हैदराबाद के दिलसुख नगर इलाके में 2 ब्लास्ट में 16 लोगों की मौत हुई, जबकि 117 इंजर्ड हुए और इस तबाही को अंजाम देने के लिए आतंकवादियों की जेब से खर्च हुए महज 1200 रुपए. ब्लास्ट की अब तक की जांच में पता चला है कि ब्लास्ट के तौर पर अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था. सुरक्षा एजेंसियों और फॉरेंसिक एक्सपर्ट के लिए देश भर में ज्यादातर आतंकी ब्लास्ट में अमोनियम नाइट्रेट का यूज सिरदर्द बन चुका है.

दुकानदारों का अमोनियम नाइट्रेट बिक्री से इंकार

हालांकि, जब घटना के तुरंत बाद हैदराबाद के केमिकल और कृषि उत्पाद दुकानों पर बात की तो सभी ने अमोनियम नाइट्रेट की बिक्री से साफ इन्कार कर दिया. देश भर में केमिकल की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल फर्टिलाइजर और लैब में सहायक रसायन के तौर पर किया जाता है, लेकिन यह हाइड्रोकार्बन (ईंधन) के साथ मिलकर घातक विस्फोटक में तब्दील हो जाता है.

 

यहां हुए अमोनियम नाइट्रेट से ब्लास्ट

दिलसुख नगर धमाकों की जांच कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि आतंकियों को एक बम बनाने के लिए महज 600 रुपये खर्च करने पड़े होंगे. हैदराबाद के अलावा पुणे धमाका (अगस्त, 2012), मुंबई तिहरा धमाका (जुलाई, 2011), पुणे का जर्मन बेकरी धमाका (फरवरी, 2010), जयपुर सिलसिलेवार धमाके (2008), सिलसिलेवार ट्रेन धमाके (7/11, 2006), घाटकोपर बेस्ट बस धमाका (2005), मुलुंड रेलवे और विले पार्ले धमाकों (2003) में भी अमोनियम नाइट्रेट का यूज किया गया था.

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