- एतिहासिक इमारतों में कहीं अतिक्रमण तो कहीं अवैध कब्जे

- रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो रही है एतिहासिक धरोहरें

LUCKNOW: आंसू टपक रहे है हवेली के बाम से

रुहें लिपट कर रोती है हर खास-ओ-आम से

किसी शायर की यह लाइनें बिल्कुल सटीक बैठती हैं लखनऊ में मौजूद उन एतिहासिक धरोहरों के लिए जिनका वजूद लखनऊ में खत्म हो चुका है या फिर वे जो अपने असतित्व बचाने के लिए वक्त के थपेड़ों से संघर्ष कर रही हैं। इन एतिहासिक इमारतों में आने वाले भी कहीं ना कहीं इसकों गंदा करने में जुटे हैं। विरासत की इन इमारतों पर जोड़ो ने कई जगह अपने नाम लिख दिए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं लखनऊ को पहचान दिलाने वाली इन एतिहासिक इमारतों में लोगों ने अवैध कब्जे भी कर रख हैं। हाल यह है कि कई जगह अतिक्रमण के चलते इनका गेट भी नहीं खुल रहा है। आइये जानते हैं लखनऊ शहर की कुछ एतिहासिक इमारतों के बारे में।

सबसे पहले बात करते हैं उन एतिहासिक इमारतों को जो कभी लखनऊ की शान रही लेकिन अब इस शहर से इनका नामोनिशां मिट चुका है। इतिहासकार योगेश प्रवीण ने बताया कि जो इमारतें हमारे यहां की शान होती, लेकिन रखरखाव के अभाव में ये अपना असतित्व ही खो बैठी।

- जिनका वजूद नहीं बचा

आजादी के बाद तमाम एतिहासिक इमारतें ऐसी थी जिन्हें बचाया जा सकता था।

- सबसे पहले बात करते हैं हरदोई रोड पर रहा अल्मास बाग। बागों के इस शहर मे सबसे खूबसूरत बाग रहा है। इसे चाहरदीवारी से बंद भी किया गया था। इसकी चाहरदीवारी पर अवध के नमूने देखने को मिलते थे। इसमें एंट्री के लिए चार दरवाजे थे। इसके एक तरफ मस्जिद थी तो दूसरी तरफ हमामखाना। लेकिन अब यह खत्म हो चुका है।

- छोटी छतरमंजिल अपने आप गिर गई। हाईकोर्ट के पास बनी यह इमारत भी अपना वजूद खो चुकी है।

- चौपटियां में कशमीरी राजाओं ने दिलाराम की बारादरी बनवाई थी। यह एक तरह का ऑडीटोरियम था। यहां पर शाही अंदाज में होने वाली शादियां, मुशायरे और शाही जलसे हुआ करते थे। अब इसका नामो निशां मिट चुका है।

- राजाबाजार में बना राजा टिकैतराय का दीवानखाना। सुभाष मार्ग पर बने ऊंचे चबूतरे पर उनका महल था। इनके कारण ही यहां का नाम राजा बाजार पड़ा। लेकिन अब दीवानखाने की बिल्डिंग ढह चुकी है।

- कैसरबाग में बना शाही मकबरा। जिसे कभी गुम्बद ए भिश्ती का रोउजा भी कहा जाता रहा। कैसरबाग इंदिरागांधी नेत्र चिकित्सालय से थोड़ी दूर स्थित इस जगह पर अब रिहायशी कालोनी बन चुकी है।

- जिस जगह अब जनपथ है कभी उस जगह पर बेगम कोठी हुआ करती थी। अंग्रेजों ने सबसे पहले इसी बिल्डिंग में पोस्ट ऑफिस की शुरुआत की थी। बाद में इसे जीपीओ ट्रांसफर किया गया।

- मेडिकल कॉलेज से गोलागंज जाने वाली सड़क पर हकीम मेंहदी का मकबरा का वजूद नहीं बचा है।

- -ये इमारतें जो वजूद की लड़ाई लड़ रही है

ऐशबाग और हैदरगंज चौराहे के पास बनी नवाबआसुफुद्दौला की बारादरी। इसकी दीवारें आज भी सलामत है लेकिन देखने वाला कोई नहीं है। इसके पास बनी मोती झील भी बरबाद हो रही है।

- लखनऊ यूनिवर्सिटी के अंदर बादशाह बाग की बारादरी मौजूद है। अब तक इसमें कैंटीन हुआ करती थी। इसे पुरातत्व विभाग ने ले लिया है लेकिन देखरेख ना होने के कारण बर्बाद हो रही है। बताया जाता है कि कुदुसिया महल ने इसी बिल्डिंग में शरबत में संखिया डाल कर पी और अपनी जान दे दी।

