बन गए शोपीस
करोड़ों रुपये का बजट खपने के बाद जल निगम के लगाए गए हैंडपंप खुद प्यासे हैं। पब्लिक इनके पास पहुंचती है लेकिन पानी नहीं मिलने से वह मायूस होकर लौट जाती है। साथ ही संबंधित डिपार्टमेंट को कोसती है। ये हैंडपंप महज लोगों के लिए शोपीस बनकर रह गए हैं।
नजर भी नहीं डालते
शोपीस हो चुके हैंडपंप पर जल निगम की नजर नहीं पड़ती है। यही वजह है कि सालों से सूखे पड़े हैंडपंप आज भी जीर्णोद्वार की बांट जोह रहे हैं। वहीं, लोगों की प्रॉब्लम को नजरअंदाज करते हुए जल संस्थान अपने वर्क को लेकर हाथ खड़े कर देता है। साथ अब फिर से बजट का रोना रोता है।
कागज में चालू
हैंडपंप की मॉनिटरिंग जल संस्थान डिपार्टमेंट करता है। उसे सरकारी कागजों पर चालू भी रखता है। क्र'आई नेक्स्टक्र' ने जब जल निगम और संस्थान से इस पर सवाल किया तो जवाब एक ही रहा। ज्यादातर चल रहे हैं। जबकि लगे हैंडपंप में 60 परसेंट से ज्यादा खराब पड़े हैं। यह बात एक सर्वे में सामने आई है। कुछ हैंडपंप अपनी जगह से गायब हो गए हैं। जिनका अता-पता डिपार्टमेंट को नहीं।
प्याऊ बने सहारा
जल निगम और संस्थान के ढीले रवैये की वजह से खराब हैंडपंप जस के तस हैं। ऐसे में पब्लिक को राह चलते प्याऊ का सहारा रहता है। सामाजिक संस्थाओं द्वारा लगाए गए प्याऊ  के पानी से ही उनकी प्यास बुझती है।  
आरओ बड़ा कारण
सूख चुके हैंडपंप के साथ सिटी में वाटर लेवल दिनोंदिन घटता जा रहा है। जल संस्थान के ऑफिसर्स का कहना है कि हर दूसरे घर में सबमर्सिबल लगा हुआ है। आरओ बढ़ता जा रहा है। 100 लीटर पानी बनाने में 1,000 लीटर पानी वेस्ट किया जाता है। ऐसे में पानी का संकट और भी ज्यादा गहरा रहा है।

Figure Speak

नंबर ऑफ हैंडपंप - 7,399
री-बोरिंग के लिए - 1,200
ऑनलाइन कंप्लेन - 22

यह हैं सूखे
- सेंट जोंस कॉलेज के आस-पास लगे हैंडपंप
- एमजी रोड के किनारे लगे हैंडपंप
- शहीद नगर, राजपुर चुंगी, अर्जुन नगर, कमला नगर, विजय नगर, शास्त्रीपुरम्, जयपुर हाउस
- गवर्नमेंट ऑफिस में लगे हैंडपंप

खराब हैंडपम्प की कंप्लेन पर डिपार्टमेंट एक्शन लेता है। मेंटिनेंस वर्क पर ज्यादा जोर देने की जरुरत है।
वीके गुप्ता, जीएम
जल संस्थान

- प्यास पैसा खर्च करने के बाद बुझानी पड़ती है। लगे हैंडपंप को खुद पानी की जरुरत है।
Sandeep
- हैंडपंप तो लगे है लेकिन इनसे पानी नहीं निकलता है।

Manish