-कोई फैशन इंडस्ट्री तो कोई बिजनेस छोड़कर प्रभु की भक्ति में रमा

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PRAYAGRAJ: कभी ग्लैमर इंडस्ट्री की चकाचौंध में जिंदगी बिताते थे। आज कुंभ में अध्यात्म की राह तलाश रहे हैं। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने ऐसे युवा सन्यासियों से बात की और आध्यात्म की तरफ झुकाव के कारणों से लेकर उनके जीवन शैली में आए बदलावों पर चर्चा की।

कैला देवी

कैला देवी उर्फ कैको आईकावा मूल रूप से जापान की रहने वाली हैं। कैला देवी शुरू से मेधावी छात्रा थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह उन्होंने जर्नलिज्म के क्षेत्र में शुरुआत की। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि शुरू में उनकी शारीरिक क्षमता बेहद कम थी। इस वजह से वह योग का प्रशिक्षण लेने लगीं। पत्रकारिता के दौरान एक टीवी प्रोग्राम के सिलसिले में उनकी मुलाकात पायलट बाबा से हुई। इसके बाद वह उनसे कई बार मिलीं। धीरे-धीरे उनकी अध्यात्म में रुचि बढ़ने लगी। इसी बीच पायलट बाबा ने भूमि के अंदर समाधि ली। इसे कवर करने के दौरान सनातन धर्म और अध्यात्म को लेकर उनकी क्यूरियोसिटी बढ़ने लगी। इसकी खोज में पायलट बाबा के आमंत्रण पर वह हिमालय पहुंचीं। इस दौरान तिब्बत और नेपाल भी जाना हुआ। इसके बाद तपोवन में उन्होंने पहली बार तपस्या की। इसके बाद से वह लगातार तपोवन में तपस्या करने लगीं। कैला देवी बताती हैं कि इससे उनके अंदर गजब का परिवर्तन हुआ।

सत्य प्रभु

रूस के रहने वाले सत्य प्रभु का असली नाम आन्द्र है। वह पेशे से बिजनेस मैन थे। वह बताते हैं कि रूस में वह सेल्स के बिजनेस में थे। उन्होंने अपने मॉल की चेन तैयार की थी। बिजनेस में सक्सेजफुल होने के बाद भी उनको सुकून नहीं मिल रहा था। लगातार कुछ पाने की चाहत से वह परेशान होने लगे। इसी दौरान काम के सिलसिले में उनका नेपाल जाना हुआ। वहीं से अध्यात्म की तरफ उनका झुकाव बढ़ा और उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। इसी समय उन्होनें एक विचार किया कि आज वह सक्सेस की बुलंदियों पर हैं। जो उन्होंने चाहा वह सब मिल गया। उसके बाद भी ऐसा क्या है जो अगर एक बार हासिल कर लिया तो कभी नष्ट नहीं होगा। इसी सत्य की तलाश ने उनकी रुचि सनातन धर्म और आध्यात्मिक शांति की ओर मोड़ दिया। संतों से दीक्षा लेने के बाद आज वह अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ सुखी से जीवन जी रहे हैं।

दुर्ग गिरी

रूस की ही रहने वाली दुर्ग गिरी आज पूर्ण संन्यासी का जीवन जी रही हैं। वह बताती हैं कि संन्यास में आने के पहले वह रूस में ही इवेंट मैनेजमेंट का वर्क करती थीं। पांच साल तक उन्होंने थियेटर और डांस की परफॉमर्ेंस भी की। दुर्ग गिरी बताती हैं कि बचपन से ही वह खोजी किस्म की थीं। अपने इसी स्वभाव के कारण वह खुशी को खोजते हुए संन्यास की ओर से मुड़ीं। शुरू में वह गृहस्थ संन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत कर रही थीं। लेकिन सत्य की खोज में वह पूर्ण संन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगीं।