- खुद रो रहे थे और दूसरे को भी ढांढस बंधा रहे थे सगे-संबंधी

मथुरा: छाता सड़क हादसे के छह शव पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंचे, तो संबंधियों के रुदन से हर ओर चीख-पुकार और चीत्कार मच गया। राह चलते लोगों के कदम भी रुक गए।

सोबरन सिंह, सतीश, निखिल, दीपक, मुस्कान और जाह्नवी के परिवार वाले जैसे ही पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंचे, तो कोई गश खाकर गिर गया, तो कोई बुत बन गया। खुद रो रहे थे और दूसरे को सांत्वना भी दे रहे थे। एक परिवार के छह लोगों की मौत की खबर सुन हर कोई अवाक था। सोवरन और सतीश की जेब में मोबाइल भी मिले। परिवार और संबंधी दुर्घटना की जानकारी के लिए इनके मोबाइल पर भी फोन लगा रहे थे। पोस्टमार्टम हाउस के कर्मचारी ही इन फोन को उठाकर उन्हें जानकारी दे रहे थे। मृतकों का भतीजा अनुज पोस्टमार्टम गृह पहुंचा, तो उसे लगा कि दुनिया ही लुट गई। वह रोए जा रहा था, कह रहा था कि बुधवार की शाम पूरा परिवार सभी से मिलकर निकला था। भांजी की शादी में भात देकर सभी खुश थे। विश्वास नहीं हो रहा कि उसके चाचा दुनिया में नहीं हैं।

मौतों के बाद टूटी प्रशासन की नींद

मथुरा: हाईवे पर गुरुवार तड़के भीषण हुए हादसे के बाद प्रशासन लापरवाही की नींद से जागा। हादसा होते ही सामने स्थित पेप्सी कंपनी के गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मचारी तत्काल मौके पर पहुंचे। पुलिस को फोन कर सूचना दी। छाता पुलिस ने बेहद तेजी दिखाते हुए हादसे के निशान भी मिटा दिए। दोनों वाहनों को थाने ले गए। सुबह एसपी देहात आदित्य कुमार मौके पर पहुंचे और घटना जा जायजा लिया। पूर्वाह्न करीब साढ़े दस बजे एसएसपी स्वप्निल ममगई एसपी देहात, एसडीएम छाता डॉ। राजेंद्र पेंसिया के साथ पहुंचे। उन्होंने वहां कंपनियों के द्वारा सुरक्षा मानकों में लापरवाही को लेकर फटकार लगाई। कहा कि कम से कम यहां रेडियम संकेतक और रेडियम पट्टियां होनी चाहिए। एसडीएम छाता ने बताया कि कंपनी को सुरक्षा संबंधी निर्देश दिए गए हैं।

कराहते रहे घायल, कर्तव्य भूले अस्पताल कर्मी

मथुरा: घायलों को लेकर जिला अस्पताल में कोई संजीदा नहीं था। बड़े कराह रहे थे और बच्चे करवट बदल रहे थे, लेकिन उन्हें देखने वाला कोई कर्मचारी तक नहीं था। अफसरों के जाने के बाद स्टाफ घायलों को उनके हाल पर छोड़ बैठा। परी, सलोनी, आकांक्षा, फूलनदेवी, अमोली और रेखा को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना की खबर पर सिटी मजिस्ट्रेट बंसत अग्रवाल, सीएमओ डॉ। शरद कुमार त्यागी देखने पहुंचे। अधिकारियों के सामने तो डॉक्टर इलाज करते रहे, लेकिन एक मरीज के लिए चादर भी अधिकारियों को ही मंगानी पड़ी।