- नेताओं ने जमकर किया एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप

- जनता ने भी जमकर दागे सवाल

LUCKNOW: एमपी कैंडीडेट और पब्लिक आमने-सामने थी। नश्तर जैसे चुभते सवालों ने नेताओं के होश उड़ा दिए थे। कैंडीडेट अपना एजेंडा बता रहे थे। पहले तो पब्लिक ने उनकी बातों को ध्यान से सुना, लेकिन बाद में सवालों की झड़ी लगी तो कई प्रत्याशियों को जवाब देते नहीं बना। आईनेक्स्ट के महाअभियान 'हैं तैयार हम' के तहत फ्राइडे को आईएमआरटी बिजनेस स्कूल में 'महाचौपाल' का आयोजन किया गया। इसमें बिंदास अंदाज में पब्लिक ने सवाल पूछे।

खूब रही गहमागहमी

दिन का पारा चढ़ने के साथ ही यहां सियासी पारा तेजी से चढ़ता जा रहा था। प्रत्याशी आपस में आरोप-प्रत्योरापलगा रहे थे। लोकल इश्यू से लेकर राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर गर्मागर्म बहस चल रही थी। कई मौके तो ऐसे भी आए कि पब्लिक अपना आ ही खो बैठी। वह नेताओं को जमकर कोस रहे थे। कुछ सवालों का जवाब तो नेताओं ने चतुराई से दिया, लेकिन कुछ पर वह फंस भी गए।

जीतने के बाद राजनाथ भूल जाते हैं क्षेत्र

राजनाथ सिंह का इतिहास रहा है कि वह जिस लोकसभा सीट से इलेक्शन जीतते हैं वहां कभी लौटकर नहीं जाते। गाजियाबाद, हैदरगढ़ से राजनाथ जीते लेकिन वहां के डेवलपमेंट से नजर फेर ली। लखनऊ से भी विधानसभा का चुनाव वह हार चुके हैं। यह भी समझ नहीं आता कि एक रामायण में कितने भरत होंगे। कभी लालजी टंडन अटल की खड़ायू लेकर इलेक्शन लड़ते हैं तो कभी राजनाथ अटल का अंगवस्त्र लेकर चुनाव जीतने का वादा कर रहे हैं। मुझे तो यह समझ नहीं आता कि टंडन जी ने पूरा जीवन लखनऊ की राजनीति में बिता दिया लेकिन उनका टिकट काट दिया गया। हैरत की बात तो यह है कि कांगेस प्रत्याशी रीता जोशी तो पब्लिक के सवालों के जवाब से बचने के लिए यहां आई ही नहीं। कभी वह इलाहाबाद की बेटी बन जाती हैं तो कभी पहाड़ की। मोदी की लहर के बारे में क्या कहा जाए। जो इंसान अपनी पत्‍‌नी को सम्मान नहीं दे सकता। वह देश को क्या सम्मान देगा। मैं तो छोटा आदमी हूं। छोटी पार्टी है। आईआईएम के प्रोफेसर का पद छोड़कर पॉलिटिक्स में आया। लखनऊ की एक-एक गली को अच्छी तरह जानता हूं।

- अभिषेक मिश्रा

सपा कैन्डीडेट

मैं आम आदमी हूं और आम आदमी की आवाज उठाने आया हूं। सभी पार्टी बड़ी-बड़ी बातें करती हैं। बड़े-बड़े दावे होते हैं, लेकिन इनके बीच आम आदमी की परेशानियों को सुनने वाला कोई नहीं रहता है। मैंने देखा कि गरीब इंसान की हालत आज भी वैसी ही है। वही पुराने मुद्दे आज भी हैं जो साल-दर-साल चलते चले आ रहे हैं। आखिर हमें कागजी आंकड़ों में क्यों उलझाया जाता है। आम आदमी को केवल रोड, बिजली, महंगाई, भ्रष्टाचार से ही मतलब है। लेकिन समस्याएं जस की तस हैं। हमें नहीं चाहिए पत्थरों से सजा करोड़ों का पार्क। हमें नहीं चाहिए मूर्तियां। हमें तो चाहिए सिस्टम से लड़ने की ताकत। यह ताकत एक आम आदमी ही दे सकता है। पॉलिटिक्स के लिए सेल्फिश नहीं होना चाहिए। देश सभी का होता है और सबके प्रयासों से देश को तरक्की दी जा सकती है। आज का यूथ सब कुछ देख रहा है। समझ रहा है। उसे जवाबदेही चाहिए। यह नेता जवाबदेही से बचना चाहते हैं। केजरीवाल अपने लिए इलेक्शन नहीं लड़ रहे हैं। आप के लिए लड़ रहे हैं। उनका ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो किस चीज की कमी थी उन्हें कि पॉलिटिक्स में आते, लेकिन जब आम आदमी का दर्द उन्होंने महसूस किया तो धरना-प्रदर्शन किया।

