वर्ष 2010 में ही करीब पंद्रह लाख महिलाओं ने स्तनों को बढ़ाने का आपरेशन करवाया है। सिलिकॉन के ज़रिए स्तनों के आकार बढ़ाने का पहला आपरेशन पचास साल पहले हुआ था 1962 में।

यह इतिहास बनाने वाली महिला का नाम था टिम्मी जीन लिंडसे। 1962 में ह्यूसटन टेक्सास के एक अस्पताल में छह बच्चों की मां टिम्मी का दो घंटे तक आपरेशन चला और उनके स्तनों का आकार बी से सी कप हो गया।

अब टिम्मी की उम्र 80 साल है और वो कहती हैं, ‘‘मुझे लगा कि ये बिल्कुल परफेक्ट हो गए हैं। वो नरम गुदगुदे थे और बिल्कुल असली स्तनों जैसे थे.’’

टिम्मी बताती हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि आपरेशन के बाद तुरंत पता चला इसका प्रभाव लेकिन जब मैं अस्पताल से निकली और सड़कों पर पुरुषों ने मुझे देखकर सीटियां बजाईं तो फिर लगा ये सफल रहा.’’

स्तनों का आकार बढ़ने से टिम्मी का आत्मविश्वास तो ज़रुर बढ़ा लेकिन उनकी कोई योजना स्तन का आकार बढ़ाने की नहीं थी। हुआ यूं कि टिम्मी अस्पताल गई थीं अपने स्तन पर बना एक टैटू हटवाने तो डॉक्टरों ने उनके सामने ये प्रस्ताव रखा कि क्या वो स्तन बढ़वाने का पहली बार किए जा रहे ऑपरेशन में हिस्सा लेंगी।

टिम्मी बताती हैं, ‘‘मैं तो अपने कान ठीक कराना चाहती थीं। बहुत लंबे हैं तो डाक्टरों ने कहा कि हम कान भी ठीक कर देंगे। फिर क्या था डील हो गई.’’

टिम्मी का ऑपरेशन करने वाले दो डॉक्टर थे फ्रैंक गेरो और थॉमस क्रोनिन। स्तन का आकार बढ़ाने के लिए आपरेशन का सहारा लेने का आइडिया गेरो का था।

इतिहास है पुराना

इनवेंटिंग ब्यूटी-ए हिस्ट्री दैट हेव मेड अस ब्यूटीफुल की लेखक टेरेसा रियोर्डन कहती है, ‘‘गेरो ने रक्त से भरा प्लास्टिक बैग को निचोड़ते हुए टिप्पणी की थी कि ये तो बिल्कुल औरतों के स्तन जैसा महसूस होता है और ये पल था जब उनके दिमाग में स्तन का आकार बढ़ाने का ख्याल आ गया.’’

इस आपरेशन को पहली बार एस्मेरालडा नामक कुत्ते पर किया गया। इस कुत्ते का ख्याल रखने वाले प्लास्टिक सर्जन जूनियर डॉक्टर थॉमस ब्रिग्स बताते हैं कि कुत्ते के शरीर का चमड़ा हटाकर उसमें सिलिकॉन पैड्स डाले गए और सिलाई कर दी गई। कुछ समय बाद सिलाई हटाई गई।

आपरेशन सफल था और गेरो ने घोषणा कर दी कि आपरेशन पानी की तरह नुकसानदेह है। इसके कुछ समय बाद गेरो को मिली टिमी जिन पर आपरेशन किया गया।

टिमी को वो दिन ठीक से याद नहीं। वो कहती हैं, ‘‘मैं जब आपरेशन करवा के लौटी तो मेरा सीना बहुत भारी हो गया था। बस और कुछ नहीं। तीन चार दिन के बाद दर्द हुआ था.’’

ब्रिग्स को उस समय पता ही नहीं था कि आखिर क्या होने वाला है। वो बताते हैं, ‘‘हां मजे़दार तो था। उत्साहित था मैं। लेकिन मुझे अंदाजा़ नहीं था कि भविष्य में ये इतना लोकप्रिय हो जाएगा। मैं शायद इतना चतुर नहीं था कि ये बात समझ पाता.’’

