पुलिस इसे गढ़चिरौली ज़िले में नक्सली कार्रवाईयों के ख़िलाफ़ अपनी बडी उपलब्धि बता रही है. यह गढ़चिरौली तथा गोंदिया पुलिस की साझा कार्रवाई थी.

मरने वाले माओवादियों में पांच पुरुष और दो महिलाएं शामिल हैं. माओवादियों की तरफ़ से इस घटना के बारे में फ़िलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

गढ़चिरौली के पुलिस उपमहानिरिक्षक रविंद्र कदम ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में बताया, ''सात माओवादियों ने 16 तारिख़ को खुर्सापार गांव में पंचायत में घुसकर कुछ काग़ज़ात जलाए थे. जिसके बाद हमने उनकी तलाश में चार टीमें कोरची तहसील के अलग-अलग इलाक़ों में भेजी थीं.''

हथियार भी बरामद

पुलिस का कहना है कि माओवादियों को जब आत्मसमर्पण करने को कहा गया, तो उन्होंने पुलिस पर गोलीबारी शुरू की, जिसके जबाव में पुलिस ने की गोलीबारी में सात माओवादी मारे गए.

हाल की घटनाएं

-4 अप्रैल 2013 - महाराष्ट्र छत्तीसगड सीमा पर स्थित भातपूर जंगल में सात माओवादी मारे गए.

-12 अप्रैल 2013 - सिन्देसुर जंगल में चार माओवादी मारे गए.

-7 जुलाई 2013 - एटापल्ली तहसील में छह माओवादी मारे गए.

-9 फरवरी 2014 - दमारांचा जंगल में तीन माओवादी मारे गए.

कदम के अनुसार मौक़े से सात हथियार भी बरामद किए है.

मुठभेड़ में मारे गए छह माओवादियों की पहचान हो चुकी है. मरने वालों में नॉर्थ गढ़चिरौली-गोंदिया डिविज़नल कमेटी मेंबर लालसू, लगीन, प्लाटून क्रमांक 56 का कमांडर उमेश, वीरू तथा चमको और रुन्नीबाई यह दो महिला माओवादी शामील हैं, एक की शिनाख़्त होनी अभी बाक़ी है.

मौक़े से पुलीस ने एक एके-74, दो एसएलआर, एक कार्बाईन, एक 303 बंदूक़, एक 12 बोअर बंदूक़ और एक पिस्तौल बरामद किया.

कदम ने बताया कि कोरची तहसील में पिछले सात महीनों से कोई भी माओवादी गतिविधी नहीं थी.

उनके अनुसार, “खुर्सापार ग्राम पंचायत के काग़ज़ात जलाना एक प्रयास था जिससे की माओवादी अपनी दहशत फिर से क़ायम कर सकें. मुठभेड़ के बाद, पुलीस टीमें पुरे इलाक़े में सघन अभियान शुरू कर दिया है.”

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