1940ज का वक्त बीतते-बीतते ही अगले डिकेड की तस्वीर साफ होने लगी थी, वो तस्वीर जिसमें तीन ऐसे नाम साफ दिखाई दे रहे थे जो आने वाले वक्त में इंडस्ट्री के आसमान पर छा जाने वाले थे: देव आनंद, दिलीप कुमार और राज कपूर. इंट्रेस्टिंग ये कि इन तीनों की एंट्री 40ज में ही हो चुकी थी.

50s: the golden era of indian cinema

देव आनंद:

एक्टर बनने से पहले देव आनंद एक अकाउंटेंसी फर्म में 85 रुपए महीना की नौकरी कर रहे थे. एक्टिंग करने का शौक उन्हें चढ़ा फिल्म अछूत कन्या में अशोक कुमार को देखकर. इंट्रेस्टिंग ये कि उन्हें पहला बिग ब्रेक देने वाले भी अशोक कुमार ही थे. अशोक ने देव को स्टूडियो में टहलते देखा और फिल्म जिद्दी के लिए साइन कर लिया. इस फिल्म ने देव के करियर की दिशा बदल दी.

डेब्यू

देव आनंद को फिल्मों में पहला ब्रेक दिया था प्रभात स्टूडियो के बाबू राव पाई. एक बार देव ने एक इंटरव्यू में बताया कि बाबू राव से मिलने के लिए वह परमिशन ना होने के बाद भी उनके ऑफिस में धड़ाधड़ाते हुए घुस गए

और उनके सामने खड़े हो गए. बाबू राव बस उन्हें देखते रहे. कुछ ही वक्त बाद देव को प्रभात फिल्म्स की फिल्म हम एक हैं में रोल ऑफर हुआ. बाद में देव को लोगों से पता चला कि बाबू राव ने उनके बारे में कहा था, ‘मैं उस लडक़े को बस देखता रहा. और उसी वक्त मैंने इसे फिल्मों में लेने का मन बना लिया था, क्योंकि उसकी स्माइल और आंखें बेहद खूबसूरत थीं.’

(हाईलाइटर) फैक्ट फाइल:

देव ने सुरैया के साथ अफसर, दो सितारे, सनम जैसी कई सुपरहिट फिल्में कीं. इन सभी फिल्मों में क्रेडिट्स में सुरैया का नाम देव से पहले आता था, क्योंकि वह उनसे बड़ी स्टार मानी जाती थीं. प्रोड्यूसर्स का मानना था कि ये सारी फिल्में सुरैया की वजह से हिट हुई हैं. आनंद ने इस वक्त तक अहम मेल लीड वाला रोल ढूंढऩा शुरू कर दिया था जो उन्हें मिला जिद्दी में.

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दिलीप कुमार

दिलीप कुमार (मोहम्मद यूसुफ खान) फिल्मों में काम करना चाहते थे लेकिन उनके पिता इसके खिलाफ थे. पिता से झगड़ा होने के बाद वह पुणे आ गए और एक फूड कैंटीन में काम करने लगे. देविका रानी ने उन्हें एक मिलीटरी कैंटीन में देखा और अपनी फिल्म ज्वार भाटा में लीड रोल के लिए फाइनल कर दिया. ये दिलीप कुमार का डेब्यू था. उन्हें दिलीप कुमार नाम दिया मशहूर राइटर भगवती चरण वर्मा ने.

पॉपुलैरिटी

दिलीप कुमार की शुरुआती फिल्में आईं और चली गईं. मगर 1940ज के एंड तक उन्हें नोटिस किया जाने लगा. ट्रैजडी किंग दिलीप का सितारा चमका 1950ज में, और कुछ ऐसे कि उन्हें इंडियन सिनेमा के सबसे बड़े स्टार्स में से एक माना जाता है.

हाईलाइटर:

ट्रैजेडी किंग के नाम से जाने जाने के बाद, दिलीप ने अपने साइकियाट्रिस्ट के सजेशन पर हल्की-फुल्की फिल्में करनी शुरू की थीं

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Raj kapoor

1947 में बतौर मेल लीड, नील कमल में आने से पहले राज कपूर  करीब 12 फिल्में कर चुके थे जिन्हें कुछ खास नोटिस नहीं किया गया. नील कमल आई और राज कपूर का नाम छा गया. राज कपूर को शो मैन उनकी एक्टिंग एबिलिटी नहीं, सिनेमा को बतौर फिल्म मेकर कई बेहतरीन फिल्में देने के लिए कहा जाता है. राज, इस ट्रायो के शायद इकलौते स्टार थे जिसकी पॉपुलैरिटी रशिया, चाइना, साउथ ईस्ट एशिया तक थी.

फिल्म मेकिंग:

राज कपूर की सक्सेस का बहुत बड़ा रीजन उनकी अपनी फिल्म मेकिंग है. 50ज के दौर में एक्टिंग के साथ ही वह फिल्म मेकिंग में भी काफी हद तक एक्टिव हो चुके थे. वह अपने वक्त के सबसे कम उम्र डायरेक्टर थे. राज कपूर को बेस्ट टैलेंट से जुडऩा पसंद था. फिल्म मेकर से लेकर प्लेबैक सिंगर, म्यूजीशियन तक, उनके इर्द गिर्द इंडस्ट्री का सबसे बड़ा टैलेंट रहता था.