साल 2001 में 11 सितंबर को हुए चरमपंथी हमलों के जवाब में अफ़गानिस्तान पर हमला करने के बाद अमरीका ने चरमपंथ से जुड़े होने की शक में सैकड़ों की संख्या में अफ़गानिस्तान और दूसरे देशों के लोगों को गिरफ़्तार कर क्यूबा के ग्वांतानामो बे बंदीगृह में डाल दिया था।

इस क़ैदखाने को शुरु करने का मक़सद विरोधी पक्ष के उन युद्धबंदियों को बंदीगृह में रखना था जिन पर अमरीका के मुताबिक जेनेवा सम्मेलन के नियम या अमरीकी कानून लागू नहीं होते।

बीबीसी संवाददाता निक चाइल्ड्स के मुताबिक दस साल पहले बनाया गया ये कारावास शुरुआत से ही विवादों में रहा है चाहे वो आंखों पर पट्टी बंधे घुटनों के बल बैठे क़ैदी की तस्वीरें हों या बेड़ियों में क़ैद बंधकों पर हंसते सैनिकों का मामला।

इस बंदीगृह में बंद क़ैदियों में अफ़गानिस्तान के अलावा पाकिस्तान, सऊदी अरब और अन्य देशों के लोग भी शामिल हैं। हालांकि इनमें से कई पर आज भी कोई आरोप नहीं लगाए गए हैं और न ही उनको रिहा किया जा रहा है।

'नासूर बन कर रह गया है'

जनवरी 2009 में राष्ट्रपति पद संभालने के दूसरे ही दिन ओबामा ने घोषणा की थी कि वे एक साल के भीतर ग्वांतानामो बे बंदीगृह को बंद करना चाहते हैं। उस समय उन्होंने इस बंदीगृह को 'अल क़ायदा के लिए एक भर्ती केंद्र' की संज्ञा दी थी।

इस बंदीगृह में कभी 800 से ज़्यादा क़ैदी बंधक रहे और अब यह संख्या घटकर 170 हो गई है लेकिन इसे पूरी तरह बंद करने का ओबामा का वादा अब भी अधूरा है।

राष्ट्रपति के पास आज भी यह अधिकार है कि ग्वांतानामो बे के कुछ क़ैदियों के ख़िलाफ़ अमरीका की ज़मीन पर संघीय बंदीगृहों में मुकदमे चलाए जा सकें और इस क़दम का कई अमरीकी सांसदों ने लगातार विरोध किया है।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक ग्वांतानामो बे कारावास मानवाधिकारों के क्षेत्र में एक नासूर बन कर रह गया है।

इन दस बरसों में एक बड़ी बहस इस मुद्दे पर भी रही है कि ग्वांतानामो बे से अमरीका को मिली कथित सुरक्षा की कीमत क्या अमरीका ने अपनी साख़ गंवाकर चुकाई है?

इस बंदीगृह में मौजूद ज़्यादातर क़ैदी रिहा किए जा चुके हैं लेकिन ग्वांतानामो बे में क़ैद बंधकों का भविष्य अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के अधूरे वादे के बीच राजनीतिक, क़ानूनी और सुरक्षा के सवालों में जकड़ा है।

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