मौलवी ताबीज देकर कहते हैं तुम्हे कुछ नहीं होगा

अनपढ़ लड़कों को हमेशा एंटी वेस्टर्न और एंटी अफगान गवर्नमेंट के खिलाफ भड़काया जाता है। ब्रेन वाश कर उन्हें समझाया जाता है कि बम फटने के बाद भी वे जादूई तरीके से बच जाएंगे। मौलवी जैसे दिखने वाले आतंकी इन बच्चों को कुरान की आयतों वाले ताबीज देते हैं। उनसे कहा जाता है कि बम फटने के बाद तुम्हें कुछ नहीं होगा सिर्फ काफिर मारे जाएंगे।1980 तक सोवियत संघ के खिलाफ सुसाइड बॉम्बर्स को गैर इस्लामी और कायराना तरीका बताया गया है। लेकिन इराक में अरब जिहादियों द्वारा इसके इस्तेमाल से 2001 से अफगानिस्तान में भी सुसाइड बॉम्बिंग कल्चर जोर पकड़ रकहा है।

ये था अफगानिस्तान का पहला सुसाइड बॉम्बर

अफगानिस्तान का पहला सुसाइड बॉम्बर हाफेज अब्दुल्लाह था। 2004 में उसने आर्मी जीप को खुद के साथ बम से उड़ा दिया था। नाटो के मुताबिक हक्कानी नेटवर्क और तालिबान से जुड़े कुछ ग्रुप्स बच्चों को सुसाइड बॉम्बर बनाने में सबसे आगे हैं। ये बच्चे पाक के ट्राइबल एरिया में मदरसों या इस्लामी कॉलेजों से चुने जाते हैं। सदर्न अफगानिस्तान की गरीब पश्तून फैमिलीज फ्री एजुकेशन दिलवाने के के लिए अपने बच्चों को यहां भेजमी है। कई बार सुसाइड अटैक होने तक फैमिलीज को मालूम ही नहीं चलता है कि उनके बच्चे से क्या करवाया जा रहा है।

गुलखान ने सुनाई अपनी दास्तान

अफगान बार्डर से अरेस्ट हुए 10 साल के गुलखान ने बताया कि उसके पिता ने उसे पाक में मौलवी शेरजान के मदरसे भेजा था। वो मौलवी हर दिन बॉडी पर बम बांधकर अफगानिस्तान में फॉरनर्स को मारने की बात कहता है। सुसाइड बॉम्बर बनाने के लिए तालिबान के कैम्प डॉयचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान अपने ट्रेनिंग सेंटर्स में बच्चों को सुसाइड अटैक के बारे में सिखाता है। नॉर्थ-वेस्टर्न बगदीस प्रॉविन्स के घोरमाश डिस्ट्रिक्ट में तालिबान कैम्प है। इसे मुल्ला कय्यूम चलाता है। इसमें ज्यादातर बच्चे किडनैप करके या मां-बाप से खरीदकर लाए जाते हैं। कुछ बच्चों को मार्केट से एक हजार डॉलर यानी करीब 67000 हजार रु  देकर भी लाया जाता है  

सुसाइड बेल्ट के साथ गिरफ्तार हुआ था अब्दुल

जनवरी 2012 में सिक्युरिटी फोर्स ने 13 साल के अब्दुल समत को सुसाइड बेल्ट के साथ अरेस्ट किया था। उसे अफगानिस्तान के कंधार शहर को टारगेट करने के लिए सुसाइड बॉम्बर बनाकर भेजा गया था। अब्दुल पाकिस्तान के क्वेटा का रहने वाला था। ब्लास्ट से पहले आतंकी उसके चेहरे पर काली पट्टी बांधकर चले गए थे। उसे बताया गया था कि ब्लास्ट हो जाने के बाद भी वो जिंदा रहेगा लेकिन उसके सारे दुश्मन मारे जाएंगे। अब्दुल के मुताबिक ब्लास्ट करने से कुछ मिनट पहले मुझे समझ आया कि रिक्रूटर्स ने मेरे साथ मजाक किया है।

पुलिस ने आकर बचाई मेरी जान- अब्दुल

मैंने चिल्लाना शुरू किया तो आसपास के घरों से लोग निकले। उन्होंने मेरी कमर पर सुसाइड बेल्ट लटकी देखी। सभी लोग सहम गए और मुझसे दूर भाग गए। पुलिस आई और मुझसे बम को अलग किया गया। बच्चों को ह्यूमन बम बनाने का मकसद अफगान फोर्स के अफसरों ने बताया, अब्दुल की कहानी कोई नई बात नहीं है। 10 साल से कम उम्र के बच्चे भी इसमें धकेले जा रहे हैं। दरअसल, बच्चों पर फोर्स शक नहीं करती और वह किसी भी चेक प्वाइंट से आसानी से निकल जाते हैं।

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