टीचर सिर्फ कोर्स कम्प्लीट न कराएं, बल्कि वो बच्चों के अंदर लर्निंग का इंट्रेस्ट पैदा कर सकें। डिजिटल एजुकेशन के सेगमेंट में इतनी ताकत है कि यह करोड़ों लोगों में फायदा पहुंचा सकती है। भविष्य में पैदा होने वाली जॉब को ध्यान में रखकर ही वर्तमान में बच्चों को एजुकेशन दें।

 

आने वाले साल में एजुकेशन सेक्टर में किस तरह के बदलाव की उम्मीद है?

इंडिया में एजुकेशन सिस्टम में तेजी से बदलाव हो रहा है। ऑनलाइन एजुकेशन तक लोगों की रीच बढ़ रही है। आज आलम यह है कि इंडिया में के-12 एजुकेशन सिस्टम का व्यापक रूप देखा जा सकता है। इस ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम का यूज करने वाले करीब 70 परसेंट स्टूडेंट खुद स्मार्टफोन रखते हैं। ऐसे में एजुकेशन उनकी रीच में आसानी से बनी हुई है। अगर आंकड़ों की बात करें तो वर्तमान में करीब 26 करोड़ लोग इस एजुकेशन सिस्टम से एनरोल हैं। लेकिन अगर आने वाले समय की बात करें तो आने वाले 5 वर्षों में करीब 33 करोड़ लोग इसमें शामिल हो जाएंगे। अगर खर्च की बात करें तो साल 2010 में हर घर करीब 300 डॉलर एजुकेशन पर खर्च कर रहा था, लेकिन आने वाले समय में इसमें काफी तेजी दिखेगी और यह 2020 में बढ़कर 1050 डॉलर पहुंच जाएगा।

 

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क्या इंडिया में अच्छे टीचर्स की कमी है?

टीचिंग एक बहुत की क्रिएटिव जॉब है। एक टीचर किसी इंसान के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। उसके माइंडसेट को शेप देता है। उसे एक सक्सेसफुल इंसान बनने में हेल्प करता है। लेकिन अगर प्रजेंट टाइम की बात करें तो माहौल कुछ और ही दिखाई देता है। आज टीचर की जिम्मेदारी सिर्फ इतनी सिमट कर रह गई है कि वह स्टूडेंट की टेस्ट और एग्जाम की तैयारी करवाए। टीचर का उद्देश्य सिर्फ स्टूडेंट को मैक्सिमम माक्र्स स्कोर करवाने तक ही रह गया है। सीधे शब्दों में कहें तो एजुकेशन सिर्फ एग्जाम के डर से बाहर निकलने तक ही सिमट कर रह गया है। टीचर भी सिर्फ स्लेबस कम्प्लीट कराने में ही लगे रहते हैं। लेकिन अब इससे बाहर निकलने की जरूरत है। जब से एजुकेशन में ऑनलाइन सिस्टम एंड टेक्नोलॉजी का प्रवेश हुआ है, एजुकेशन का स्टेंडर्ड बढऩा भी शुरू हुआ है। जब बच्चों को किसी सब्जेक्ट का कांसेप्ट एनोवेटिव एंड इंट्रेस्टिंग तरीके से समझाया जाएगा तो निश्चित ही उन्हें अच्छी तरह समझ आएगा। आज टीचर का रोल सिर्फ कोर्स कम्प्लीट कराना या अच्छे माक्र्स लाने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि टीचर्स को भी टेकसेवी होना चाहिए। उन्हें एजुकेशनल टूल्स से कुछ इस तरह फ्रेंडली होना चाहिए कि वो बच्चों के अंदर लर्निंग का इंट्रेस्ट पैदा कर सकें।

 

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देश में एजुकेशन का बड़ा रोल है। यहां लाइफ में कुछ अच्छा और बड़ा करने का सबसे अहम जरिया एजुकेशन ही है। लेकिन वास्तव में हमारा एजुकेशन सिस्टम इतना ब्रॉड नहीं रहा कि वो भविष्य की दिशा को समझ सके। सच तो यह है कि हमारे भविष्य में किस तरह की जॉब होंगी हमें अभी पता नहीं होता। स्टडीज की माने तो आने वाले दस वर्षों में बहुत सी जॉब्स आटोमेटेड हो जाएंगी और हम उस कंडीशन के लिए अभी तैयार ही नहीं है। ऐसे में मेरा मानना है कि हमारी एजुकेशन फ्यूचर ओरियंटेड होनी चाहिए। स्कूल्स में स्टूडेंट्स की लर्निंग इस हिसाब से हो कि जब वह पास आउट करके बाहर निकलेगा तो उस समय किस तरह की जॉब की डिमांड होगी। अपने देश में बच्चों का भविष्य बेहतर करने का यही एक सही रास्ता है कि हम भविष्य में पैदा होने वाली जॉब को ध्यान में रखकर ही वर्तमान में बच्चों को एजुकेशन दें।

 

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इंडिया में डिजिटल एजुकेशन को लेकर क्या उम्मीद है?

इसमें कोई संदेह नहीं कि इंडिया का एजुकेशन सिस्टम फास्ट ग्रोइंग सिस्टम है, लेकिन हमें अभी इसमें बहुत दूर तक जाना है। दरअसल, हमारे एजुकेशन सिस्टम में आज भी बच्चों को प्रॉब्लम सॉल्व करने को कहा जाता है, सवाल पूछने को नहीं। मतलब वो खुद ही फंसे रहते हैं। वो एग्जाम के लिए सब्जेक्ट को याद करते हैं और एग्जाम के बाद सब भूल भी जाते हैं। ऐसे में इन बच्चों के लिए ऐसे सिस्टम और प्लेटफॉर्म की जरूरत है जो बच्चों को लाइफटाइम लर्नर बनाए। जो कि बच्चों के अंदर क्यूरोसिटी पैदा करे और चीजों को सीखने के लिए इंट्रेस्ट पैदा करे। डिजिटल एजुकेशन के जरिए ही यह सब पॉसिबल है। इस डिजिटल एजुकेशन के सेगमेंट में इतनी ताकत है कि यह करोड़ों लोगों में फायदा पहुंचा सकती है। इसकी रीच भी सबसे अधिक है।

 

बाइजू रवींद्रन - फाउंडर एंड सीईओ, बाइजूस इंडियाज लार्जेस्ट एजुकेशन टेक कंपनी

मूल रूप से केरल से बिलांग करने वाले बाइजू सेल्फ लर्नर रहे हैं। बाइजू ने कांसेप्ट्स को आसानी से समझाने वाले मैथेड डेवलप किए हैं। बाइजू की ऐप की लोकप्रियता का आलम यह है कि ये करीब एक करोड़ बीस लाख बार डाउनलोड हो चुका है। इसके करीब सात लाख पेड यूजर हैं और हर महीने करीब 30 हजार यूजर एड हो रहे हैं। वो ऐसे एजुकेशन सिस्टम को तैयार करने में लगे हैं जिसमें स्टूडेंट्स को लर्निंग से प्यार हो जाए।

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