संजरपुर सड़क के दोनों तरफ़ बसा हुआ है और इसकी पहचान है आलीशान, सफ़ेद और हरे रंग के मकान.

लगता ही नहीं कि आप किसी गांव में घुस रहे हैं, लेकिन सिर्फ़ तब तक ही जब तक आप पुरानी मस्जिद के पास नहीं पहुंच जाते. मस्जिद से सटा एक बड़ा अहाता है.

यह अहाता 'मिस्टर भाई' यानी शहदाब अहमद का है, जिन्हें अब गांव ही नहीं पूरा आज़मगढ़ नाम से ही पहचान लेता है.

भीतर पसरा हुआ सन्नाटा और खपरैल के नीचे रखी सुराही जैसे कुछ कह रही है इस बाशिंदे के बारे में.

14 बच्चों के पिता, 60 साल के शहदाब अहमद निकल कर आते हैं और शरबत वगैरह पूछते हैं.

साथ ही कहते हैं, "जितने लोग बटला हाउस को याद करते हैं, उतने ही हमारे घर को भी. आप भी क्या पूछने आए हैं, हमें मालूम है".

बटला हाउस

संजरपुर: अब भी बटला हाउस 'एनकाउंटर' की गूंज

आज़मगढ़ के संजरपुर में सैफ का पैतृक घर

दिल्ली के कुछ इलाकों में 13 सितंबर, 2008 को कई बम धमाके हुए थे.

इस घटना को एक हफ़्ता भी नहीं हुआ था कि 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बटला हाउस के एक फ़्लैट में हुई कथित मुठभेड़ में साजिद और आतिफ़ नाम के दो युवकों को मार दिया था और सैफ़ को गिरफ़्तार किया था.

पुलिस के दावे के अनुसार इसी मुठभेड़ में पुलिस अधिकारी मोहन चंद शर्मा की भी मौत हुई थी. पुलिस ने कहा था कि आतिफ़ और साजिद के अलावा उनके कुछ साथी भागने में सफल भी रहे थे.

स्पेशल सेल के अनुसार इन सभी युवाओं का संबंध इंडियन मुजाहिदीन नामक चरमपंथी संगठन से था.

इसी घटना के सिलसिले में शहज़ाद नाम के एक युवक को आज़मगढ़ से गिरफ़्तार किया और दिल्ली की एक अदालत ने जुलाई 2013 में उन्हें मोहन चंद शर्मा की हत्या का दोषी करार देते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई.

संजरपुर

संजरपुर की विडंबना ये है कि बटला हाउस मुठभेड़ में जितने युवक मारे गए, जितने पकड़े गए और जितने फ़रार बताए गए हैं उनमे से अधिकांश यहीं के रहने वाले हैं.

शहदाब अहमद का मामला तो और भी पेचीदा है.

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सैफ़ के पिता शहदाब अहमद को यकीन है कि उनके बेटे निर्दोष हैं.

उनका पुत्र सैफ़ अभी हिरासत में है और उसके बड़े भाई डॉक्टर शाहनवाज़ फ़रार बताए गए हैं.

शहदाब अहमद ने बताया, "सैफ़ के लिए लंबी कानूनी लड़ाई मैं लड़ नहीं सकता था, उस पर से शाहनवाज़, जो पेशे से डॉक्टर हैं, के घर की कुर्की भी हो चुकी है. अब यही घर और मेरे 12 दूसरे बच्चे बचे हैं, उनका क्या होगा अल्लाह ही जाने."

हालांकि सैफ़ के पिता को यकीन तो है कि उनके बेटे निर्दोष हैं, लेकिन उन्हें जांच में पूरा सहयोग देने की ख़ुशी भी है.

उन्होंने कहा, "जो भी सच है वो सामने आना चाहिए. अगर मेरे बेटे दोषी हैं तो उन्हें सजा होनी चाहिए और अगर निर्दोष हैं तो उन्हें आज़ाद किया जाना चाहिए. जेलों और कचहरी के चक्कर लगाते-लगाते हमारा परिवार ख़त्म होता जा रहा है".

सैफ़ की तरह के कई परिवार संजरपुर में मौजूद हैं जिनके घर के युवाओं के ख़िलाफ़ बटला हाउस मुठभेड़ और अहमदाबाद, दिल्ली और जयपुर में हुए बम धमाकों में हाथ होने के आरोप हैं.

परिवार का दर्द

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प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे, जामिया मिलिया इस्लामिया

प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे का मानना है कि इन मामलों के कोर्ट में लंबा चलने से परिवार वालों का इम्तिहान बढ़ जाता है.

जिन लोगों के ख़िलाफ़ आरोप हैं वे या तो जेल में हैं या फ़रार हैं, लेकिन उनके परिवार वालों को समाज में पैनी नज़र से ज़रूर देखा जाने लगा है.

भारत के भाषाई अल्पसंख्यकों के आयोग के आयुक्त प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे को इस बात की तकलीफ़ है कि इन मामलों के लंबे खिंचने से पूरे परिवार का इम्तेहान बढ़ता जाता है.

उन्होंने बताया, "पहली बात तो बटला हाउस मुठभेड़ में व्यापक जांच की ज़रूरत है. दूसरी ये कि किसी एक व्यक्ति विशेष की वजह से पूरे गांव-शहर को बदनाम करना, लगता है कि हमारी फ़ितरत बनती जा रही है."

बटला हाउस मुठभेड़ और उससे जुड़े मामलों में अभी क़ानूनी प्रक्रिया जारी है और कई जगहों पर मुक़दमों की सुनवाई चल रही है.

लेकिन आज़मगढ़ के संजरपुर गाँव वालों का इंतज़ार हर सुनवाई के बाद और लंबा होता चला जा रहा है.

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