पहली नजर में ही चल गया जादू

डॉ अविनाश गुप्ता ने बताया- 1971 में जब पहली बार रिम्स में कॉम्पटीशन के थ्रू एडमिशन होने लगा था, तब मैंने और गीता ने रिम्स में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की थी। गीता से मेरी पहली मुलाकात कब हुई, यह ठीक-ठीक तो याद नहीं, पर पहली नजर ने ही जादू कर दिया था। तब रिम्स 'आरएमसीएचÓ हुआ करता था और यहां की पढ़ाई और यहां के डॉक्टर्स दूर-दूर तक फेमस थे। वहीं, डॉ गीता ने बताया- कैंपस की चहारदीवारी में ह्यूमन बॉडी की पढ़ाई करते-करते हम कब प्रेम का पहाड़ा पढऩे लगे, यह पता ही नहीं चला। मैं बस इतना समझ सकी कि कुछ तो है, जो मुझे अविनाश की ओर खींचे ले जा रहा है। हम दोनों में एक-दूसरे के प्रति कशिश बढ़ती गई और दूरियां नजदीकियों में तŽदील हो गईं। जमाने को हमारे प्यार की खबर नहीं थी, पर हमारे साथ पढ़ाई कर रहे हमारे फ्रेंड्स सब जानते थे और उनकी भी चाहत थी कि हम शादी के बंधन में बंध जाएं। तब अविनाश मेडिसीन में थे और मैं गायनी की पढ़ाई कर रही थी.

छह साल तक की dating
डॉ अविनाश गुप्ता ने बताया- जब हमने यह जानते हुए कि हम अलग-अलग कास्ट से बिलॉन्ग करते हैं, शादी करने का फैसला लिया, तो इसकी बड़ी ठोस वजह थी। मैं और गीता 1974 से 1979, यानी छह साल तक एक-दूसरे को डेट करते रहे। इस दौरान हमने एक-दूसरे को जानने-पहचानने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुझे गीता की सादगी अच्छी लगी, तो गीता को मुझमें ईमानदारी अच्छी लगी। डॉ गीता ने बताया- डॉ अविनाश में कोई दिखावा नहीं था। वह व्यावहारिकता के धरातल पर जितने ठोस और जिंदादिल इंसान हैं, रिश्तों के प्रति भी उतने ही इमोशनल और ईमानदार हैं। हमारी केमिस्ट्री अच्छी थी और हम दोनों ही इस रिश्ते को दूर ले जाने के लिए कमिटेड थे। इस बीच कई ऐसे पल आए जब हमने यह समझ लिया कि हम एक-दूजे के लिए ही बने हैं और अब हमें शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए.
और कर ली love marriage
डॉ अविनाश ने बताया- मैंने और गीता ने एक-दूसरे से शादी करने का फाइनल डिसीजन ले लिया था। लेकिन, तब सोसाइटी इतनी लिबरल नहीं थी। अलग कास्ट के होने की वजह से मेरी और गीता की शादी परिवारवालों को मंजूर नहीं थी। पर, हमारी जिद के आगे उनकी एक न चली। जब घरवालों ने यह समझ लिया कि हम शादी करके ही मानेंगे, तो उन्होंने अपनी रजामंदी दे दी, क्योंकि अपने प्यार को पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था। शादी के लिए जितना रिजिड मैं था, उतनी ही गीता भी। इसलिए, हमने लव मैरेज कर ली। 1979 में छह सालों की डेटिंग के बाद हम शादी के बंधन में बंध गए। जब शादी हो गई, तो मेरे और गीता के परिवारवालों का विरोध भी कम होता गया। फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब अपनी मोहŽबत की यादें साथ लिए हम अमेरिका चलेगए.

10 हजार में पढ़ ली थी डॉक्टरी
डॉ अविनाश गुप्ता ने बताया- 1971 में जब मैं रिम्स में पढ़ाई कर रहा था, उस समय पढ़ाई बहुत सस्ती थी। फी के रूप में हर महीने साढ़े बारह रुपए देने होते थे। लगभग इतना ही हॉस्टल में रहने का खर्च था। रिम्स में साढ़े पांच साल तक की डॉक्टरी की पढ़ाई, जिसमें इंटर्नशिप भी शामिल थी, मैंने 10 हजार रुपए में पूरी कर ली। तब रिम्स में डॉ बरमेश्वर प्रसाद जैसे टीचर्स थे। वह जितनी पढ़ाई के प्रति डेडिकेटेड थे, उतनी ही वास्ट उनकी नॉलेज थी। तब रिम्स में डिसीप्लीन था और गुरु-शिष्य की परंपरा भी.
America जाना अच्छा रहा हमारे लिए
डॉ अविनाश ने बताया- शादी के बाद 1986 में हमलोग अमेरिका में सेटल हो गए। विदेश में जाना और वहां का होकर रह जाना मुझे फला। वहां डॉ गीता जर्सीसोर मेडिकल सेंटर न्यूजर्सी में मेडिसीन में प्रैक्टिस करती हैं, वहीं मैं कार्डियोलॉजिस्ट हूं। मैं अमेरिका में डिप्लोमैट ऑफ अमेरिकन बोर्ड ऑफ इंटरनल मेडिसीन, डिप्लोमैट ऑफ दि अमेरिकन बोर्ड ऑफ कार्डियोवैस्कुलर डिजीज, डिप्लोमैट ऑफ दी अमेरिकन बोर्ड ऑफ क्लिनिकल लिपिडोलॉजी में डिप्लोमैट हूं.

