कानपुर। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के दो मंजिला घर की गैलरी उनके निजी लेखों और तस्वीरों से से भरी पड़ी है। इनमें उनकी बहादुरी के किस्से छुपे हैं। ऐसे में यहां आने पर हर किसी को संदीप को करीब से जानने का मौका मिलता है । 2008 में मुंबई पर 26/11 के हमले के दौरान पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादियों से जूझते हुए संदीप ने अंतिम सांस ली थी।

इस वजह से सचिन को पसंद करता था संदीप

इसरो के सेवानिवृत्त अधिकारी व संदीप के पिता उन्नीकृष्णन कहते हैं कि संदीप सचिन तेंदुलकर की तरह हमेशा जीत के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था। शायद इसीलिए वह सचिन काे बहुत पसंद करता था। जब भारत मैच हारता था तो वह काफी मायूस हाे जाता था। वह हमेशा चाहता था कि उसका देश जीते। वहीं जब भी कोई इसरो परियोजना विफल हो जाती है तो वह मुझे सांत्वना देता था।

बैंक बैलेंस में केवल 3 से 4 हजार रुपये मिले

उन्नीकृष्णन के मुताबिक संदीप धर्मार्थ प्रकृति का था और मदद करने में आगे रहता था। इसकी जानकारी मुझे बेटे के जाने के बाद हुई। उन्होंने बताया कि उसके जाने के बाद उसके बैंक बैलेंस में मुझे केवल 3 से 4 हजार रुपये मिले थे, जबकि वह काफी अच्छी सैलरी पाता था। इस पर मुझे लगा कि शायद वह अपने लिए मंहगी ब्रांडेड चीजों को खरीदने की वजह से ज्यादा बचत नहीं कर सका।

संदीप धर्मार्थ संस्थानों को पैसा दान करता

ऐसे में उसके दोस्तों ने बताया कि उसने अपनी अधिकांश कमाई दान में दे दी है। उसके एक सहयोगी ने यह भी बताया कि संदीप ने मां की बीमारी का काफी खर्च उठाया था, जो स्पाइन की परेशानी से जूझ रही थीं। इतना ही नहीं संदीप नियमित रूप से कई धर्मार्थ संस्थानों को पैसा दान करता था। इसका बात का पता तब चला जब दान के लिए मुझे रिमाइंडर प्राप्त होने लगे थे।

2009 को ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित हुआ

संदीप राष्ट्रवादी थे। उनके लिए राष्ट्रवाद का मतलब था कि देश के लिए कुछ बेहतर करना था न कि उससे फायदा लेना। मेजर संदीप मुंबई में ताज पैलेस होटल से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए एनएसजी कमांडो की एक टीम का नेतृत्व करते हुए शहीद हुए थे। संदीप को सूझ-बूझ और बहादुरी का परिचय देने के लिए 26 जनवरी 2009 को ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया था।

एजेंसी इनपुट सहित

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