RANCHI: राज्य सरकार के उदासीन रवैये के कारण फ्म्0 छात्राओं की पढ़ाई छूट गई। मजबूर होकर ये छात्राएं अपने-अपने घरों को लौट रही हैं। जी हां, वित्तीय वर्ष ख्0क्भ्-क्म् का फंड सरकार द्वारा रिलीज नहीं किए जाने के कारण महिला समाख्या केंद्र बंद होने के कगार पर हैं। राज्य भर में इस कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए लगभग ब्00 महिला-पुरुष काम कर रहे हैं। लेकिन, फंड के अभाव में गांव-गांव में लड़कियों की पहले पढ़ाई, फिर विदाई का अभियान फ्लॉप साबित हो रहा है। महिला समाख्या सोसाइटी द्वारा यह अभियान क्क् महीने चलाना था, लेकिन सोसाइटी नौ माह ही इस अभियान को चला पाई।

क्या है मामला

महिला समाख्या कार्यक्रम देश के क्क् राज्यों में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित है। जो महिलाओं, छात्राओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में, रोजगार परक, महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम कर रहा है। महिला समाख्या ने केंद्र सरकार को इस कार्यक्रम को चलाने के लिए क्भ् करोड़ का प्रस्ताव दिया था। लेकिन, यह प्रस्ताव नामंजूर हो गया और एक करोड़ की राशि ही रिलीज की गई। पर, उस राशि का भी पता नहीं है कि मानव संसाधन विभाग के किस मद में जाएगा।

यहां चल रहे थे स्कूल

साहेबगंज, चतरा, पश्चिम सिंहभूम, पाकुड़, सरायकेला-खरसावां रांची, गिरिडीह, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा जिलों में महिला समाख्य सोसायटी के स्कूल चल रहे थे

छात्राओं की पीड़ा

क्। कहां पढ़ेगी माता-पिता को खो चुकी चुड़की

महिला समाख्या केंद्र के तत्वावधान में शिक्षा ग्रहण कर रही छात्रा चुड़की सोरेन साहेबगंज दुधिया गांव की रहनेवाली है। उसके माता-पिता इस दुनिया में नहीं रहे। वह अपनी बुआ के पास रहती थी। बुआ के पांच बच्चे होने के कारण चुड़की के भरण-पोषण में दिक्कत होती थी। इस वजह से वह पढ़ाई नहीं कर पा रही थी। इसके बाद वह महिला समाख्या केंद्र में ही रहकर पढ़ाई करने लगी। परंतु, अब सरकार की नीति के कारण उसे घर जाना पड़ रहा है। चुड़की की समस्या यह है कि अब वह कहां रहेगी और कौन से स्कूल में उसका दाखिला होगा। यही हाल विनीता मुर्मू, तेरेषा मरांडी, शिवानी बास्की, धनी किस्कू, गंगी पहाडि़न, मलोती कुमारी, जयंती सरदार, मोनिका टुडू, फूलमनि सोरेन का भी है।

ख्। डॉक्टर बनने का मिरकू का सपना कैसे होगा पूरा

साहेबगंज जिले की तारापुर प्रखंड के बोरिया गांव की रहनेवाली मिरकू सोरेन का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। मिरकू सोरेन के मुताबिक, उसके पिता गांव में कम जमीन में किसी तरह खेती-बाड़ी कर काम चलाते हैं। उसके पांच भाई-बहन है। उसका कहना है कि वह बिल्कुल अनपढ़ थी, उसके बाद महिला समाख्या केंद्र के बारे में उसे जानकारी हुई तो पिता ने उसे वहां पहुंचा दिया। वह मन लगाकर पढ़ रही थी। उसका कहना है कि उसके पिताजी नौकरी नहीं करते हैं, तो वह अपने पांव पर खड़ी होना चाहती थी। लेकिन, आज उसे पढ़ाई छोड़ कर घर जाना पड़ रहा है।