- नगर निगम ने ली थी जिम्मेदारी, लेकिन नहीं बदले हालात

- 500 साल से भी ज्यादा पुरानी सराय ले रही है आखिरी सांसे

- वहीं गुप्त कालीन मूर्ति को सिर्फ कवर कर छोड़ा तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही अंग्रेजों की बनाई जेल का भी कोई पुरसा हाल नहीं

GORAKHPUR : वक्त के पन्नों को अगर पीछे पलटना शुरू करें तो अतीत का दीदार होता है। इसमें वक्त का तो पता चल जाता है, लेकिन अगर जमीनी हकीकत और असल जगह जाननी हो तो उसके लिए उस दौर की कोई चीज की दरकार होती है। ऐसे में देश का इतिहास जानने के लिए पुरानी इमारतें, सामान और चीजें काफी अहमियत रखती हैं। देश में धरोहरों को संजोने का काम काफी जोरों पर है। देश और प्रदेश की सरकार उन्हें अलग मुकाम दिलाने में लगी हुई हैं, मगर गोरखपुर में हालात कुछ अलग हैं। यहां धरोहरों को ढूंढे तो बड़ी तादाद में मिल जाएंगी, लेकिन यहां के जिम्मेदार इसकी अहमियत नहीं समझते। यही वजह है कि मुगलों के जमाने से मौजूद सराय अपनी हालत पर रो रही है, वहीं गुप्त काल में बनी मूर्ति का भी कोई पुरसा हाल नहीं है। वहीं अंग्रेजों के जुल्म और वतन पर मर मिटने वाले क्रांतिकारियों की मौजूदगी का अहसास कराती जेल भी अब आखिरी सांसे ले रही है।

और फिर सिसकने को छोड़ दी सराय

मुगलों को गए हुए सदियां गुजर गई लेकिन किसी भी को सराय की याद नहीं आई। हां, क्0-क्ख् साल पहले कुछ इतिहासकारों ने सराय हकीकत तलाशने की कोशिश जरूर की थी। बोरियों से घिसकर दीवारों से मुगल शासन की निशानी ढूंढने की कोशिश की, कब मुझे तामीर किया गया? यह जानने की कोशिश की। मगर एक बार आने के बाद वह दोबारा लौटकर वापस नहीं आए। चंद माह पहले आई नेक्स्ट ने जब इसकी याद दिलाई तो इस बार नगर निगम ने कदम बढ़ाया, लेकिन वक्त बीतने के साथ फिर हालत जस की तस हो गई। कई महीने बीतने के बाद भी कोई इसे पूछने नहीं आया। अब सराय के चारों तरफ बनी मोटी-मोटी दीवारें भी 'इलाज' के लिए इल्तेजा कर रही हैं, मगर किसी जिम्मेदार के कानों तक उसकी आवाज नहीं पहुंच रही है।

तारीख को संजोए हुए है सराय

मुगल शासन के बाद से काफी वक्त तक गोरखपुर की पहचान मुअज्जमाबाद के तौर पर थी। इस दौरान तिजारत के लिए आने वाले मुसाफिरों की सहूलत के लिए मुगल बादशाह मुअज्जम शाह ने इसे बनवाया। दूर-दराज से आने वाले व्यापारी यही पर आकर ठहरा करते थे, अपने साथ लाए सामानों की खरीद-व-फरोख्त करने के बाद वह वापस लौटा करते थे। इस बीच वह यहां पर बनी क्क् बाई क्क् की म्7 सरायों में गुजारा करते थे। मुगलों के बाद यहां व्यापारियों का आना-जाना बंद हो गया और अब कोई पूछने वाला नहीं है। मुगलों के वहां काम करने वाले कुछ लोग यहां बस गए, जिनकी पुश्तें यहां पर अपना गुजर बसर कर रही हैं।

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यहां बसी हैं देशभक्तों की चीखें

