- 20 सालों में गायब हो गई सिटी की 85 प्रतिशत ग्रीनरी

- अब औसतन वर्षा भी 700 मिली लीटर रह गई

- केवल 30 प्रतिशत ही जमीन पर होती है खेती

- आखिर कौन है जिम्मेदार और कैसे बचेगी धरती

Meerut: धरती आपसे कुछ कह रही है। पिछले बीस सालों पर गौर करें तो धरती पर बढ़ते प्रदूषण ने पूरी तस्वीर बदलकर रख दी है। सिटी की 70 प्रतिशत जमीन पर जहां शहरीकरण ने जगह बना ली है। वहीं ग्रीनरी और वॉटर के गिरते आंकड़े भी पर्यावरण के गम्भीर हालात बता रहे हैं। आखिर इन बीस सालों में हालात किस कदर गंभीर हुए, आइए देखते हैं इसकी एक झलक

केवल क्भ् प्रतिशत रह गई ग्रीनरी

अगर ख्0 साल पहले की बात करें तो उस समय 70-80 प्रतिशत ग्रीनरी हुआ करती थी। पर आज के हालात तो धरती से ग्रीनरी को नाम मात्र ही साबित करते हैं। अगर आज की तस्वीर पर गौर करें तो धरती पर म्0 प्रतिशत शहरीकरण व भू-निर्माण व बाकी के ख्भ् प्रतिशत धरती पर औद्योगिकीकरण होता है। बाकी क्भ् प्रतिशत पर ही हरियाली खेत खलियान आदि है। हरियाली क्लब की अध्यक्ष सुनीता ने बताया कि सिटी में इन बीस सालों में ग्रीनरी के हालात काफी बुरे हो गए हैं।

70 प्रतिशत धरती पर शहरीकरण

सिटी में ख्0 वर्षो में कृषि के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन का लगभग 70 प्रतिशत भाग शहरीकरण, भू निर्माण, औद्योगिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जबकि बीस साल पहले यह आंकड़े मुश्किल से ख्0 प्रतिशत हुआ करते थे। पर्यावरणविद् के अनुसार अगर इसी तरह हालात रहे तो वो दिन दूर जब एक बार फिर से केदारनाथ आपदा जैसे भयंकर परिणाम देखने को मिले।

कहीं पानी के प्यासे न हो जाए

दस वर्षो में जहां भू जल स्तर क्भ्-ख्0 फीट हुआ करता था, वह अत्यधिक दोहन व वर्षा की कमी के कारण अब 70 से 80 प्रतिशत हो गया है। गांव में अधिकतर किसानों के टयूबवेल पानी देने में असहाय हो चुके हैं। जबकि सेंटर फार साइंस एंड एंवायरमेंट के अध्ययन के अनुसार मेरठ के शहरवासियों को दैनिक आवश्यकताओं के लिए प्रतिदिन क्9म्7 लाख लीटर पानी की आवश्यकता है, जबकि नगर निगम द्वारा क्भ्ब्0 लाख लीटर पानी की ही पूर्ति की जाती है। इस आपूर्ति का 99 प्रतिशत ग्राउंड वाटर होता है। जबकि केवल ख्0 लाख लीटर पानी ही भोला की झाल से सप्लाई किया जाता है। नीर फांउडेशन के अध्यक्ष रमन त्यागी के अनुसार लगातार भूजल का नीचे जाना जारी रहा तो बुंदेलखंड व राजस्थान जैसे हालात होंगे, जहां ढूंढने पर भी पानी नहीं मिलेगा।

कितना गहरा हुआ बदलाव

अगर हम पॉल्यूशन की बात करें तो पिछले 8 सालों में ट्रांसपोर्ट द्वारा पूरे ख्भ् प्रतिशत पॉल्यूशन बढ़ा है, कामर्शियल फैक्ट्री द्वारा भी 8-क्0 प्रतिशत पॉल्यूशन बढ़ गया, कीटनाशक दवाओं द्वारा धरती पर अब क्भ् प्रतिशत पॉल्यूशन होता है, वहीं रेजिडैनशियल द्वारा अब फ् प्रतिशत पॉल्यूशन होता है।

आखिर कौन है जिम्मेदार

आज विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर कुछ उदाहरण हमें सोचने पर आवश्यक मजबूर करते है, आखिर ऐसा सबकुछ क्यों। इसका जबाव यहीं है कि इसके लिए हम ही कसूरवार हैं। क्योंकि बेढंगे औद्योगिकरण की लगाम न कस पाने के कारण तमाम नदियां व उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा ढोने का साधन बन चुकी है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण गांवों तक में कैंसर व प्रजनन संबंधित गंभीर बीमारियां पनप रही ंहै। कृषि की बिगड़ी दुर्दशा व किसानों की नासमझी से भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिस कारण भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है।

क्या हो सकता है समाधान

नीर फाउंडेशन के अध्यक्ष रमन त्यागी के अनुसार हम धरती पर जल की स्थिति को बदल सकते है।

- वर्षा जल संरक्षण को अपनाना होगा

-उद्योगों से निकलने वाले गैर शोधित तरल कचरे पर रोकथाम करनी होगी

- जनपद के तालाबों को पुनर्जीवित करना होगा।

-शहरों में सीवेज को नदियों में डालने से रोकना होगा।

- जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा।

- शहर से पुराने वाहनों को तुरंत हटाना होगा तथा शहर में बढ़ रहे अतिक्रमण को कम करके यातायात व्यवस्था को सुधारना होगा

- सीएनजी चालित वाहनों को आवश्यक बनाना होगा।

धरती को हरा बनाएंगे

पांच साल पहले ही हरियाली क्लब की शुरुआत दस महिलाओं के साथ की थी। पांच साल पहले हमारी संस्था ने धरती को हरा भरा बनाने का प्रण लिया था। अबतक हम सिटी में फ्0 बार विभिन्न स्थलों पर वृक्षारोपण कर चुकी है। शहर को हरा भरा करना ही हमारी संस्था का उद्देश्य है।

-सुनीता, हरियाली क्लब

हो सकते है घातक परिणाम

जैव चिकित्सीय कचरा यानी बायो मेडिकल वेस्ट भी प्रदूषणका मुख्य कारण है। बायो मेडिकल वेस्ट में कार्बन हाईड्रोजन व क्लोरिन आपस में प्रक्रिया करके घातक ऑस्सीन व फ्लरेन पदार्थ बनाते है, जो वायुमंडल में सूक्ष्म मात्रा में भी ग्रहण करने पर कैंसर होने की संभावना पैदा कर देते हैं

-डॉ। मधु वत्स, पर्यावरणविद्