आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई के पहले प्रमुख कॉन्डन ने यह भी दावा किया कि मैच फ़िक्सिंग सिर्फ़ भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं था।

ब्रितानी अख़बार इवनिंग स्टैंडर्ड से बातचीत में उन्होंने कहा, "1990 के दशक के आख़िर में टेस्ट और विश्व कप के मैच नियमित रूप से फ़िक्स होते थे। 80 के दशक के आख़िर से 1999-2000 तक कई टीमें फ़िक्सिंग में शामिल थी। निश्चित रूप से इस फ़िक्सिंग में भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर की भी टीमें थी."

उन्होंने कहा कि किसी न किसी स्तर पर हर अंतरराष्ट्रीय टीम में कोई न कोई ऐसा था, जो इस तरह के मामलों में शामिल था। कॉन्डन ने कहा कि उस समय के खिलाड़ियों को अपने आसपास घट रही घटनाओं की पूरी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने चुप रहना ही पसंद किया।

उन्होंने कहा, "1990 के दशक के आख़िर में क्रिकेट खेलने वाली एक पूरी पीढ़ी को ये ज़रूर पता होगा कि उस समय क्या ग़लत हो रहा था। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। जब वे अपने करियर की ओर पीछे मुड़कर देखते होंगे, तो उन्हें कुछ शर्म आती होगी। पूरे के पूरे मैच या फिर सिरीज़ फ़िक्स करने की घटना शायद 2001 में थी और इसके बाद ही आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई ने अपना काम शुरू किया."

'ब्रिटेन में हुई शुरुआत'

पिछले दिनों पाकिस्तान के कुछ क्रिकेटरों के स्पॉट फ़िक्सिंग में दोषी ठहराए जाने के बाद मैच फ़िक्सिंग को लेकर बहस तेज़ हुई थी। पॉल कॉन्डन ने भी दोषी खिलाड़ियों के साथ-साथ क्रिकेट बोर्डों पर भी पाबंदी लगाने की अपील की थी।

पाकिस्तान के पूर्व कप्तान सलमान बट, मोहम्मद आसिफ़ और मोहम्मद आमिर को लंदन की एक अदालत ने स्पॉट फ़िक्सिंग का दोषी ठहराए हुए सज़ा सुनाई थी। ये तीनों फ़िलहाल सज़ा काट रहे हैं।

कॉन्डन ने दावा किया कि मैच फ़िक्सिंग की शुरुआत ब्रिटेन में हुई, जब काउंटी टीमें दोस्ताना लीग मैच फ़िक्स करती थी। लेकिन ऐसा पैसे के लिए नहीं किया जाता था।

वर्ष 2000 में आईसीसी ने भ्रष्टाचार निरोधक इकाई का गठन किया था, जब दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिए ने मैच फ़िक्सिंग में शामिल होने की बात स्वीकार की थी।

कॉन्डन ने ये भी दावा किया कि शायद स्पॉट फ़िक्सिंग की शुरुआत वर्ष 2003 के विश्व कप के दौरान हुई थी, क्योंकि कुछ सबूत ऐसे थे, जो इस ओर इशारा करते थे।

Cricket News inextlive from Cricket News Desk