1- डेमिन शहर में लाल सेना के डर से 1000 लोगों ने की थी आत्महत्याएं
डेमिन शहर में द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में 1000 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या की थी। आत्महत्या करने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। ये सामूहिक आत्महत्याएं रूसी लाल सेना द्वारा हत्या और बलात्कार के डर से की गईं थी। आत्महत्या करने के लिए उन्होंने बंदूकों, ब्लेडों और जहर का इस्तेमाल किया था।
2- पृथ्वी छोड़ कर आसमानी दुनिया में जाने के लिए हैवेन गेट अवे टीम के 39 लोगों आत्महत्या की थी
26 मार्च 1937 को 39 लोगों को मृत पाया गया था। जहां वे साफ़-सुथरे कपड़ों में बैगनी कपड़े ओढ़ के लेटे हुए थे। उन्हें सभी को किसी हिप्नोटाइज कर दिया था। मौत के बाद वे दूसरी दुनिया यानी जन्नत का हिस्सा बन जाएंगे। उन्हें जन्नत लेजाने के लिए उड़नतश्तरी आएगी। जन्नत का हिस्सा बनने की में उन्होंने वोदका और अनानास के साथ फेनोर्बाबिटल का सेवन किया था। अपनी सांस रोकने के लिए उन्होंने अपने गले में प्लास्टिक बांध कर अपनी जान दी थी।
3- धार्मिक पंथ के 778 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या की थी
इस धार्मिक पंथ के अनुयायियों का ऐसा मानना था कि उनका जन्म ईसा के 10 धर्मादेशों को मानने और उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए हुआ है। इस पंथ ने अपने अलग नियम कायदे-कानून बनाए थे। वे सोमवार और शुक्रवार को सिर्फ़ एक वक्त भोजन करते थे। उनके पंथ मे सेक्स करना वर्जित था। वो नहाने में साबुन का प्रयोग नहीं करते थे। इस पंथ के सभी 778 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या की थी। ये तस्वीर उस हेडक्वार्टर की है जहां इस पंथ के लोगों ने सामूहिक तौर पर आत्महत्या की थी।
4- बादुंग शहर के परिवारों ने डच सेना से बचने के लिए की थी आत्महत्या
डच आर्मी ने बाली के बादुंग शहर पर सन् 1906 मे हमला किया था। तब बाली के अधिकारियों को इस बात का पूरा अंदाज़ा हो गया था कि वे डच आर्मी से नहीं जीत पायेंगे। दुश्मनों के हाथ लगने के बजाय उन्होंने एक-दूसरे को ही मारना ठीक समझा। अपने परिवार के सदस्यों को लोगों ने खुद ही मार डाला। डच सेना के पहुंचने से पहले ही पूरा शहर खून में नहा चुका था। छोटे-छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा गया था। पूरे शहर का नज़ारा कुछ ऐसा था कि इसे देख कर डच सैनिक तक सदमें में आ गए थे।
5- मसादा की घेराबंदी में 900 लोगों ने की थी आत्महत्या
900 लोगों ने जूदियन रेगिस्तान में स्थित मसादा के किले में ख़ुद को कैद कर लिया। यहां वे रोमवासियों की नजरों से 12 वर्षों तक बच कर जीवित रहे। रोम के राजा लूसियस फ्लेवियस सिलवियस ने इन्हें मारने के लिए एक अभियान चलाया। बागियों तक पहुंचने के लिए एक बहुत बड़े रैम्प का निर्माण किया गया। जब तक रोमन वहां पहुंचे उन्हें वहां सिर्फ़ जली हुइ इमारतें और सैकड़ों मृत शरीर मिले।
6- सन् 1945 जर्मनी में साइनाइड चाट कर दी थी हजारों लोगों ने जान
जर्मनी में हजरों लोगों ने अलग-अलग कारणों से सन् 1945 में आत्महत्याएं कर लीं थी। इनमें एक वजह डेमिन शहर की आतमहत्याएं थीं। जर्मनी की द्वितीय विश्व युद्ध में हार भी इन सामूहिक आत्महत्याओं का कारण थी। युद्ध के अंतिम दिनों में अधिकतर जर्मनवासियों को अपनी हार का अंदाज़ा हो गया था। उन्होंने साइनाइड कैप्सूल खाकर सामूहिक आत्महत्या की थी।
7- जापान में 22000 लोगों ने चट्टान से कूद कर की थी आत्महत्या
जापान के साइपान शहर में 22,000 से अधिक लोगों ने चट्टानों से कूद कर सामूहिक आत्महत्या की थी। जापानियों ने अमेरेकी सेना से बचने के लिए ऐसा किया था। ये लोग जापानी साम्राज्य के प्रोपेगैंडा से प्रभावित हो रहे थे। सामूहिक आत्महत्या के इस खेल में पहले छोटे बच्चों को बड़े बच्चे चट्टान से धकेल देते थे। फिर माएं बड़े बच्चों को धकेल देती थीं। पिता मां को धकेल देता था और अंत में स्वयं चट्टान से कूद कर अपनी जान दे देता था।
8- चित्तौड़ की रानियों ने किया था जौहर
शाही राजपूत घरानों की औरतें दुश्मनों से युद्ध में हारने की सूचना मिलने पर सामूहिक आतमदाह कर लेती थीं इसे जौहर कहा जाता था। चित्तौड़ के राणा सांगा खानवा के युद्ध के बाद सन् 1528 में चल बसे। उनकी मौत के बाद मेवाड़ और चित्तौड़ का इलाका उनकी विधवा पत्नी रानी कर्णवती के जिम्मे आ गया। राणा सांगा की मौत के बाद गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर कब्जा कर लिया था। चारों तरफ़ से युद्ध के बादल घिरने के बाद जब मदद की उम्मीद उन्हें नजर नहीं आई तो महारानी ने 8 मार्च, 1535 को राज्य की महिलाओं के साथ जौहर कर लिया था। राजस्थान और चित्तौड़ में ऐसी कई दंतकथाएं आज भी सुनी जाती हैं।
9- सोलर मंदिर के सदस्यों ने आधुनिक दुनिया के हमलों से बचने के लिए की थी आत्महत्या
सोलर मंदिर के सदस्यों ने आधुनिक दुनिया के हमलों से बचने के 1994 में सामूहिक आत्महत्या की थी। उन्होंने दावे किए थे कि वे मृत्यु के बाद रात को दिखने वाले सबसे चमकीले सितारे सिरियस पर चले जाएंगे। जिसे वो लोग जन्नत या प्रभु की दुनिया कहते थे।
10- जोन्सटाउन में 900 लोगों ने की थी सामूहिक आत्महत्या
सन् 1978 में पीपल टेम्पल ग्रुप नामक धार्मिक संगठन के 900 लोगों ने जोन्सटाउन में सामहिक रूप से आत्महत्या की थी। गुयाना के जोन्सटाउन में 18 नवम्बर सन् 1978 को पीपल टेम्पल ग्रुप नामक धार्मिक संगठन के 900 लोगों की लाशें मिलीं। उन्होंने आत्महत्या करने के लिए जहरीला पेय पदार्थ पिया था। वहां मौजूद 300 बच्चों को जबरदस्ती जहरीले इंजेक्शन दिए गए थे।
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