- डॉलीगंज स्टेशन और शिया कॉलेज के बीच मौजूद इरादत नगर की कर्बला मौजूद है। इसे लखनऊ का ताज महल भी कहा जाता है। मेसोपोटामिया वास्तु पर इराकी तर्ज इसे बनाया गया था। अवध के दूसरे बादशाह नसीरुद्दीन हैदर और कुदुसिया महल को यही दफनाया गया था।

- खदरा में मौजूद बाबा फतेहंचद की संगत जिसे उदासी सम्प्रदाय का मंदिर भी कहा जाता है। महराबो और ताको की भव्य सजावट है इस मंदिर में। इसे हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक भी माना जाता है।

- इसके बाद खदरा में मलिका आफाक का कर्बला है। अवध के तीसरे बादशाह मो। अली साहब की बेगम ने इसे बनवाया था। यहीं पर जिन्नातों की गार की बिल्डिंग है। पाकिस्तान और हैदराबाद से लोग तमाम लोग यहां पर मन्नते मांगने आते हैं।

- दिलकुलशा के पीछे मिलेट्री फार्म के पास कोठी बीबिया पुर मौजूद है। यह दर्शनीय है। लार्ड मार्टिन ने फ्रेंच स्टाइल नवाब आसुफुद्दौला के कहने पर इसका निर्माण किया था।

- राजधानी में आयोजित बलटर पैलेस कालोनी में बनी बल्डिंग का निर्माण राजा महमूदाबाद ने कराया। इसे राजस्थानी शैली में बनाया गया है। दिखने में यह उदयपुर का महल नजर आती है। देखरेख के अभाव में यह बिल्डिंग दम तोड़ रही है। इतिहासविद् बताते है कि राजा महमूदाबाद ने अपने दोस्त सरहर कोट बटलर के लिए बनवाया था जो उस समय गर्वनर थे। यहां पर महफिलें आयोजित की जाती थी। इस जगह को हैरिटेज होटल बनाया जा सकता था।

फिलहाल इन धरोहरों को सहेजने का चल रहा है काम

- दुर्गा देवी मार्ग स्थित शाही तालाब का निर्माण कार्य चल रहा है। इस तालाब का निर्माण आसिफुद्दौला ने करवाया था।

- लखनऊ की पहचान बन चुका रूमी गेट नवाबी दौर की याद दिलाता है। इसे भी संवारने का काम चल रहा है।

- हुसैनाबाद स्थित घंटाघर क्लाक टॉवर में इसका निर्माण कराया गया था। इसको संवारने के लिए फॉरेन से भी सामान बनाया गया है।

- सतखंडा पार्क का निर्माण नवाब मुहम्मद अली शाह ने करवाया था। यह इमारत इटली के पीसा शहर की मशहूर लीनिंग टॉवर की तरह दिखती है।

- बड़ा इमामबाड़ा को आसिफुद्दौला ने करावाया था। इसे भूलभुलैया भी कहा जाता है।

एतिहासिक इमारतों में घूमने वाले जोड़े यहां पर तरह-तरह की डिजाइन बना देते हैं। इसके अलावा अपने नाम भी लिख देते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं तमाम एतिहासिक इमारते ऐसी है जिनमें अवैध कब्जे मौजूद हैं। जिला प्रशासन के पास मौजूद आंकड़ों की माने तो हेरीटेज बिल्डिंग्स में एक हजार से अधिक अवैध कब्जे मौजूद हैं। भले ही सरकार एतिहासिक धरोहरों के जरिए पर्यटकों को लुभाने में लगी हो, लेकिन अवैध कब्जे और अतिक्रमण इसकी राह में रोड़े बने हुए हैं।

एतिहासिक धरोहरों को ठीक कराने के साथ ही उनका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। ये हमारे लखनऊ की पहचान है। इन धरोहरों की सुरक्षा के लिए भी व्यापक इंतजाम किए गए हैं। लखनऊवासियों को भी सोचना चाहिए कि यह उनकी विरासत है जिसे सहजना भी उनकी ही जिम्मेदारी है।

राजशेखर

डीएम

एतिहासिक धरोहरे देखरेख के अभाव में दम तोड़ रही हैं। ऐसा नहीं है कि इन्हें संजोने का काम नहीं किया जा रहा है, लेकिन उनकी स्पीड बहुत धीमी है। इसमें जन सहभागिता भी तय की जानाी चाहिए।

योगेश प्रवीण

इतिहास विद