शिक्षा का काला सच: 8वीं के 100 में से 71 बच्चे दूसरी क्लास के सवाल भी नहीं कर पाए हल

PATNA : 10 में 5 का भाग दिया तो कितना आया? इस सवाल का जवाब सरकारी स्कूल में 8वीं क्लास के बच्चों से पूछा गया। 100 में से 56 बच्चे ही ऐसे थे जो सही जवाब दे पाए। बाकी 44 बच्चे इस सवाल के जवाब में भी अटक गए। इस बात का खुलासा मंगलवार को जारी की गई असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) में हुआ है। असर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार के सरकारी स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले 71.2 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ ठीक से पढ़ सकते है।

समय तक नहीं बता पाए बच्चे

असर की रिपोर्ट में एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ है। जब असर की टीम ने सरकारी स्कूलों के 14 से 16 साल के बच्चों को घड़ी दिखाकर यह पूछा कि बताओ

अभी कितना समय हुआ है तो महज 45.1 प्रतिशत बच्चे ही समय बता पाए। बाकी 54.9 प्रतिशत बच्चों को

यह तक नहीं पता था कि घड़ी में कितने बजे हैं।

प्राइवेट स्कूलों में तीन गुना बढ़ गए बच्चे

रिपोर्ट की मानें तो प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। 2010 में 7 से 16 साल की उम्र के 4.9 प्रतिशत बच्चों ने एडमिशन लिया था। वहीं 2018 में यह 15.6 प्रतिशत पहुंच गया है।

नहीं बढ़ रही अटेंडेंस

मिड डे मिल से लेकर किताब, साइकिल सभी सरकारी प्रलोभन फेल साबित हो रहे हैं। पिछले 8 साल से सरकारी स्कूलों में अटेंडेंस च्यों की त्यों बनी हुई है। 2010 में कक्षा 1 से 5वीं तक के 56.1 प्रतिशत बच्चे ही स्कूल में उपस्थित होते थे। जबकि 2018 में 0.4 प्रतिशत उपस्थिति में वृद्धि हुई है। अभी 56.5 प्रतिशत बच्चे ही प्रेजेंट रहते हैं।

11 प्रतिशत स्कूलों में प्यासे रहते हैं बच्चे

बिहार के 11 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं है। पिछले एक साल में मात्र 0.2 प्रतिशत स्कूलों में ही पेयजल की व्यवस्था की बढ़ोत्तरी हुई। वहीं, 25 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां शौचालय की व्यवस्था नहीं है। 45 प्रतिशत स्कूलों में चारदीवारी तक नहीं है।

इसलिए कभी नहीं पहुंच पाए ओलंपिक

बिहार में मात्र 52.2 प्रतिशत स्कूलों में ही खेल का मैदान है। जबकि सरकारी नियम कहते हैं कि बिना खेल के मैदान के स्कूल को मान्यता ही नहीं मिल सकती। तो ऐसे में सवाल है कि आखिर 47.8 प्रतिशत स्कूलों को किसने मान्यता दी है?

बिहार में 37.6 प्रतिशत स्कूल ही ऐसे है जहां फिजिकल टीचर हैं। प्राइमरी में तो केवल 4.4 प्रतिशत स्कूलों में ही फिजिकल टीचर है जबकि मिडिल में 46.7 प्रतिशत स्कूलों में गेम टीचर हैं।

बिहार के 54.5 प्रतिशत स्कूलों में खेल का सामान है। बाकी 55.5 प्रतिशत में खेल के सामान कोई पता तक नहीं।