RANCHI : ढलती उम्र में जब जोश ढलान पर और बढ़ती उम्र की बंदिशें उफान पर हों, तो उन्हें पोलिंग बूथ पर देखना अच्छा लगता है। यही वजह है कि थर्सडे को जब यह वोट करने पोलिंग बूथ आई, तो लोगों की निगाहें इनपर टिकी रह गई। इन्हें देखना अच्छा इसलिए लगा, क्योंकि जब बिना सहारे यह एक कदम भी नहीं चल सकतीं, ऐसे में उनका एक वोट देश में डेमोक्रेसी को जिंदा रखने की कोशिश करता दिखा। एटीआई स्थित बूथ संख्या क्भ् में स्टेट के गवर्नर डॉ सैयद अहमद की मां और उम्र के क्07वें पड़ाव से गुजर रहीं सैयद साबिरा खातून ने भी थर्सडे को वोट किया। दो महिलाओं के सहारे चलकर वह बूथ नंबर क्भ् में पहुंचीं और वोट किया। उनके बाद झारखंड के गवर्नर डॉ सैयद अहमद और उनकी वाइफ ने भी वोट किया। सैयद साबिरा खातून इंडिया में उम्र का लंबा-चौड़ा पड़ाव तय कर चुकीं कुछ गिनी-चुनी महिलाओं में से एक हैं। उनका जन्म तब हुआ था, जब महात्मा गांधी ने साउथ अफ्रीका में सत्याग्रह शुरू ही किया था। ढलती उम्र और कमजोर शरीर होने के बावजूद डेमोक्रेसी को मजबूत बनाने के लिए अपने वोटिंग राइट का इस्तेमाल करनेवाली यह अकेली उम्रदराज वोटर नहीं हैं। इन्हीं की तरह कई अन्य वोटर्स भी पोलिंग बूथ पर दिखे, जिन्होंने अपनी ढलती उम्र और शरीर की कमजोरी की परवाह किए बगैर अपना वोट डाला।

8म् साल की स्वर्णलता ने किया क्श्रह्लद्ग

थर्सडे को सुबह क्0.क्0 बजे जैसे ही 8म् साल की स्वर्णलता विद्यार्थी लालपुर स्थित पोलिंग बूथ पर आईं, लोगों की निगाहें उनपर टिक गईं। उम्र की ढलान पर भी उनमें वोट देने का जोश कम नहीं था। बड़ी मुश्किल से अपने दामाद डॉक्टर पांडेय रविभूषण का सहारा लेकर पोलिंग बूथ पर पहुंचीं स्वर्णलता विद्यार्थी ने कहा- वोट न देब, तो देश कैसे बची। उनके दामाद डॉ पांडेय रविभूषण न बताया कि उनकी सास स्वर्णलता विद्यार्थी हार्ट पेशेंट हैं। चलने से लाचार हैं और इसके बावजूद उन्होंने वोट करने की इच्छा जाहिर की, तो वह उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर ले आया। वोट देकर जब वह राजकीय प्राथमिक विद्यालय, लालपुर से निकलीं, तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी। लाठी के सहारे वह बूथ के अंदर गई और फिर उसी के सहारे बाहर भी निकलीं।

हर द्गद्यद्गष्ह्लद्बश्रठ्ठ में किया है क्श्रह्लद्ग

एटीआई के पोलिंग बूथ में 80 साल की महिला शांति देवी मिलीं। वोट देने के बाद बड़े ही आराम से उन्होंने अपनी इंक लगी उंगली दिखाई और कहा- बाबू, चलने-फिरने में दिक्कत होती है, अक्सर बीमार रहती हूं, लेकिन अब तक हर इलेक्शन में वोट किया है। इस साल कैसे छोड़ दूं? 80 साल की हो गई हूं, तबीयत ठीक नहीं रहती, पर पड़ोसियों की मदद से वोट देने आई हूं। वोट सबको देना चाहिए। वोट नहीं देंगे, तो लोकतंत्र मजबूत कैसे होगा?

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जुबां खामोश थीं, पर बोल रही थीं आंखें

नामकुम के कन्या हाई स्कूल में वोट देने आईं 8म् साल की गोगो देवी की आंखों में खुशी की चमक दिख रही थी। वह बोल नहीं सकती हैं। पर, वोट देने के बाद उनके चेहरे पर आई चमक जैसे कह रही थी- मेरे वोट करने से ही तो लोकतंत्र जीतेगा। 8म् साल की गोगो देवी खिजरी के उलातू गांव की रहनेवाली हैं। उनके साथ वोट देने आई महिला ने कहा कि वोट देने की कोई उम्र नहीं होती। गोगो देवी की जुबां में भले ही आवाज न हो, पर उनके वोट में जुबां है और यह लोकतंत्र को मजबूत करेगा।

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