बदल दी थी जाति:

लाल बहादुर शास्त्री जी जाति सूचक शब्दों के विरोधी थे। इनके बचपन का नाम नन्हे था, लेकिन ये जब बड़े हुए तो ये लालबहादुर श्रीवास्तव के नाम से पहचाने जाने लगे। इस दौरान उन्हें काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि मिल गई।  इसके बाद ही इन्होंने खुद को कचोटने वाला जातिसूचक शब्द'श्रीवास्तव' हटाकर 'शास्त्री'रख लिया था।

जेल यातना सही:

शास्त्री जी के अंदर देश प्रेम की भावना बचपन से ही जागृत थी। इसका उदाहरण है कि 1921 के असहयोग आंदोलन में इन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके बाद तो इनका सफर बढ़ता गया है। 1930 के दांडी मार्च तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन विशेष रूप से शामिल रहे। देशभक्ित से लबरेज शास्त्री जी को इस संघर्ष में जेल यातना भी सहनी पड़ी थी।

18 महीने रहे पीएम:

9 जून 1964 से लेकर 11 जनवरी 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे। इस 18 महीने के कार्यकाल में ही भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध भी हुआ था। इस दौरान पाकिस्तान के साथ युद्ध में कुशल नेतृत्व व दूरदर्शी फैसलों से उन्होंने पाकिस्तान को मार भगाया था। शास्त्री जी कार्यकाल राजनैतिक सरगर्मियों से भरा था।

थर्ड क्लास का तोहफा:

लाल बहादुर शास्त्री विदेश मंत्री गृहमंत्री और रेल मंत्री के पद पर भी आसीन हुए थे। उनके शासन काल में आम लोगों को रेलवे में थर्ड क्लास में सफर करने का मौका मिला था। इतना ही नहीं उन्होंने रेल यात्रा करने वाले यात्रियों के मन में असमानता न रहें इसलिए फर्स्ट क्लास और थर्ड क्लास के श्रेणी फासले को खत्म किया था। उन्होंने ही थर्ड क्लास बॉगी में पंखे लगावाए थे।

रेलमंत्री पद से इस्तीफा:

देशवासियों के लिए खुद का जीवन समर्पित करने वाले लाल बहादुर शास्त्री को अपने पदों को लेकर कभी लालच नहीं रहा। वह अपनी कमियों को बखूबी तलाशते थे। उनके रेलमंत्री पद पर रहते हुए तमिलनाडु में हुए एक रेल एक्सीडेंट हो गया। इस हादसे से शास्त्री जी को गहरा दुख हुआ था। जिसके बाद ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

घर से हटा दी थी बाई:

शास्त्री जी अपने शरीर पर खर्च होने वाले रुपये को भी देशवासियों से जोड़कर देखते थे। भारत पाक युद्ध के समय उनको लगता था कि जो उन पर खर्च हो रहा है कि उससे कितने देशवासियों को फायदा होगा। कहा जाता है कि शास्त्री जी की पत्नी ललिता देवी एक बार जब बीमार हो गई तो शास्त्री जी ने घर में आने वाली बाई को मना कर दिया था। वह उस समय अपनी सैलरी भी नहीं लेते थे।

बच्चे का ट्यूशन भी बंद:

इतना ही नहीं युद्ध के समय शास्त्री जी ने घर में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने वाले टीचर को भी मना कर दिया। जब उनसे टीचर ने बच्चे को फेल होने की बात कही तो उनका कहना था कि देश में लाखों बच्चे फेल होते हैं। एक उनका बच्चा भी फेल हो जाएगा। इसके साथ ही यह लॉजिक दिया कि अंग्रेज भी तो हिंदी में कभी पास नहीं होते हैं। शास्त्री जी धोती फटने पर उसे सिलकर पहनते थे।

छोड़ दिया था खाना:

भारत पाक युद्ध के समय देश भुखमरी के दौर से गुजरने लगा था। यह देश के सामने एक विकराल संकट था। इस समय लाल बहादुर शास्त्री जी देश के भंडारण में गेंहू व अन्य अनाजों की व्यवस्था कराने में जुटे थे,लेकिन इस दौरान उन्होंने लोगो से अपील की हर देशवासी सप्ताह में एक बार उपवास रखे। इससे एक दिन के उसके बचे खाने से उसके दूसरे भाई का पेट भरेगा। खुद शास्त्री जी ने भी सप्ताह में एक दिन सोमवार को खाना छोड़ दिया था।

भारत रत्न का पुरस्कार:

हालांकि इसके बाद ही 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए थे। इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया था। जिसके बाद ही इसी साल उन्हें भारत रत्न का पुरस्कार से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।

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