- जावेद जाफरी

आप प्रत्याशी

यूपी में आग लगी है। गांव-गांव में आतंक का माहौल है। पिछले दो सालों में जनता के सामने सत्ताधारी पार्टी का सच सामने आ गया है। लाशों पर राजनीति की गई। सैफई में जश्न मनाया जा रहा था और दूसरी तरफ लाशें जलाई जा रही थीं। राजनीति का मतलब इंसानियत है। सब इस समय कुर्सी की लड़ाई रह रहे हैं। जिस दल में इंसानियत नहीं है उसे राजनीति छोड़ देनी चाहिए। हमने पूरे पांच साल सरकार चलाई। हमारा काम इतना बुरा नहीं था, लेकिन जनता का आदेश था। लेकिन अब क्या हालात हैं। सपा मुखिया कैसे बयान दे रहे हैं कि बलात्कार करने वालों को बेचारा कह रहे हैं। यह भी कह रहे हैं कि वह रेप केस में बदलाव लाएंगे। लानत है ऐसे बयान पर। मैंने पूरे पांच साल मेहनत की। मंत्री रहा और शहर का विकास किया।

- नकुल दुबे

बीएसपी प्रत्याशी

आज के यूथ पर ही देश की जिम्मेदारी है। ऐसे में उनके सामने यह चुनौती है कि उन्हें एक सही सोच के नेतृत्व को चुनना चाहिए। आज देश को युवा नेता की जरूरत है। जहां तक समस्याओं की बात है तो वह तो रहेंगी ही। कोई रोड अगर बनी है तो खराब भी होगी। आज हम देखें कि पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हमारे साथ ही आजाद हुआ, लेकिन आज हम कहां है और दूसरे देश कहां। पिछले म्म्- म्7 सालों में कांग्रेस ने ही देश की तस्वीर बदली है। जब दूसरे देश इकॉनमिक किल्लत से जूझ रहे थे तो भी इंडिया पर इसका फर्क नहीं पड़ा। आईटी क्रांति तो कई लोगों को रोजगार मिला। लेकिन ख्भ् साल पहले लखनऊ जहां था वैसा ही है। इन सालों में बीजेपी का शासन रहा। अटल का नेतृत्व रहा लेकिन कोई डेवलपमेंट नहीं हुआ। स्कूटर इंडिया की हालत खराब थी लेकिन रीता जोशी की बदौलत उसकी हालत में सुधार हुआ और 900 परिवार भुखमरी से बचे।

- फारिक सिद्दीकी

प्रतिनिधि रीता जोशी, कांग्रेस

पहली बार यह देख रहा हूं कि इलेक्शन के समय ऐसी शब्दावलियों का इस्तेमाल हो रहा है। अपशब्द बोले जा रहे हैं। चुनाव तो आएंगे, जाएंगे। लेकिन मर्यादाओं को नहीं भूलना चाहिए। चंद वोटों के लिए नेता न जाने क्या बोल रहे हैं। करगिल युद्ध में प्रदेश के एक मंत्री बयान देते हैं कि किसी खास मजहब के लोगों ने यह युद्ध जिताया। अब बताईए, सेना में भी भेद-भाव पैदा किए जा रहे हैं। एक पॉलिटिकल पार्टी के मुखिया और रक्षा मंत्री रहे एक नेता ने तो रेप कांड पर अलग ही बयान जारी करके हैरानी पैदा कर दी। महंगाई और बेरोजगारी का क्या हाल है, यह किसी से छिपा नहीं है।

- अमित पुरी

प्रतिनिधि राजनाथ सिंह (भाजपा)