लंबे अरसे से घाटे में है एयर इंडिया
करदाताओं के पैसे पर जैसे-तैसे अस्तित्व में रहने को संघर्ष कर रही एयर इंडिया लंबे अरसे से घाटे में है। नीति आयोग समेत कई स्तरों पर इसको लेकर प्रस्ताव आये हैं। नीति आयोग ने हाल में इसका पूरी तरह अधिग्रहण करने का सुझाव दिया है। टाटा समूह एयर इंडिया की हिस्सेदारी खरीदने के विकल्पों पर विचार कर रहा है। इसके संबंध में समूह के भीतर और सरकारी प्रतिनिधियों के साथ बैठकें हो चुकी हैं।

51 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकता है टाटा

नागरिक विमानन मंत्रालय एयर इंडिया का राष्ट्रीय एयरलाइन का दर्जा बनाये रखना चाहता है। निजीकरण के एक विकल्प के अनुसार सरकार 51 फीसद हिस्सेदारी अपने पास रखे जबकि 49 फीसद हिस्सेदारी विदेशी समेत किसी भी निजी कंपनी को बेच दी जाए। ऐसी स्थिति में सरकार के पास बहुमत हिस्सेदारी होगी लेकिन परिचालन नियंत्रण निजी क्षेत्र के भागीदार के पास होगा। सरकार इसके नॉन-कोर एसेट्स को बेचकर इसके घाटे को कम करने के विकल्प पर भी विचार कर रही है।
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एयर इंडिया को टाटा एयरलाइंस कहते थे
1932 में मशहूर उद्यागपति जेआरडी टाटा ने इस एयरलाइंस की नींव रखी थी। उस वक्त इसका नाम एयर इंडिया नहीं बल्िक टाटा एयरलाइंस हुआ करता था। टाटा जब 15 साल के थे, तभी से उन्हें हवाई जहाज उड़ाने का शौक था। उन्होंने बकायदा इसकी ट्रेनिंग ली और एक प्रोफेशनल पायलट बन गए। जिसके बाद टाटा ने अपनी एक एयरलाइंस कंपनी खोली।

जेआरडी टाटा ने उड़ाया था पहला विमान
जेआरडी टाटा ने अपनी पहली व्यावसायिक उड़ान 15 अक्टूबर को भरी। उस वक्त वो सिंगल इंजन वाले 'हैवीलैंड पस मोथ' हवाई जहाज को अहमदाबाद से होते हुए कराची से मुंबई लाए थे। उस वक्त उनके जहाज में कोई सवारी नहीं, बल्िक 25 किलो चिठ्ठियां थीं। यह लेटर्स लंदन से 'इंपीरियल एयरवेज' के जरिए कराची लाए गए थे। टाटा अपने विमान से उन पत्रों को भारत ले आए।
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मिट्टी के मकान में था ऑफिस

टाटा अपने पैसों से विमान को उड़ाया करते थे। उस वक्त ब्रिटिश सरकार उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं उपलब्ध करवाती थी। सिर्फ चिठ्ठी को इधर से उधर ले जाना का उन्हें कमीशन मिलता था। हर चिठ्ठी पर उन्हें चार आने दिए जाते थे। धीर-धीरे टाटा एयरलाइंस का बिजनेस बढ़ने लगा। पहले इसका ऑफिस मुंबई के जुहू में एक मिट्टी के मकान में होता था। वहां मौजूद मैदान को उन्होंने रनवे बनाया था।
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भारत सरकार ने कर लिया अधिग्रहण

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइंस ने काफी सहयोग किया था। जरूरी सामान ले जाना हो या शरणार्थियों की जान बचाना टाटा के विमानों ने युद्ध के माहौल में पूरी सहायता दी। युद्ध के खत्म होते ही भारत सरकार ने टाटा एयरलाइंस का अधिग्रहण कर उसका नाम 'एयर इंडिया' रख दिया।  
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टाटा के लिए घर वापसी

टाटा के लिए एयर इंडिया की खरीद घर वापसी जैसी होगी। इस समय इस पर 52,000 करोड़ रुपये कर्ज बकाया है। ऐसे में अगर टाटा ग्रुप इस कर्जे को भर दे तो फिर से एयर इंडिया की कमान टाटा ग्रुप के पास पहुंच जाएगी।

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