गोरखपुर की सरजमीं पर तारीख को अपने अंदर समेटे एक और धरोहर मौजूद है। नाम है मोती जेल। लालडिग्गी पार्क के पास बिजली विभाग के सबस्टेशन के सामने एक बड़ी सी चाहरदीवारी दिखाई दे जाती है। यह चाहरदीवारी अंग्रेजों के आने पहले राजा बसंत सिंह के किले की है। अंग्रेजों ने जब यहां कब्जा किया तो उसके बाद यह किला वीरान हो गया। काफी जगह और बढ़ रहे विद्रोह को देखते हुए अंग्रेजों ने इस किले को जेल में तब्दील कर दिया। यहां पर अंग्रेजों के खिलाफ सर उठाने वाले देशभक्त क्रांतिकारियों को रखा जाता था। कई पीढि़यों से आस-पास रहने वाले लोगों की मानें तो कुछ सालों तक यह अंग्रेजों का हेडक्वार्टर भी रहा।

अब डोम बसते हैं यहां पर

किले को जेल में तब्दील करने वाले अंग्रेजों को जब मुल्क छोड़ना पड़ा, तो उसके बाद यहां न तो किला रह गया और न ही जेल। जेल की बैरक और हवालात सभी सुनसान हो गए। आज यहां पर न तो क्रांतिकारी रहते है और न ही अपराधी और बंदी। यहां अब नालियां और मैला साफ करने वालों ने कब्जा जमा रखा है। क्रांतिकारियों के साथ आजादी की लड़ाई का गवाह रही इस धरोहर को भी जिम्मेदारों ने अब तक नजर अंदाज कर रखा है। इसमें हुए नाजायज कब्जे को कभी किसी ने न तो हटाने की जहमत की और न जुर्रत।

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सिर्फ कोरम ही पूरा किया

धरोहरों के खजाने में गोरखपुर एक और अहम चीज मौजूद है। वह है क्क्वीं-क्ख्वीं शताब्दी में बनी मूर्तियां। अपने वक्त की दास्तान सुनाती यह मूर्तियां भी आज किसी के रहम की राह देख रही हैं, मगर इनकी भी हालत औरों की तरह ही है, जिन्हें पूछने वाला कोई नहीं। आई नेक्स्ट ने जब इन मूर्तियों की दास्तान सबके सामने पेश की, तो कुछ जिम्मेदारों ने कोरम पूरा करते हुए मूर्तियों के ऊपर कवर लगवा दिए, लेकिन न तो उनकी मरम्मत ही की गई और न ही सुधारने की कोशिश। हालत यह है कि यह मूर्तियां कभी भी ढेर हो सकती हैं और इनके साथ तारीख भी अपनी आखिरी सांस गिनने को मजबूर है।

शास्त्रीय परंपरा आधारित है मूर्ति

इन दोनों मूर्तियों में भगवान विष्णु के हाथ में गदा, चक्र, कमल और शस्त्र लगे हैं। वहीं एक तरफ लक्ष्मी और दूसरी ओर सरस्वती की मूर्ति है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मूर्ति शास्त्रीय परंपरा पर आधारित है। शास्त्रों में भी भगवान विष्णु की कल्पना इसी रूप में की गई है। दोनों मूर्तियों को देखकर इसका साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस लापरवाही के दौर से गुजरकर यह इस हालत में पहुंची है। क्000 साल पुरानी मूर्तियों की क्या दशा होगी इसका अंदाजा लगाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है।

गोरखपुर में बहुत धरोहर हैं। इनपर कोई खास ध्यान नहीं दे रहा है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इनटेक) इस बारे में सोच रहा है। जल्द ही इनको संवारने का काम किया जाए।

- पीके लाहिड़ी, लाइफ मेंबर, इनटेक

नगर निगम ने गोरखपुर में ब् इमारतों को धरोहर घोषित किया है। इन सभी को बेहतर करने के लिए इनटेक से बात हुई है, उन्होंने सर्वे भी किया है। जल्द ही उन्हें बेहतर बनाया जाएगा। वहीं अगर कोई और ऐतिहासिक महत्व वाली चीजें हो तो नगर निगम को इसकी जानकारी दें, उसको भी धरोहर घोषित किया जाएगा।

- डॉ। सत्या पांडेय, मेयर, जीएमसी