महंगा है America में treatment
डॉ अनिवाश ने बताया कि इंडिया और अमेरिका के वे ऑफ ट्रीटमेंट में बहुत डिफरेंस है। वहां इलाज बहुत महंगा है। पर, वहां सब लोग इंश्योर्ड हैं। इंडिया में जो एंजियोप्लास्टी एक से दो लाख रुपए में हो जाती है, अमेरिका में उसका खर्च 25 हजार से 30 हजार डॉलर (लगभग 14 लाख 50 हजार रुपए से 18 लाख 60 हजार रुपए) है। अमेरिका में इंडिया के कम्पेरिजन में रिसर्च फैसिलिटीज काफी हैं और टेक्नोलॉजी भी एडवांस्ड है, पर वहां रेगुलेशन भी उतना ही स्ट्रिक्ट है.
यादें हो गईं ताजा
रिम्स के पुनर्मिलन में बिछड़े दोस्तों की पुरानी यादें ताजा हो गईं। रिम्स डायरेक्टर डॉ तुलसी महतो ने अपनी यादों के पिटारे को खोलते हुए बताया- जब रिम्स में मेरा एडमिशन हुआ था, तो एडमिशन के पहले दिन मेरी रैगिंग हुई और सीनियर्स ने मेरे हाथ के अंगूठे का नाखून उखाड़ दिया था। मैंने पहले दिन ही प्रिंसिपल को एक अप्लीकेशन लिखकर दिया कि मैं आरएमसीएच में नहीं पढ़ूंगा, पर बाद में सब ठीक हो गया.

कोई नहीं, जिन्हें सर कह सकूं
इस मौके पर रिम्स में अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए रिम्स के डॉ आरएस प्रसाद कहने लगे- आज के दिन थोड़ा दुख हो रहा है, क्योंकि रिम्स पुनर्मिलन में इतने डॉक्टर्स के बीच कोई भी ऐसा नहीं है, जिन्हें मैं सर कहकर पुकार सकूं। मैं 1957 में जमशेदपुर से एंटी मलेरिया ऑफिसर के रूप में रांची आया था और रातू रोड में रहता था। वहीं मेरा घर भी था और ऑफिस भी। आज मुझे अपने गुरुओं की याद आती है। वहीं, रिम्स डायरेक्टर डॉ तुलसी महतो ने कहा कि आरा (एसोसिएशन ऑफ आरएमसीएच/रिम्स एलुम्नाई) ने पुनर्मिलन के जरिए यादों को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। रिम्स ने ईस्टर्न इंडिया में अपनी ख्याति फैला दी है। मैं चाहता हूं कि यह नॉन-स्टॉप प्रोग्रेस करता रहे। यहां मैं कई ऐसे डॉक्टर्स को देख रहा हूं, जो मौजूद हैं, पर कई ऐसे भी हैं जो समय नहीं होने के कारण नहीं आ सके। ऐसे में आरा ऑर्गनाइजिंग कमिटी से मेरी गुजारिश है कि वह पुनर्मिलन का आयोजन हर साल न करके एक दो साल के इंटरवल पर करे, ताकि सभी डॉक्टर्स इसमें शिरकत करने आ सकें.

सौरभ बने Best Medicine Graduate
रिम्स पुनर्मिलन की इनॉगरल सेरेमनी के दौरान 2008 बैच के स्टूडेंट डॉ सौरभ सुलतानिया को बेस्ट ग्रेजुएट मेडिसीन का अवार्ड दिया गया। इस अवार्ड के तहत उन्हें 20,000 रुपए का चेक, ट्रॉफी और सर्टिफिकेट दिया गया। दिवंगत डॉ विनोद प्रिया की स्मृति में बेस्ट मेडिकल ग्रेजुएट का अवार्ड 2008 बैच की ही स्टूडेंट डॉ पूनम मोहंती को मिला। इसके अलावा डॉ दिव्या को भी सम्मानित किया गया। डॉ दिव्या की अŽसेंस में रनिंग ट्रॉफी उनकी बैचमेट को दी गई.