आई-एक्सक्लूसिव

-केंद्र की नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम में शामिल हुआ उत्तराखंड अब एमओयू की तैयारी में।

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-आठ साल में फ्लड कंट्रोल के लिए हो पाएगा ठोस काम

- उत्तराखंड को तीसरे चरण में 33 राज्यों के साथ किया गया है स्कीम में शामिल

DEHRADUN: नदियों से तबाही के उत्तराखंड में दर्जनों उदाहरण हैं। कहीं पिंडर, कहीं अलकनंदा या फिर भागीरथी का रौद्र रूप जान-माल पर भारी पड़ता रहा है। नदियों की तबाही को रोकने के लिए प्रयास कई हुए हैं, लेकिन प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं पड़ा है। इस कोशिश में राज्य सरकार को अब केंद्र सरकार का बड़ा सहारा मिला है। नेशलन हाईड्रोलॉजी स्कीम के तीसरे चरण में उत्तराखंड ने अपनी जगह बनाई है। सरकार इस पर नए साल में केंद्र सरकार के साथ एमओयू साइन करेगी।

ये है नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम

नदियों से बाढ़ के रूप में होने वाली तबाही के साथ ही जल संसाधन के बेहतर उपयोग के लिए केंद्र सरकार की नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम काम कर रही है। वर्ष क्99भ् में इस स्कीम को लागू किया गया था। उस वक्त नौ राज्य इस स्कीम में शामिल किए गए। ख्00म् में इस स्कीम के दूसरे चरण में राज्यों का दायरा बढ़ा और क्7 राज्यों का नंबर आ गया। तीसरा चरण में इस साल फ्फ् राज्य स्कीम में शामिल किए गए हैं, जिसमें उत्तराखंड भी शामिल है।

नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम-एक नजर

7भ्

करोड़ का बजट इस स्कीम के लिए केंद्र सरकार ने उत्तराखंड को देना मंजूर किया है।

08

साल लगेंगे इस योजना के क्रियान्वयन में। सिंचाई विभाग योजना की जिम्मेदारी

ख्0क्म्

में हो पाएगा नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम को लेकर केंद्र और उत्तराखंड सरकार के बीच एमओयू।

ये होंगे इस स्कीम के फायदे

नेशनल हाईड्रोलॉजी स्कीम का सबसे बड़ा फायदा बाढ़ को लेकर भविष्यवाणी होगी। अभी ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जो नदियों में जल स्तर बढ़ने की प्रभावी पूर्व सूचना दे दे। इस स्कीम के तहत जगह-जगह नदियों में इंडीकेटर लगाए जाएंगे, जो कि तमाम तरह की सूचनाएं उपलब्ध कराएंगे। इसके अलावा, जल संसाधन की घटती-बढ़ती स्थिति के अलावा इसके बेहतर उपयोग के संबंध में भी काम हो पाएगा।

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-निश्चित तौर पर नेशनल हाइड्रोलॉजी स्कीम में शामिल होना उत्तराखंड के लिए बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। हम फ्लड कंट्रोल के लिए अब ठोस काम कर पाएंगे। स्कीम में राज्य का नाम शामिल हो चुका है, अब एमओयू से पहले की तैयारियों में विभाग जुटा हुआ है। एमओयू ख्0क्म् में किया जाएगा।

-राजेंद्र चालिसगांवकर, एचओडी, सिंचाई विभाग।