ब्रिग्स कहते हैं, ‘‘ऑपरेशन के बाद क्रोनिन ने 1963 में इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ प्लास्टिक सर्जन्स को इस बारे में पूरी जानकारी दी और सारे लोग बहुत उत्साहित हुए। तब लगा कि कुछ बड़ा हुआ है.’’

यह समय अद्भुत था। अमरीका में कई सांस्कृतिक बदलाव हो रहे थे और बड़े स्तनों का फैशन आने लगा था। ये वही समय था जब प्लेब्वॉय पत्रिका शुरु हुई थी और बार्बी गुड़िया लांच हुई।

टेरेसा कहती हैं, ‘‘ आपको याद होगी मैरलीन मुनरो और जेन रशेल। डियोर ने 1957 में उनकी जिन तस्वीरों को अपने उत्पाद के साथ रखा था वो बड़े स्तन वाली तस्वीरें थीं.’’ कई लोगों का कहना था कि मैरलीन मुनरो से स्तनों के आकार बढ़ाए हैं लेकिन ये कभी स्पष्ट नहीं हो सका।

महिलाओं में नकली ब्रा लगाकर स्तन को उभरा हुआ दिखाने का फैशन तो था लेकिन महिलाएं इससे आगे कुछ स्थायी चाहती थीं। 1950 के दशक में डॉक्टरों ने महिलाओं के स्तनों में स्पंज लगाने की भी कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली।

स्पंज प्रयोग पहले तो सफल दिखा लेकिन स्पंज जल्दी ही सूख जाता था और कठोर हो जाता था। सिलिकॉन का इसी समय आना भी बड़ी बात थी.युद्ध बाद के अमरीका में हर चीज़ प्लास्टिक की बन रही थी।

हालांकि सिलिकॉन का सबसे पहले इस्तेमाल अमरीका में नहीं बल्कि जापान में वेश्याओं ने किया था। जापान में जब अमरीकी सेना थी तो वहां वेश्याओं ने काम बढा़ने की कोशिश में अपने स्तनों में सिलिकॉन डाले ताकि स्तन बड़े लगे क्योंकि अमरीकी सैनिकों को बड़े स्तन वाली महिलाएं अधिक पसंद थीं।

हालांकि इंजेक्शनों के ज़रिए बढ़ाए गए स्तन का बहुत बड़ा कुप्रभाव रहा। स्तन के जिस बिंदु पर इंजेक्शन लगता वहां घाव होना शुरु हो जाता था। बाद के वर्षों में सिलिकॉन पर भी शोध हुआ और आज स्तन आकार के कम से कम 450 विकल्प हैं।

आज की तारीख में दुनिया भर में स्तन का आकार बढ़ाने का ऑपरेशन काफी लोकप्रिय है और दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर मोटापा घटाने के लिए किया जाने वाला आपरेशन लिपोसक्शन है। न केवल सुंदर दिखने के लिए बल्कि कई उन महिलाओं के लिए ये आपरेशन फायदेमंद रहा जिनके स्तर कैंसर के कारण हटा दिए गए थे।

ये आपरेशन इतना सफल था कि टिम्मी के ऑपरेशन के बारे में उनके ब्वॉयफ्रेंड को भी नहीं पता चला। कुछ वर्षों बाद टिम्मी ने इस बारे में अपने परिवार और बाकी लोगों को जानकारी दी।

पचास साल के बाद अभी भी टिम्मी अपने ऑपरेशन से प्रसन्न है, ‘‘ मुझे लगता था कि उम्र के साथ ये नहीं ढलेंगे। हमेशा ऐसे ही रहेंगे लेकिन उम्र के साथ ये असली स्तनों की भांति ही ढल गए.’’

इसके बावजूद टिम्मी बहुत खुश हैं कि उनके शरीर में इतिहास का कुछ अंश छुपा हुआ है। उन्हें सुन कर अच्छा लगता है कि वो पहली महिला थीं इस ऑपरेशन से गुज़रने वाली।

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