकेगी।

- डॉ। विनीता पाठक, प्रोफेसर एंड एनसीसी कैप्टन

बच्चों को शुरू से ही महिलाओं की इज्जत करना सिखाएं

लोगों की सोच अब तक नहीं बदल सकी है। जमाना हाइटेक होता जा रहा है, लेकिन लोग आज भी पुराने ख्यालों में ही डूबे हुए हैं। अगर इसमें बदलाव चाहिए, तो शुरुआत से ही कोशिश करनी होगी। मां की गोद में पहली पाठशाला तो बेहतर हो ही, वहीं बच्चों के कोर्स में भी ऐसे सब्जेक्ट एड किए जाएं, जिससे बच्चों को प्राइमरी लेवल से ही महिला का सम्मान करने की सीख मिल सके, इसका असर जरूर नजर आएगा। जिस तरह से लोगों को खाने की जरूरत होती है, वैसे ही स्किन की भी जरूरतें होती हैं, जिसे पूरा करने के लिए मेकअप कराना जरूरी है। इससे स्किन की प्रॉब्लम दूर होती है, वहीं कॉन्फिडेंस भी बिल्डअप होता है।

- शाईनी अग्रवाल, मेकअप आर्टिस्ट

महिलाओं की जागरुकता के लिए कैंपेन चलाने की जरूरत

लोग आज भी बेटे और बेटियों में काफी फर्क करते हैं। बच्ची के जन्म या यूं कहें कि जन्म से पहले मां की कोख में ही सेग्रिगेशन की शुरुआत हो जाती है। अब तक समाज में ऐसे लोग हैं, जहां लड़कियों की स्थिति ठीक नहीं है। आज भी उन्हें बोझ ही समझा जाता है। ऐसे कई परिवार भी हैं, जो गर्ल चाइल्ड को पैदा होने ही नहीं देना चाहते हैं। ऐसे लोगों की सोच को बदलने के लिए अवेयरनेस कैंपेन चलाने की जरूरत है। वहीं जिस वजह से लोग डरते हैं, उनकी काउंसिलिंग कराई जानी चाहिए। फीमेल सिक्योरिटी पर बेहतर ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें स्कूल से ही सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी जाए, जिससे कि वह बाहर निडर होकर निकल सकें।

- डॉ। अंजू श्रीवास्तव, गाइनोकोलॉजिस्ट