- सर्वे में फर्जी मिले 27 लाख कुपोषित बच्चे और गर्भवती महिलाएं

- प्रमुख सचिव ने कराया सर्वे तो खुली फर्जीवाड़े की पोल

- पंजीरी माफिया ले रहा था फर्जी बच्चों और महिलाओं का भुगतान

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW :

केंद्र सरकार ने कुपोषण खत्म करने को आईसीडीएस स्कीम चालू की ताकि नई पीढ़ी सेहतमंद होकर देश की उन्नति में सहायक बन सके लेकिन, यूपी के अफसरों ने इस मंशा पर पानी फेर दिया। सूबे में पंजीरी माफिया की मिलीभगत से अरबों रुपये की हेराफेरी करने को वे तरीके आजमाए गये जिससे मानवता भी शर्मसार हो जाए। सूबे में सरकार बदली तो तमाम फर्जीवाड़ों का खुलासा होने लगा। बाल विकास पुष्टाहार महकमे में भी इस तरह का एक बड़ा घोटाला सामने आया है। पंजीरी वितरण में मिल रही शिकायतों के बाद विभागीय सर्वे कराया गया तो पता चला कि प्रदेश में 27 लाख फर्जी कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं के नाम पर भी पंजीरी बांटी जा रही थी। इनका कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं था लेकिन फाइलों में उनके नाम दर्ज कर सरकारी धन की बंदरबांट चल रही थी।

भौतिक सत्यापन में खुलासा

दरअसल बाल विकास पुष्टाहार महकमे की प्रमुख सचिव अनीता सी। मेश्राम ने आईसीडीएस स्कीम के लाभार्थियों की सही संख्या का पता करने के लिए एक भौतिक सर्वे कराया। सर्वे के दौरान प्रत्येक लाभार्थी का कोई न कोई आधिकारिक पहचान पत्र (आधार नंबर, राशन कार्ड इत्यादि) के आधार पर ही उन्हें बतौर लाभार्थी चुनने को कहा गया। जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं था, उनकी मौके पर फोटो करने और उससे संबंधित सारी जानकारियां एकत्र करने के निर्देश दिए गये थे। इस सर्वे के बाद पता चला कि सूबे में करीब 27 लाख ऐसे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के नाम भी लाभार्थियों में दर्ज हैं जिनका कोई अता-पता ही नहीं है। आशंका जताई जा रही है कि घोटाला अंजाम देने को बड़ी संख्या में फर्जी लाभार्थी बनाए गये और उनको बांटे जाने वाले पुष्टाहार की रकम को पंजीरी माफिया और अफसरों ने मिलीभगत कर डकार लिया। सर्वे रिपोर्ट में कुपोषण की शिकार लड़कियों की संख्या को लेकर शंका हुई तो इसका दोबारा गहनता से सर्वे कराने का फैसला भी लिया गया ताकि आधी आबादी को इस अहम योजना के लाभ से वंचित न रखा जा सके।

नये लाभार्थियों पर रोक

सर्वे के बाद यह फैसला भी लिया गया है कि फिलहाल आगे लाभार्थियों को योजना से जोड़ा नहीं जाएगा। पहले से जो कुपोषित बच्चे और महिलाएं हैं, सारा ध्यान उनका कुपोषण दूर करने में लगाया जाएगा। विभाग द्वारा सही लाभार्थियों की कम्प्यूटराइज्ड सूची भी तैयार की जा रही है। साथ ही नई सिरे से हो रही पंजीरी सप्लाई की ई-टेंडर प्रक्रिया में भी कई अहम बदलाव किये जा रहे हैं। पंजीरी माफिया की कमर तोड़ने को पंजीरी सप्लाई के काम को विभाजित कर दिया गया है। अब राज्य के बजाय जिला स्तर पर पंजीरी सप्लाई का काम दिया जाएगा। वहीं ब्लॉक के बजाय सीधे सेंटर पर पंजीरी की आपूर्ति की जाएगी। विभाग द्वारा अन्य प्रदेशों में सफलतापूर्वक चल रही पंजीरी योजना की जानकारी भी जुटाई गयी है जिनके मुताबिक नई निविदा में कई अहम बदलाव किए जा रहे हैं। साथ ही पुष्टाहार की रेसिपी में भी बदलाव किए जा रहे हैं।

हर साल करोड़ों का गोलमाल

सर्वे से यह साबित हो गया कि यूपी में पंजीरी सप्लाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये का गोलमाल अंजाम दिया गया। यह सिलसिला पिछले पंद्रह सालों से जारी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक साल में कम से कम 300 दिन पंजीरी देना जरूरी है। वहीं रोजाना छह, आठ और नौ रुपये के हिसाब से कंपनियों को प्रत्येक लाभार्थी का पंजीरी वितरण का भुगतान होता है। इन तथ्यों के हिसाब से अगर 27 लाख फर्जी लाभार्थियों का भुगतान होता रहा तो यह रकम सैंकड़ों करोड़ तक पहुंचती है। अब देखना यह है कि राज्य सरकार इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद क्या रुख अपनाती है।

लाभार्थियों की सही संख्या पता लगाने के लिए भौतिक सत्यापन कराया गया था जिसमें करीब 27 लाख फर्जी लाभार्थी मिले हैं। फिलहाल नये लाभार्थियों को योजना में शामिल करने का काम रोक दिया गया है ताकि पुराने लाभार्थियों को पूरा फायदा देकर उन्हें कुपोषण के दंश से मुक्त कराया जा सके।

अनीता सी। मेश्राम

प्रमुख सचिव

बाल विकास पुष्टाहार विभाग

सर्वे में सामने आया सच

श्रेणी सर्वे से पहले सर्वे के बाद

6 माह से 3 साल तक के बच्चे 124.36 114.78

3 साल से 6 साल तक के बच्चे 116.22 103.39

गर्भवती/धात्री महिलाएं 52.77 48.07

कुल 293.35 266.25

(संख्या लाख में)

- 800 करोड़ रुपये का भुगतान हर साल पंजीरी सप्लाई का

- 10 दागी कंपनियां कर रही सालों से पंजीरी सप्लाई का काम

- 2013 में आखिरी बार हुआ था पंजीरी सप्लाई का टेंडर

- 6 बार एक्सटेंशन लेने में सफल रही हैं दागी कंपनियां

- 21 सरकारी चीनी मिलें खरीदने वालों में पंजीरी सप्लाई करने वाली कंपनियां भी